भारतीय धरती पर महिला विश्व कप 2025 का आगाज़ हो चुका है, और क्रिकेट के इस महाकुंभ में जहां दुनिया भर की टीमें अपने कौशल का प्रदर्शन कर रही हैं, वहीं एक ऐसी कहानी भी सामने आई है, जो खेल से बढ़कर मानवीय दृढ़ता और उम्मीद की मिसाल पेश करती है। गुवाहाटी में भारत और श्रीलंका के बीच टूर्नामेंट के उद्घाटन मैच में, न केवल मैदान पर खिलाड़ियों की धड़कनें तेज थीं, बल्कि दर्शक दीर्घा में बैठी कुछ खास हस्तियां भी सबकी नज़रों में थीं – वे थीं अफगानिस्तान की महिला क्रिकेट खिलाड़ी, जो अपने देश में अनिश्चित भविष्य का सामना करते हुए अब ऑस्ट्रेलिया में निर्वासित जीवन जी रही हैं।
एक नई शुरुआत की खामोश गूँज
यह कोई सामान्य उपस्थिति नहीं थी। ये खिलाड़ी, जिन्हें अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड (ACB) द्वारा आधिकारिक तौर पर मान्यता नहीं दी जाती, ऑस्ट्रेलिया की घरेलू लीगों में अपने सपनों को ज़िंदा रखे हुए हैं। विश्व कप के उद्घाटन मैच में उनकी मौजूदगी को खेल के वैश्विक मंच में उनके एकीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण, हालांकि खामोश, कदम के रूप में देखा जा रहा है। वे यहां दर्शकों के रूप में थीं, लेकिन उनकी उपस्थिति ने एक गहरा संदेश दिया – खेल किसी भी बाधा से परे है, और मानवीय भावना को दबाया नहीं जा सकता।
“गुवाहाटी में भारतीय क्रिकेट संघ (ACA) के अध्यक्ष तरंगा गोगोई ने बताया, `[BCCI सचिव] देवजीत सैकिया को इसकी पूरी जानकारी है। वह हमें मार्गदर्शन देंगे और हम अधिक विवरण की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अफगानिस्तान की खिलाड़ी यहां होंगी और हम उसके लिए व्यवस्था करेंगे।` यह दर्शाता है कि इस संवेदनशील मामले में पर्दे के पीछे किस तरह के प्रयास किए जा रहे हैं।”
अंधेरे में एक उम्मीद की किरण
अफगानिस्तान में 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद से, महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से बड़े पैमाने पर बाहर कर दिया गया है। उन्हें विश्वविद्यालयों या माध्यमिक विद्यालयों में जाने की अनुमति नहीं है, और उनकी आवाज़ें सार्वजनिक रूप से नहीं सुनी जा सकतीं। ऐसे में, ACB के लिए महिला टीम को मान्यता देना असंभव हो गया है, भले ही 2020 में 25 खिलाड़ियों को अनुबंध किया गया था। इन विषम परिस्थितियों ने इन महिला क्रिकेटरों को अपने देश से दूर, निर्वासन में रहने के लिए मजबूर कर दिया है। अधिकांश ऑस्ट्रेलिया में रहती हैं, जबकि कुछ यूनाइटेड किंगडम और कनाडा में भी हैं।
यह दुखद विडंबना है कि जहां एक तरफ विश्व भर में महिला क्रिकेट फल-फूल रहा है, वहीं अफगानिस्तान की प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को अपने सपनों के लिए इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है। खेल, जो अक्सर एकता और समावेश का प्रतीक होता है, यहां राजनीतिक उथल-पुथल का शिकार बन गया है।
ICC और BCCI का निर्णायक समर्थन
इस गंभीर स्थिति में, अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसी वर्ष अप्रैल में, ICC ने अफगानिस्तान की महिला क्रिकेटरों का समर्थन करने के लिए एक `समर्पित टास्क फोर्स` बनाने की पुष्टि की, जिसमें कोचिंग और मेंटरशिप भी शामिल है। इस पहल के लिए धन ICC, और तीन सबसे धनी क्रिकेट बोर्डों – भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI), इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB), और क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया (CA) द्वारा प्रदान किया जाएगा। हालांकि सटीक राशि का खुलासा नहीं किया गया है, यह एक स्पष्ट संकेत है कि वैश्विक क्रिकेट समुदाय इन खिलाड़ियों को अकेला नहीं छोड़ना चाहता।
भविष्य की ओर एक कदम
जुलाई में ICC की वार्षिक सम्मेलन में, अफगानिस्तान की निर्वासित महिला क्रिकेटरों के विश्व कप में शामिल होने का विचार पुख्ता हुआ था। प्रारंभिक योजना में बेंगलुरु में एक प्रशिक्षण शिविर, भारतीय घरेलू टीमों के खिलाफ मैच और फिर कुछ विश्व कप खेलों में भाग लेना शामिल था। हालांकि सभी योजनाएं सार्वजनिक नहीं की गईं और कुछ लॉजिस्टिकल चुनौतियों (जैसे वीजा समस्याएँ) के कारण सभी खिलाड़ी भारत नहीं आ पाए, उनकी उपस्थिति ही अपने आप में एक जीत है।
इस पूरे घटनाक्रम को जानबूझकर कम प्रचार दिया गया है। ICC अफगानिस्तान सरकार की संभावित प्रतिक्रिया को लेकर सतर्क है। यह एक नाजुक संतुलन है, जहां मानवीय समर्थन और राजनीतिक संवेदनशीलता के बीच सावधानी से कदम बढ़ाए जा रहे हैं। यह स्थिति उस अजीबोगरीब विरोधाभास को दर्शाती है जहां खेल को राजनीति से परे होना चाहिए, लेकिन अक्सर वह इसका शिकार बन जाता है।
एक सशक्त संदेश
ये महिलाएँ सिर्फ क्रिकेट मैच देखने नहीं आई थीं; वे एक संदेश लेकर आई थीं। उनके चेहरे पर मुस्कान और आंखों में चमक, उन अनगिनत महिलाओं की उम्मीदों का प्रतिनिधित्व करती है जिन्हें अपने सपनों को पूरा करने से रोका जा रहा है। खेल में उनकी वापसी, भले ही अभी अनौपचारिक हो, यह दर्शाता है कि प्रतिभा और जुनून को हमेशा के लिए कैद नहीं किया जा सकता।
भारत, जो स्वयं क्रिकेट का एक गढ़ है, इन खिलाड़ियों को एक मंच और एक घर देकर न केवल खेल भावना का सम्मान कर रहा है, बल्कि वैश्विक एकजुटता का एक शक्तिशाली उदाहरण भी पेश कर रहा है। यह घटना सिर्फ एक क्रिकेट मैच का हिस्सा नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण और खेल के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की एक गहरी कहानी है। यह याद दिलाता है कि कभी-कभी, सबसे महत्वपूर्ण आवाजें वे होती हैं जो बिना कुछ कहे ही बहुत कुछ कह जाती हैं।