शतरंज की बिसात पर जब दो भारतीय महारथियां आमने-सामने हों, तो मुकाबले का रोमांच अपनी चरम सीमा पर पहुंचना स्वाभाविक है। 2025 FIDE महिला शतरंज विश्व कप का फाइनल भी कुछ ऐसा ही महासंग्राम बनकर उभरा है, जहाँ भारत की अनुभवी ग्रैंडमास्टर कोनेरू हम्पी का सामना उभरती हुई युवा प्रतिभा दिव्या देशमुख से हुआ। दो क्लासिकल गेम्स के बाद भी विजेता का फैसला नहीं हो पाया, और अब निगाहें सोमवार को होने वाले हाई-स्टेक्स टाईब्रेकर पर टिकी हैं। यह सिर्फ एक खिताब की लड़ाई नहीं, बल्कि धैर्य, रणनीति और मानसिक दृढ़ता की अग्निपरीक्षा है।

फाइनल का सफ़र: जब ड्रॉ भी हार जैसा लगे

शनिवार को हुए पहले क्लासिकल गेम में दिव्या देशमुख ने अपनी शुरुआती बढ़त का पूरी तरह से फायदा नहीं उठा पाया, जिसके बाद उन्हें निराशा हुई। उन्होंने खुद स्वीकार किया कि उन्होंने कई गलत विकल्प चुने, जिससे उन्हें “ड्रॉ होकर भी हार जैसा लगा”। शतरंज के खिलाड़ी जानते हैं कि यह भावना कितनी सच्ची हो सकती है – जब जीत हाथ में लगे और वह फिसल जाए, तो ड्रॉ भी टीस बनकर रह जाता है। यह मानसिक दबाव का सीधा प्रमाण था।

लेकिन दिव्या ने रविवार को हुए दूसरे गेम में अपनी शानदार मानसिक दृढ़ता का परिचय दिया। हम्पी ने अपने गेम में `क्वीन पॉन ओपनिंग` के साथ शुरुआत की, जिससे उन्हें बिशपों की एक जोड़ी के साथ शुरुआती बढ़त मिली। यह एक ऑप्टिकल एडवांटेज था, यानी देखने में अच्छा लग रहा था, पर दिव्या ने इसे अपनी रणनीति से बेअसर कर दिया।

चालों का महायुद्ध: बिशप बनाम नाइट

दिव्या ने अपनी नाइट (घोड़ों) को इतनी कुशलता से बिठाया कि हम्पी अपने बिशपों की जोड़ी से कोई बड़ा खतरा पैदा नहीं कर पाईं। यह क्लासिक शतरंज का नजारा था – जहाँ एक खिलाड़ी के पास लंबी दूरी के मोहरे (बिशप) थे, वहीं दूसरे ने छोटी दूरी के शक्तिशाली मोहरों (नाइट) से किलेबंदी कर ली थी।

जैसे-जैसे खेल आगे बढ़ा, दो छोटे मोहरे और फिर हाथियों की अदला-बदली हुई, जिससे बोर्ड पर वजीर और एक-एक छोटा मोहरा ही रह गया। इस एंडगेम में हम्पी ने एक प्यादे का बलिदान देकर थोड़ी उम्मीद जगाने की कोशिश की, लेकिन इससे उनके बिशप का जोड़ा भी चला गया। हालांकि दिव्या के पास एक प्यादा ज़्यादा था, उन्हें अपनी कुछ कमजोरियों को कवर करना था। अंततः, हम्पी ने अपना प्यादा वापस पा लिया और दिव्या ने चेक्स के ज़रिए स्थिति को दोहराकर 34 चालों में बाजी को ड्रॉ पर खत्म कर दिया। यह दिखाता है कि टॉप लेवल पर एक छोटे से फायदे को भी भुनाना कितना मुश्किल होता है।

टाईब्रेकर का अग्निपरीक्षा: दिमागी सहनशक्ति का खेल

अब जबकि क्लासिकल गेम्स ड्रॉ पर समाप्त हो चुके हैं, विजेता का फैसला टाईब्रेकर से होगा। और ये कोई साधारण टाईब्रेकर नहीं होते, बल्कि मानसिक दृढ़ता और समय प्रबंधन की सच्ची परीक्षा होते हैं। यह नियम-पुस्तिका इतनी लंबी है कि इसे पढ़ने में ही शायद एक गेम का समय लग जाए! लेकिन यही तो शतरंज का रोमांच है, जहाँ हर नियम एक नई चुनौती पेश करता है।

टाईब्रेकर का प्रारूप कुछ ऐसा होगा:

  • सबसे पहले, 15 मिनट के दो गेम खेले जाएंगे, जिसमें हर चाल के बाद 10 सेकंड का इंक्रीमेंट होगा।
  • अगर स्कोर फिर भी बराबर रहता है, तो 10 मिनट के दो और गेम होंगे, जिसमें 10 सेकंड का इंक्रीमेंट जारी रहेगा।
  • अगर फिर भी गतिरोध नहीं टूटता, तो 5 मिनट के दो गेम होंगे, जिसमें 3 सेकंड का इंक्रीमेंट मिलेगा।
  • और अगर इसके बाद भी विजेता तय नहीं होता, तो 3 मिनट के दो और गेम होंगे, जिसमें हर चाल पर 2 सेकंड का इंक्रीमेंट मिलेगा।

यह प्रक्रिया तब तक जारी रहेगी जब तक कोई विजेता नहीं मिल जाता। यह सिर्फ शतरंज की चालें नहीं, बल्कि दिल की धड़कनों को काबू में रखने, दबाव में शांत रहने और हर बीतते सेकंड के साथ सबसे सही फैसला लेने की क्षमता का भी टेस्ट है।

यह मुकाबला सिर्फ हम्पी और दिव्या के बीच नहीं, बल्कि अनुभव बनाम युवा जोश, स्थापित महारथी बनाम उभरती हुई प्रतिभा की लड़ाई है। कौन जीतेगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन एक बात तो तय है – भारतीय शतरंज में महिला खिलाड़ियों का यह प्रदर्शन प्रेरणादायक है और भविष्य के लिए बड़ी उम्मीदें जगाता है। हम्पी और दिव्या दोनों ने हमें यह दिखा दिया है कि शतरंज सिर्फ मोहरों को हिलाना नहीं है, यह दिमाग का शुद्ध युद्ध है, जहाँ हर चाल एक नई कहानी लिखती है। सोमवार का टाईब्रेकर भारतीय शतरंज इतिहास में एक नया अध्याय लिखेगा, जिस पर सबकी निगाहें टिकी रहेंगी।