देर से मिला जीत का जश्न: प्रोटियाज की टेस्ट चैम्पियनशिप गदा और समय का खेल

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दक्षिण अफ्रीकी क्रिकेट के लिए, यह एक ऐसा पल था जिसका इंतजार पीढ़ियों से हो रहा था – ICC विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप की गदा। यह उनके पुरुष या महिला टीम द्वारा 1998 के बाद जीती गई पहली वैश्विक ट्रॉफी थी। यह जीत क्रिकेट के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ रही थी। लेकिन इस ऐतिहासिक जीत का सार्वजनिक रूप से जश्न मनाना, जैसा कि अक्सर खेलों में होता है, एक अप्रत्याशित चुनौती साबित हुआ। जीत के पूरे 105 दिन बाद, जब `प्रोटियाज` टीम इस चमचमाती गदा के साथ देश के शहरों में निकली, तो सवाल यह था: क्या यह बहुत देर हो चुकी थी?

गदा का अदृश्य नायक: क्रेग स्टेन और उनका महत्वपूर्ण मिशन

केप टाउन में हुए इस भव्य, पर कुछ हद तक फीके, जश्न परेड में सबसे महत्वपूर्ण शख्सियत न तो कोई खिलाड़ी था और न ही कोई कोच, बल्कि एक अनाम नायक था – क्रेग स्टेन। 20 के दशक के शुरुआत में एक फुर्तीले युवक, पोलो शर्ट, चिनोस और समझदार जूतों में सजे, क्रेग किसी गुप्त मिशन पर दिख रहे थे। और वाकई वह थे भी। उनकी जिम्मेदारी थी 76 सेंटीमीटर लंबी, पांच किलोग्राम वजनी, सोने और चांदी से बनी इस शानदार `लॉलीपॉप` की सुरक्षा करना। जब यह गदा कप्तान टेम्बा बावुमा या उनके खिलाड़ियों के हाथों में नहीं होती, तो यह सुरक्षित रूप से क्रेग की मुलायम भूरे रंग की थैली में लिपटी, उनके नाजुक हाथों में होती। यह एक दिलचस्प पहलू था कि एक विश्व कप ट्रॉफी की सुरक्षा का जिम्मा एक ऐसे `नायक` के कंधे पर था, जिसका नाम शायद ही कोई जानता हो। क्या यह जीत का एक कम आंका गया, फिर भी अत्यंत महत्वपूर्ण, हिस्सा नहीं है?

जीत की गूँज और समय का फासला: उम्मीदें और वास्तविकता

दक्षिण अफ्रीका ने ऑस्ट्रेलिया को पांच विकेट से हराकर WTC फाइनल जीता था, लेकिन यह ऐतिहासिक जीत 14 जून को मिली थी। परेड 105 दिन बाद हुई। इन 105 दिनों में, देशवासियों ने भले ही यह नहीं भूला था कि उनकी टीम ने विश्व खिताब जीता है, लेकिन जीवन अपनी सामान्य गति से आगे बढ़ चुका था। तुरंत मिली जीत का उत्साह अक्सर समय के साथ थोड़ा मंद पड़ जाता है।

केप टाउन की सड़कों पर, खिलाड़ियों और गदा (और निश्चित रूप से क्रेग स्टेन) के लिए खुली बस में सवार होकर निकली परेड के लिए भीड़ वैसी नहीं थी जैसी एक विश्व चैम्पियन टीम के लिए उम्मीद की जाती है। जहाँ-तहाँ प्रशंसकों के छोटे-छोटे समूह `प्रोटियाज` का अभिवादन करते दिखे। कुछ तो धीमी गति से चल रहे इस दृश्य को देखकर हैरान ही रह गए, जिनमें एक निर्माण मजदूर भी शामिल था, जिसने अपनी उलझन पर काबू पाते हुए जोशीला सलाम किया। यह नजारा, एक तरह से, आधुनिक खेल के व्यस्त कार्यक्रम और जनता की बदलती प्राथमिकताओं का एक सटीक प्रतिबिंब था, जहाँ क्रिकेट का जश्न, रग्बी के जुनून से थोड़ा अलग दिखा।

रग्बी बनाम क्रिकेट: समय का सबक और जन-भागीदारी

2019 में, जब `स्प्रिंगबॉक्सर` (दक्षिण अफ्रीका की रग्बी टीम) ने रग्बी विश्व कप फाइनल जीता था, तो उन्होंने अपनी विलियम वेब-एलिस कप ट्रॉफी के साथ देशव्यापी दौरा किया था। उस समय, उनके बसों के पीछे भीड़ लगी थी, सड़कें प्रशंसकों से भरी थीं, बालकनी पर समर्थकों का हुजूम था जो अपने नायकों को देखना चाहते थे। लेकिन `बॉक्सर` ने यह जश्न अपनी जीत के सिर्फ नौ दिनों बाद मनाया था। क्रिकेटरों के जश्न में यह अंतर 96 दिनों का था, जो जन-भागीदारी के मामले में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया। क्या इसी वजह से क्रिकेट टीम का स्वागत थोड़ा ठंडा रहा? खेल की दुनिया में, समय, वास्तव में, सब कुछ है – विशेषकर जब बात प्रशंसकों के उत्साह को भुनाने की हो।

देरी से जश्न, पर `भाव` वही: टीम का अटल दृष्टिकोण

क्या गदा को दिखाने में बहुत देर हो चुकी थी? कोच शुक्रि कॉनरैड का कहना था: “जैसा कि मैं हमेशा अपनी बेटियों से कहता था, देर से आना, गर्भवती होने से बेहतर है।” उनके इस मज़ाक पर रिपोर्टर दिल खोलकर हँसे, लेकिन उनका संदेश गंभीर था:

“हमने `गीस` (उत्साह) नहीं खोया है और हमने वह भावना नहीं खोई है। यह बहुत अच्छी बात है कि हमें बाहर आकर देश को यह दिखाने का अवसर मिला कि हम उनकी कितनी सराहना करते हैं, और देश को यह दिखाने का भी कि वे हमारी कितनी सराहना करते हैं। मुझे नहीं लगता कि हम इसे कभी भूलेंगे। और हालांकि हमें सौ दिनों से भी ज्यादा समय हो गया है, यह अगला WTC चक्र शुरू करने के लिए आदर्श समय पर आया है।”

कॉनरैड का तर्क व्यावहारिक था। टीम को अपनी जीत के बाद जिम्बाब्वे में टेस्ट खेलने पड़े, और फिर ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में वनडे और टी20 अंतरराष्ट्रीय मैच। इन 105 दिनों में से 79 दिनों तक वे खेल में व्यस्त रहे, यात्रा और अनुकूलन के समय को भी जोड़ लें तो जश्न के लिए शायद ही कोई “खिड़की” बची थी। यह क्रिकेट के अंतर्राष्ट्रीय कैलेंडर की एक कठोर सच्चाई है, जहाँ भव्य जश्न के लिए शायद ही कभी पर्याप्त समय मिल पाता है।

खिलाड़ी एडेन मार्कराम ने भी इस बात से सहमति जताई: “यह कुछ व्यस्त दिन रहे हैं। हमने बहुत समय उड़ान भरने और बस में बिताया है, लेकिन विभिन्न शहरों के लोगों के साथ इसे साझा करना खास रहा है। मुझे यकीन है कि मैच के तुरंत बाद ऐसा करना ज्यादा मजेदार होता, जब आप अभी भी उस पल में जी रहे होते और जश्न मना रहे होते। लेकिन यह एक आदर्श दुनिया में होता। हम पाकिस्तान के लिए तैयार हो रहे हैं, इसलिए हम सचमुच अपने बालों को नहीं खोल रहे हैं। लेकिन यह एक छिपा हुआ वरदान हो सकता है।” उनका इशारा शायद इस बात पर था कि देरी से मिला यह जश्न, उन्हें नई चुनौतियों के लिए प्रेरित करने का काम करेगा, बजाय कि उन्हें पुरानी जीत के नशे में डूबो दे।

निष्कर्ष: गदा, गौरव और भविष्य की राह

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट बस अब कहीं भी ज्यादा देर तक नहीं रुकती। यह एक सतत यात्रा है, जहाँ एक जीत का जश्न अक्सर अगली चुनौती के आगमन के साथ मेल खाता है। दक्षिण अफ्रीकी प्रोटियाज के लिए, यह गदा केवल एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि एक कठिन परिश्रम और अटूट भावना का प्रतीक है। भले ही यह जश्न थोड़ा देरी से हुआ हो, लेकिन यह टीम के `गीस` को फिर से जगाने और आगामी WTC चक्र के लिए प्रेरणा लेने का एक महत्वपूर्ण अवसर था। और जब भी यह गदा मैदान पर या ऑफ-मैदान पर हो, क्रेग स्टेन जैसे लोग इसे सुरक्षित रखने के लिए हमेशा तैयार रहेंगे, भले ही उनके नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज न हों। यह खेल की अनकही कहानियों का एक हिस्सा है, जहाँ बड़े नामों के पीछे छोटे, लेकिन महत्वपूर्ण योगदान भी होते हैं, जो खेल के गौरव को अक्षुण्ण बनाए रखते हैं।

लेखक: क्रिकेट विशेषज्ञ
प्रमोद विश्वनाथ

बेंगलुरु के वरिष्ठ खेल पत्रकार प्रमोद विश्वनाथ फुटबॉल और एथलेटिक्स के विशेषज्ञ हैं। आठ वर्षों के अनुभव ने उन्हें एक अनूठी शैली विकसित करने में मदद की है।

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