दुबई में एशिया कप 2025 का फाइनल, भारत और पाकिस्तान के बीच मुकाबला… एक ऐसा मैच जिसका हर क्रिकेट प्रेमी बेसब्री से इंतजार करता है। मैदान पर रोमांच अपने चरम पर था, टिकटें हाथोंहाथ बिक चुकी थीं और दुनिया की निगाहें इस महासंग्राम पर टिकी थीं। लेकिन दर्शकों की भीड़ से परे, एक और कहानी पर्दे के पीछे आकार ले रही थी – भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के गलियारों में। एक तरफ खेल का महाकुंभ अपनी चरम सीमा पर था, तो दूसरी तरफ भारतीय क्रिकेट प्रशासन में बदलाव की आहट गूंज रही थी।
मैदान से गैरहाजिरी: कूटनीति का `अनलिखा` नियम
यह कोई साधारण मैच नहीं था, बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच पहला एशिया कप फाइनल था, जिसने इतिहास रच दिया था। फिर भी, बीसीसीआई के किसी भी अधिकारी ने इस ऐतिहासिक मुकाबले में शिरकत नहीं की। यही नहीं, समूह चरण और सुपर 4 के मैचों में भी उनकी गैरहाजिरी दर्ज की गई। सूत्रों की मानें तो इसकी मुख्य वजह पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के प्रमुख और एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) के मुखिया मोहसिन नकवी से बातचीत से बचना था। शायद यह क्रिकेट की बिसात पर एक ऐसा `कूटनीतिक छक्का` था, जिसे मैदान के बजाय प्रशासनिक डेस्क पर जड़ा गया। खेल भावना के साथ कूटनीति का यह अनूठा मिश्रण, दर्शकों को असमंजस में डाल सकता है, लेकिन क्रिकेट बोर्ड के लिए यह एक स्पष्ट संदेश था। यह दिखाता है कि जब देशों के संबंध पेचीदा हों, तो खेल के मैदान से बाहर भी `गेम` चलता रहता है।
एक नए युग की शुरुआत: मिथुन मन्हास की ताजपोशी
जिस रविवार को दुबई में क्रिकेट का ये मुकाबला चल रहा था, उसी दिन दिल्ली में बीसीसीआई की वार्षिक आम बैठक (एजीएम) में एक और बड़ा ऐलान हुआ। मिथुन मन्हास, एक पूर्व प्रथम श्रेणी क्रिकेटर, को भारतीय क्रिकेट बोर्ड का नया अध्यक्ष नियुक्त किया गया। उन्होंने रोजर बिन्नी की जगह ली, जो अगस्त 2025 में अपने पद से हट गए थे। यह घोषणा भारत-पाकिस्तान मैच से महज कुछ घंटे पहले हुई, मानो एक बड़े मैच से पहले एक बड़ा प्रशासनिक टॉस हो गया हो। मिथुन मन्हास, जो अब तक दिल्ली और जम्मू-कश्मीर के लिए घरेलू क्रिकेट खेल चुके थे और कोचिंग भूमिकाओं में भी सक्रिय रहे थे, अब दुनिया के सबसे धनी और प्रभावशाली क्रिकेट बोर्ड की बागडोर संभालेंगे। वह सौरव गांगुली और रोजर बिन्नी के बाद तीसरे ऐसे पूर्व क्रिकेटर हैं, जिन्हें यह प्रतिष्ठित पद मिला है। यह दर्शाता है कि भारतीय क्रिकेट अब अपने पूर्व खिलाड़ियों को न केवल मैदान पर, बल्कि प्रशासनिक मोर्चे पर भी महत्वपूर्ण भूमिकाएं सौंपने को तैयार है। अनुभव का यह संक्रमण निश्चित रूप से बोर्ड के निर्णयों में एक नई सोच ला सकता है।
नई नेतृत्व टीम: अनुभव और विशेषज्ञता का संगम
मन्हास की नियुक्ति के साथ ही, बोर्ड में कुछ और महत्वपूर्ण बदलाव और पुष्टियां हुईं। राजीव शुक्ला को उपाध्यक्ष और देवजीत सैकिया को सचिव के रूप में फिर से चुना गया, जो स्थिरता और निरंतरता का संकेत है। सौराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष जयदेव शाह को एपेक्स काउंसिल सदस्य के रूप में चुना गया, जबकि आईपीएल गवर्निंग काउंसिल के अध्यक्ष अरुण धूमल ने अपना पद बरकरार रखा। चयन समिति में भी नए चेहरे देखने को मिले, जहां अजीत अगरकर की अगुवाई वाली पुरुष चयन समिति में पूर्व भारतीय अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी आर.पी. सिंह और प्रज्ञान ओझा को शामिल किया गया। यह एक संतुलित टीम बनाने का प्रयास प्रतीत होता है, जिसमें अनुभवी प्रशासकों और पूर्व क्रिकेटरों की विशेषज्ञता का संगम हो।
मन्हास का विजन और `अनाधिकारिक` पहला संदेश
अपनी नियुक्ति पर मिथुन मन्हास ने कहा, “दुनिया के बेहतरीन क्रिकेट बोर्ड का अध्यक्ष बनना एक परम सम्मान है और साथ ही यह एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी है। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि मैं इसे अपनी सर्वोत्तम क्षमताओं, समर्पण और जुनून के साथ पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध रहूंगा।” ये शब्द एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत देते हैं। हालांकि, उनकी पहली “राजकीय यात्रा” (या कहें कि गैर-यात्रा) भारत-पाकिस्तान मैच से अनुपस्थिति के रूप में दर्ज की गई, जो शायद आने वाले समय में बोर्ड की कूटनीतिक कठोरता का एक सूक्ष्म संकेत हो सकता है। एक तरफ खेल को आगे बढ़ाने का जुनून, दूसरी तरफ कुछ राजनीतिक रेखाओं को पार न करने की दृढ़ता। यह एक दिलचस्प विरोधाभास है कि क्रिकेट का नया कप्तान बनने के तुरंत बाद, उन्होंने मैदान पर भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ मैच को `आधिकारिक तौर पर` अनदेखा किया।
भारतीय क्रिकेट के लिए इसके मायने
ये प्रशासनिक बदलाव भारतीय क्रिकेट के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। मिथुन मन्हास जैसे पूर्व क्रिकेटर का अध्यक्ष बनना, खिलाड़ियों की जरूरतों और जमीनी स्तर की चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझने में मदद कर सकता है। इससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में अधिक क्रिकेट-केंद्रित दृष्टिकोण आ सकता है। वहीं, पाकिस्तान से प्रशासनिक दूरी बनाए रखने का निर्णय, भले ही मैदान पर मुकाबला कितना भी रोमांचक क्यों न हो, दोनों देशों के बीच मौजूदा राजनीतिक तनाव का एक स्पष्ट दर्पण है। यह दर्शाता है कि क्रिकेट, सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि एक जटिल कूटनीतिक मंच भी है, जहां हर कदम का गहरा अर्थ होता है।
निष्कर्ष
तो, दुबई में जब गेंद और बल्ले के बीच जंग जारी थी, तब दिल्ली में भारतीय क्रिकेट के भविष्य की नई पटकथा लिखी जा रही थी। मिथुन मन्हास और उनकी नई टीम के कंधों पर भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों पर ले जाने की जिम्मेदारी है, साथ ही उन कूटनीतिक मोर्चों को भी संभालना है जहां खेल की सीमाएं राजनीति से मिलती हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय क्रिकेट का यह नया अध्याय कितनी सफलतापूर्वक इन आंतरिक और बाहरी चुनौतियों का सामना करता है, और क्या यह `मैदान के बाहर` की रणनीति `मैदान पर` भारतीय क्रिकेट की सफलता को प्रभावित करती है या उसे और मजबूत करती है।