बांग्लादेश क्रिकेट के रणक्षेत्र में कोच की कुर्सी: सलाहुद्दीन का भविष्य दांव पर

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हाल ही में बांग्लादेश क्रिकेट के गलियारों में एक नया विवाद गहराया है, जिसके केंद्र में टीम के वरिष्ठ सहायक और बल्लेबाजी कोच मोहम्मद सलाहुद्दीन हैं। पिछले नौ महीनों से टीम का निराशाजनक प्रदर्शन जारी है, और इस नाकामी का ठीकरा अब कोच के सिर पर फोड़ा जा रहा है। सवाल यह है: क्या सलाहुद्दीन की कुर्सी खतरे में है, या यह सिर्फ क्रिकेट की दुनिया में लगने वाला एक और बवंडर है?

पसंदीदावाद के आरोप और सलाहुद्दीन का करारा जवाब

मीडिया में खबरें थीं कि सलाहुद्दीन टीम के चयन और खिलाड़ियों की भूमिकाओं में अनावश्यक प्रभाव रखते हैं। खासकर, शकीब अल हसन जैसे प्रमुख खिलाड़ियों के साथ उनके लंबे समय से चले आ रहे संबंधों को इन आरोपों से जोड़ा गया। इन रिपोर्ट्स के अनुसार, सलाहुद्दीन को टीम के भीतर एक `गुरु` के रूप में देखा जाता है, जिसका गहरा प्रभाव है।

लेकिन मोहम्मद सलाहुद्दीन ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया। कोलंबो में श्रीलंका के खिलाफ निर्णायक टी20I से पहले आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने अपने ऊपर लगे इल्जामों का खुलकर सामना किया।

“27-28 साल कोचिंग करने के बाद, मैं अब सुन रहा हूं कि मेरे खिलाफ टीम में ढेरों शिकायतें हैं। मैं वास्तव में उन शिकायतों के बारे में जानना चाहूंगा। बेहतर होगा कि यह मुझे लिखित में दिया जाए, आपको ठोस सबूत देने होंगे। इससे मुझे खुद को सुधारने में मदद मिलेगी।”

उनकी बात में एक तीखी सच्चाई थी। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि टीम लगातार हार रही है, तो उन्हें पसंदीदा खिलाड़ियों को तरजीह देने से क्या फायदा होगा।

“यदि मुझे लगता है कि टीम की भलाई के लिए बदलाव की जरूरत है, तो मैं ऐसा अवश्य करूंगा। हमारी टीम नियमित रूप से हार रही है, तो मुझे पसंदीदावाद से क्या फायदा होगा?”

बोर्ड का रुख: समर्थन या बदलाव की आहट?

बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड (BCB) के अध्यक्ष अमीनुल इस्लाम ने इस मुद्दे पर थोड़ा कूटनीतिक रुख अपनाया। 14 जुलाई को ढाका में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि सलाहुद्दीन `काफी अच्छा` कर रहे हैं और श्रृंखला के बीच में वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे।

“सबसे पहले मुझे लगता है कि हमारे बल्लेबाजी कोच मोहम्मद सलाहुद्दीन काफी अच्छा कर रहे हैं और श्रृंखला के बीच में, मैं कोई टिप्पणी नहीं करना चाहूंगा। हम श्रृंखला के बाद देखेंगे।”

हालांकि, यह बयान मुख्य चयनकर्ता गाज़ी अशरफ हुसैन के सार्वजनिक बयान के ठीक दो दिन बाद आया था, जिसमें उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि बोर्ड सक्रिय रूप से एक नए बल्लेबाजी कोच की तलाश कर रहा है। यह सलाहुद्दीन के संभावित प्रतिस्थापन का एक मजबूत संकेत था, जो बोर्ड के भीतर की दुविधा को दर्शाता है – एक तरफ समर्थन की बात, दूसरी तरफ बदलाव की आहट।

सलाहुद्दीन का दर्शन: एक कोच का आत्म-सम्मान

अपने बचाव में सलाहुद्दीन ने अपने अनुभव और ईमानदारी की बात की। उन्होंने जोर देकर कहा कि उनकी प्रतिबद्धता राष्ट्रीय टीम तक ही सीमित नहीं है।

“मैं एक कोच हूं। यदि आप मुझसे अंडर-13 टीम को कोचिंग देने को कहें, तो मुझे कोई दिक्कत नहीं है। मेरे पास कोई `टैग` नहीं है कि मुझे राष्ट्रीय टीम के साथ ही रहना है।”

उन्होंने स्पष्ट किया कि अगर कोई उनसे बेहतर कोच आता है, तो वह टीम के हित में होगा।

“अगर कोई बेहतर आता है (बल्लेबाजी कोच की भूमिका में), तो यह टीम के लिए होगा। बांग्लादेश टीम मेरे पिता या दादा की संपत्ति नहीं है।”

सलाहुद्दीन ने बल्लेबाजी कोच की भूमिका को एक डॉक्टर से भी जोड़ा, जो समस्या का निदान करता है और सही उपचार प्रदान करता है। यह दर्शाता है कि वह अपनी भूमिका को कितनी गंभीरता और जिम्मेदारी से देखते हैं। उन्होंने अपनी मानसिक शक्ति का भी उल्लेख किया, जो उन्हें इन कठिन परिस्थितियों में खड़े रहने में मदद करती है।

“शायद मैं मानसिक रूप से मजबूत हूं। नहीं तो, कई और अब तक टूट चुके होते। और ऐसा नहीं है कि मुझे यहीं काम करना है। मेरे पास और भी काम हैं। मैंने इस नौकरी का पीछा नहीं किया। मैं यहां इसलिए हूं क्योंकि मुझे लगा कि मैं टीम को बेहतर बनाने में मदद कर सकता हूं – भले ही थोड़ा ही सही।”

स्थानीय कोचों का संघर्ष और अनिश्चित भविष्य

मोहम्मद सलाहुद्दीन बांग्लादेश में स्थानीय कोचों के आसपास की संस्कृति को बदलने की उम्मीद के साथ राष्ट्रीय सेटअप में आए थे, जिन्हें अक्सर अंतरराष्ट्रीय कोचों के मुकाबले जगह बनाने में मुश्किल होती है। लगभग तीन दशकों से क्रिकेटरों को आकार देने वाले सलाहुद्दीन ने वेस्टइंडीज दौरे के दौरान बल्लेबाजी कोच की भूमिका संभाली थी, जो मुख्य कोच फिल सिम्मन्स का समर्थन करने के लिए उनकी मूल वरिष्ठ सहायक कोच की भूमिका के अतिरिक्त थी।

लेकिन अब बोर्ड से अधीरता के संकेत अधिक स्पष्ट होते जा रहे हैं। क्या उन्हें टीम में वह `भूख और मानसिकता` पैदा करने के लिए समय दिया जाएगा, जैसा वह चाहते हैं? या फिर वह भी 2019 में श्रीलंका से ODI श्रृंखला में हार के बाद हटाए गए पूर्व कोच खालेद महमूद की तरह बदल दिए जाएंगे?

सलाहुद्दीन का कहना है कि उन्हें पद से हटा दिया जाए तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी, बशर्ते यह टीम के हित में हो और बिना किसी निराधार आरोप के।

“हमें अभी सफलता की विलासिता नहीं मिल रही है। टीम नियमित रूप से हार रही है। मुझे पसंदीदावाद दिखाने से क्या फायदा होगा? यह कोई ऐसी विजेता टीम नहीं है जहां मैं किसी को भी बिना सवाल के XI में शामिल कर सकूं। हम अच्छा क्रिकेट नहीं खेल रहे हैं। एक टीम सदस्य के रूप में, निश्चित रूप से मैं टीम को सफल होते देखना चाहता हूं।”

क्रिकेट के मैदान पर जीत-हार तो होती ही रहती है, लेकिन कोचिंग की इस पेचीदा दुनिया में, `सफलता की विलासिता` के बिना पसंदीदावाद के आरोप लगाना, क्या यह न्यायसंगत है? यह सवाल अब भी बांग्लादेश क्रिकेट के क्षितिज पर अनसुलझा है। मोहम्मद सलाहुद्दीन का भविष्य क्या होगा, यह तो वक्त ही बताएगा।

प्रमोद विश्वनाथ

बेंगलुरु के वरिष्ठ खेल पत्रकार प्रमोद विश्वनाथ फुटबॉल और एथलेटिक्स के विशेषज्ञ हैं। आठ वर्षों के अनुभव ने उन्हें एक अनूठी शैली विकसित करने में मदद की है।

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