भारत-पाकिस्तान: मैदान पर बिछी शतरंज की बिसात और ‘खेल भावना’ का कश्मकश

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भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि भावनाओं का एक ज्वार है। जब ये दोनों टीमें मैदान पर उतरती हैं, तो अरबों निगाहें टिकी होती हैं, हर गेंद पर साँसें थम जाती हैं। लेकिन हाल के एशिया कप मुकाबलों ने खेल के जुनून से परे एक नई बहस छेड़ दी है: क्या प्रतिद्वंद्विता की आंच इतनी बढ़ गई है कि `खेल भावना` ही मैदान से गायब हो रही है?

शशि थरूर का `खेल भावना` संदेश: जब कारगिल के धुएँ में भी हाथ मिले थे

कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस मुद्दे पर अपनी स्पष्ट राय रखी है, जिसमें उन्होंने `खेल भावना` को राजनीति और सैन्य संघर्षों से अलग रखने की बात कही है। उनका तर्क सरल लेकिन गहरा है: यदि हमें पाकिस्तान के खिलाफ खेलने में इतनी ही आपत्ति है, तो हमें खेलना ही नहीं चाहिए। लेकिन एक बार जब खेलने का निर्णय हो जाता है, तो हमें `खेल भावना` का सम्मान करना चाहिए, जिसमें खिलाड़ियों के बीच हाथ मिलाना भी शामिल है।

थरूर ने 1999 के कारगिल युद्ध का उदाहरण दिया, एक ऐसा समय जब हमारे सैनिक देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे रहे थे। उस कठिन दौर में भी, भारतीय टीम इंग्लैंड में पाकिस्तान के खिलाफ वर्ल्ड कप मैच खेल रही थी और खिलाड़ी एक-दूसरे से हाथ मिला रहे थे। उनकी यह टिप्पणी एक तीखी याद दिलाती है कि खेल का मंच कभी-कभी सबसे गहरे राजनीतिक मतभेदों के बावजूद सौहार्द का प्रतीक बन सकता है। लेकिन आज, सामान्य हाथ मिलाने पर भी सवाल उठ रहे हैं, जो एक विचारणीय विषय है। ऐसा लगता है, हम प्रगति की ऐसी दौड़ में हैं, जहाँ पीछे मुड़कर देखना भी एक विलासिता बन गया है!

मैदान पर उठे विवाद और `अनावश्यक` इशारों की दास्तान

हाल ही में एशिया कप के सुपर फोर मुकाबले के दौरान हुई कुछ घटनाओं ने इस बहस को और हवा दी है। भारतीय टीम प्रबंधन ने पाकिस्तान के क्रिकेटर साहिबजादा फरहान और हारिस रऊफ के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) में आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई है। आरोप है कि उनके ऑन-फील्ड व्यवहार ने स्वीकार्य सीमाओं को पार किया।

साहिबजादा फरहान पर आरोप है कि उन्होंने अपने अर्धशतक का जश्न एक बंदूक की तरह बल्ले को पकड़कर मनाया, जिसे एक असंवेदनशील और उत्तेजक इशारा माना गया। यह इशारा उस माहौल में और भी अनुचित लगा जहाँ पहले से ही तनाव की स्थिति बनी हुई है। ऐसा लगा मानो वे मैदान पर क्रिकेट खेलने नहीं, बल्कि किसी `अदृश्य दुश्मन` को ललकारने आए हों, जबकि दर्शक तो सिर्फ चौके-छक्के देखना चाहते थे!

वहीं, तेज गेंदबाज हारिस रऊफ कई घटनाओं के केंद्र में रहे। संजू सैमसन को आउट करने के बाद उनकी आक्रामक प्रतिक्रिया काफी चर्चा में रही। बाद में, बाउंड्री रोप के पास, भारतीय दर्शकों की हूटिंग पर उन्होंने अपनी उँगलियों से `0-6` का इशारा किया। यह इशारा पाकिस्तान के उन निराधार दावों की ओर संकेत था कि उन्होंने भारत के छह फाइटर जेट गिराए थे। दिलचस्प बात यह है कि इसी रऊफ को टी-20 वर्ल्ड कप 2022 में विराट कोहली ने दो लगातार छक्के जड़े थे, जिनमें से एक को ICC ने `शताब्दी का शॉट` करार दिया था। दर्शकों ने `विराट कोहली` के नारों से उन्हें छेड़ा, जो उनके लिए शायद उस `0-6` से ज़्यादा चोट पहुँचाने वाला रहा होगा। खेल के मैदान पर जवाब बल्ले या गेंद से देना ही उचित होता है, उँगलियों से नहीं, खासकर जब स्कोरबोर्ड कुछ और ही कह रहा हो!

शिकायतों का दौर: क्या क्रिकेट बन रहा `कूटनीति` का अखाड़ा?

थरूर का कहना है कि दोनों तरफ से आई प्रतिक्रियाएं खेल भावना की कमी दिखाती हैं। यदि पाकिस्तानी टीम ने पहली बार अपमानित महसूस करने के बाद दूसरी बार हमें अपमानित करने का फैसला किया, तो यह दर्शाता है कि खेल भावना दोनों ही पक्षों में कम है। और ऐसा लगता है कि मैदान पर केवल खिलाड़ी ही नहीं, बल्कि उनके क्रिकेट बोर्ड भी इस `शीत युद्ध` में पीछे नहीं हट रहे हैं। पाकिस्तानी क्रिकेट बोर्ड (PCB) ने भी इससे पहले भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव के खिलाफ ICC में दो शिकायतें दर्ज कराई थीं, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 14 सितंबर के मैच के बाद पहलगाम घटना पर `राजनीतिक` टिप्पणी की थी। ऐसा प्रतीत होता है कि क्रिकेट के नियम अब `जेनेवा कन्वेंशन` की तरह बारीकी से देखे जा रहे हैं, लेकिन खेल भावना कहीं खोती जा रही है, जैसे किसी मैच में टॉस जीतकर भी हारने वाला कप्तान!

निष्कर्ष: खेल या `प्रतिष्ठा` का संग्राम?

यह स्थिति हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट सिर्फ एक खेल रहेगा, या यह राजनीतिक और व्यक्तिगत प्रतिशोध का मैदान बनता जाएगा। खेल, अपने शुद्धतम रूप में, प्रतिस्पर्धी भावना और सम्मान का संगम होना चाहिए। खिलाड़ी मैदान पर अपनी पूरी क्षमता से लड़ें, लेकिन खेल खत्म होने के बाद, वे एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि साथी खिलाड़ी हों। शायद यही `खेल भावना` का असली अर्थ है, जिसे शशि थरूर याद दिलाना चाहते हैं। उम्मीद है कि आने वाले समय में खिलाड़ी और बोर्ड दोनों ही इस `खेल भावना` को प्राथमिकता देंगे, ताकि क्रिकेट का असली आनंद बरकरार रह सके, बिना किसी अतिरिक्त `मसाले` के, जो अक्सर खेल के स्वाद को बिगाड़ देता है।

निरव धनराज

दिल्ली के प्रतिभाशाली खेल पत्रकार निरव धनराज हॉकी और बैडमिंटन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। उनकी रिपोर्टिंग में खिलाड़ियों की मानसिकता की गहरी समझ झलकती है।

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