भारतीय वनडे क्रिकेट: दिग्गजों का ढलता सूरज और युवा कप्तान की नई सुबह

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भारतीय क्रिकेट में एक महत्वपूर्ण मोड़ आ गया है। पिछले दो दशकों से भारतीय वनडे टीम के स्तंभ रहे रोहित शर्मा और विराट कोहली, जिनकी मैदान पर मौजूदगी ही टीम की पहचान बन गई थी, अब शायद उस `अपरिहार्य` टैग से वंचित होने लगे हैं। टेस्ट और टी20 अंतरराष्ट्रीय प्रारूपों में उनकी भूमिका पहले ही सीमित हो चुकी थी, लेकिन अब वनडे में भी उनका भविष्य उतना निश्चित नहीं रहा जितना पहले हुआ करता था। चयन समिति ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि अब कोई विशेष विशेषाधिकार नहीं होंगे, और सभी खिलाड़ी चयन के एक समान मानदंडों के अधीन होंगे।

शुभमन गिल की नई पारी और 2027 विश्व कप का खाका

हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आगामी वनडे श्रृंखला के लिए टीम के चयन के दौरान, राष्ट्रीय चयन समिति ने शुभमन गिल पर अटूट विश्वास जताते हुए उन्हें वनडे टीम का कप्तान नियुक्त किया है। यह फैसला 2027 विश्व कप को ध्यान में रखते हुए लंबी अवधि की योजना का हिस्सा है। गिल की कप्तानी में युवा भारत की परिकल्पना स्पष्ट रूप से दिखती है, लेकिन रोहित और कोहली के भविष्य को लेकर वही स्पष्टता अनुपस्थित है। चयन समिति के अध्यक्ष, अजीत अगरकर ने इस विषय पर सीधी टिप्पणी से परहेज करते हुए कहा, “मुझे नहीं लगता कि हमें आज इस बारे में बात करने की ज़रूरत है।” यह चुप्पी ही बहुत कुछ कह जाती है। चयनकर्ता अब तीन अलग-अलग प्रारूपों में तीन अलग-अलग कप्तान रखने के इच्छुक नहीं हैं, जो संकेत देता है कि शुभमन गिल को भविष्य में सभी प्रारूपों में कप्तानी की बागडोर सौंपी जा सकती है, यदि उनका प्रदर्शन और नेतृत्व प्रभावी रहता है।

उम्र का वह फैक्टर जो दिग्गजों पर भारी पड़ रहा है

क्रिकेट में प्रतिभा के साथ-साथ उम्र भी एक ऐसा कारक है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। चयनकर्ताओं ने रोहित और कोहली की उम्र को गंभीरता से लिया है। 2027 विश्व कप शुरू होने तक विराट कोहली 39 वर्ष के हो जाएंगे, जबकि रोहित शर्मा 40 के। यह एक ऐसा “तकनीकी” पहलू है जो उनके पक्ष में नहीं है, और समझा जाता है कि यह बात चयनकर्ताओं के मन में काफी समय से चल रही थी। एक खिलाड़ी के रूप में उनकी क्षमता पर कोई सवाल नहीं है, लेकिन एक दीर्घकालिक कप्तान और टीम के कोर सदस्य के रूप में, आयु निश्चित रूप से एक महत्वपूर्ण विचारणीय विषय बन गई है।

घरेलू क्रिकेट का न्योता: क्या यह `बैक टू स्कूल` का समय है?

और अगर आपको लगा कि यह सिर्फ उम्र का मामला है, तो चयन समिति ने एक और शर्त रखी है, जो अब `गैर-परक्राम्य` बताई जा रही है: अंतरराष्ट्रीय ड्यूटी पर न होने पर खिलाड़ियों को घरेलू क्रिकेट खेलना होगा। अगरकर ने जोर देकर कहा कि “जब भी खिलाड़ी उपलब्ध हों, उन्हें घरेलू क्रिकेट खेलना चाहिए। यही एकमात्र तरीका है जिससे आप खुद को तेज और खेल में सक्रिय रख सकते हैं।” विराट कोहली ने 2013 के बाद से विजय हजारे ट्रॉफी (50 ओवर का घरेलू टूर्नामेंट) में हिस्सा नहीं लिया है, जबकि रोहित ने आखिरी बार 2018 में यह मैच खेला था। अब, यह उन दिग्गजों के लिए एक अप्रत्याशित चुनौती हो सकती है, जिन्हें दशकों से इस तरह की अपेक्षाओं से छूट मिलती रही है। यह कुछ-कुछ ऐसा है जैसे किसी सफल सीईओ से कहा जाए कि उसे अपनी पुरानी इंटर्नशिप फिर से करनी पड़ेगी ताकि वह `तेज` और `सतर्क` बना रहे।

प्रदर्शन ही सर्वोपरि: रन बनाना ही एकमात्र रास्ता

अंततः, चाहे खिलाड़ी कोई भी हो, प्रदर्शन ही उसे टीम में जगह दिलाता है। अगरकर ने स्पष्ट किया कि रोहित और कोहली से अपेक्षाएं नहीं बदली हैं – उन्हें रन बनाते रहना होगा। “मेरा मतलब है, वे वर्षों से क्या कर रहे हैं, रन बनाने की कोशिश कर रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि यह बदलता है,” मुख्य चयनकर्ता ने कहा। “आप अभी भी अपने देश के लिए खेल रहे हैं। वे अभी भी ड्रेसिंग रूम में नेता हैं, और आप उम्मीद करते हैं कि वे ऐसा ही रहें। लेकिन अंततः, यह रन हैं। उन्होंने इनमें से टनों बनाए हैं, दोनों ने। और इस प्रारूप में बेहद सफल रहे हैं। इसलिए हमें उम्मीद है कि वे ऐसा करते रहेंगे।” यह एक सीधा संदेश है: नाम मायने नहीं रखता, नंबर मायने रखते हैं।

आगे का रास्ता: एक चुनौतीपूर्ण संक्रमण काल

रोहित शर्मा की प्रारंभिक योजना 2027 विश्व कप तक खेलने की थी। अब, चयन समिति के इस कठोर और रणनीतिक बदलाव को वह कैसे लेंगे, यह देखना बाकी है। इन दिग्गजों के इर्द-गिर्द 2027 विश्व कप की योजना बनाना अब सीधा नहीं रहेगा। आयु कारक के अलावा, टूर्नामेंट से पहले भारत के केवल लगभग नौ से दस वनडे मैच निर्धारित हैं (जब तक कि कुछ अतिरिक्त श्रृंखलाएं नहीं जोड़ी जातीं), जो इन खिलाड़ियों के लिए खुद को साबित करने के अवसरों को सीमित करते हैं। भारतीय क्रिकेट एक महत्वपूर्ण संक्रमण काल से गुजर रहा है। यह शायद उस युग का अंत है जहाँ कुछ खिलाड़ी `अछूत` माने जाते थे, और उस युग की शुरुआत जहाँ `टीम पहले` की नीति हर नियम पर भारी पड़ेगी। यह देखना रोमांचक होगा कि यह नया अध्याय भारतीय क्रिकेट को कहाँ ले जाता है, और क्या ये दिग्गज अपनी विरासत को बरकरार रख पाते हैं या नई पीढ़ी के लिए रास्ता बनाते हैं।

प्रमोद विश्वनाथ

बेंगलुरु के वरिष्ठ खेल पत्रकार प्रमोद विश्वनाथ फुटबॉल और एथलेटिक्स के विशेषज्ञ हैं। आठ वर्षों के अनुभव ने उन्हें एक अनूठी शैली विकसित करने में मदद की है।

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