विशेषज्ञों के सवालों के घेरे में टीम इंडिया की `लचीली` रणनीति!
एशिया कप 2025 में भारतीय टीम की बल्लेबाजी रणनीति ने क्रिकेट पंडितों और करोड़ों प्रशंसकों को एक समान रूप से हैरान कर दिया है। बांग्लादेश के खिलाफ सुपर फोर मुकाबले में, जब टीम इंडिया को एक स्थिर और विश्वसनीय पारी की सख्त जरूरत थी, तब कुछ ऐसे फैसले लिए गए जिन पर सवाल उठना लाज़मी था। मैच में भारत के शुरुआती विकेट जल्दी गिरने के बाद भी, संजू सैमसन जैसे इन-फॉर्म बल्लेबाज को नजरअंदाज करके शिवम दुबे और यहाँ तक कि अक्षर पटेल को पहले भेजा गया। यह दांव उलटा पड़ा और भारतीय पारी उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पाई, जिससे एक नई बहस छिड़ गई है कि क्या भारतीय टीम `लचीलेपन` के नाम पर अनावश्यक जोखिम ले रही है?
मैदान पर बनी पहेली: किसे भेजे और किसे रोके?
दुबई में हुए इस मुकाबले में, टॉस हारकर पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत की शुरुआत शानदार थी। पावरप्ले में 72 रन, और 11 ओवर में 112 रन पर दो विकेट। सब कुछ योजना के अनुसार चल रहा था। लेकिन कहानी का दूसरा पहलू अगले नौ ओवर में सामने आया, जब टीम सिर्फ 56 रन जोड़कर चार और विकेट गंवा बैठी। जब शुभमन गिल सातवें ओवर में आउट हुए, तो स्वाभाविक उम्मीद थी कि नंबर तीन पर संजू सैमसन आएंगे, जो हाल ही में शानदार फॉर्म में थे और बड़े शॉट्स लगाने की क्षमता रखते हैं। लेकिन टीम प्रबंधन ने शिवम दुबे को भेजा, जो सिर्फ 3 गेंदों पर 2 रन बनाकर पवेलियन लौट गए, जिससे भारतीय पारी पर दबाव और बढ़ गया।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। 15वें ओवर में जब पाँचवाँ विकेट गिरा, तब भी संजू सैमसन को किनारे रखा गया और अक्षर पटेल को बल्लेबाजी के लिए भेजा गया। अक्षर ने 15 गेंदों पर 10 रन बनाए। यह सब देखकर हर कोई भौंचक्का रह गया कि आखिर टीम की रणनीति क्या थी और क्या `लचीलेपन` की यह नीति टीम के लिए उल्टा नहीं पड़ रही थी?
क्रिकेट पंडितों का `हैरान` होना: आकाश चोपड़ा और वरुण आरोन की राय
पूर्व भारतीय क्रिकेटर आकाश चोपड़ा और वरुण आरोन ने ईएसपीएनक्रिकइंफो के `टाइम आउट` कार्यक्रम में इस रणनीति को `समझ से परे` और `पहेली` बताया। आकाश चोपड़ा ने टीम के इस फैसले पर सीधा सवाल उठाया:
जब शुभमन गिल और अभिषेक शर्मा बल्लेबाजी कर रहे थे, तो पिच बल्लेबाजी के लिए बेहद अच्छी लग रही थी। आप गेंद को कहीं भी मार सकते थे। लेकिन फिर एक विकेट गिरता है, और फिर बल्लेबाजी क्रम समझ से बाहर हो जाता है। भारत बल्लेबाजी क्रम के साथ जो करने की कोशिश कर रहा था, वह कम से कम baffling (हैरान करने वाला) था। बांग्लादेश ने अच्छी गेंदबाजी की, लेकिन हमने खुद अपनी समस्याओं को एक बहुत ही अजीब बल्लेबाजी लाइन-अप के साथ बढ़ा दिया। मैं इसे समझ नहीं पा रहा हूँ।
वरुण आरोन ने भी अपनी निराशा व्यक्त की और सीधा सवाल पूछा, “सैमसन से आगे अक्षर? यह मुझे समझ नहीं आता।” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सैमसन ने पिछले साल तीन टी20I शतक लगाए थे, और उन्हें थोड़ा लचीलापन मिलना चाहिए था। आरोन ने भारतीय बल्लेबाजों की स्ट्राइक रेट में ज्यादा अंतर न होने पर भी सवाल उठाया, यह कहते हुए कि लगभग हर बल्लेबाज 150 की स्ट्राइक रेट से ऊपर रन बना सकता है, तो फिर इतनी अदला-बदली का मकसद क्या है? यह सवाल वाकई गंभीर है कि जब आपके पास हर भूमिका के लिए सक्षम खिलाड़ी हैं, तो क्या अनावश्यक प्रयोग जरूरी हैं?
टीम प्रबंधन का `लचीलापन` और उसका विश्लेषण
मैच के बाद, सूर्यकुमार यादव ने इस फैसले के पीछे की `तार्किक` व्याख्या दी। उन्होंने कहा,
उनकी गेंदबाजी लाइन-अप को देखते हुए – उनके पास एक बाएं हाथ का स्पिनर (नसुम अहमद) था, उनके पास एक लेग-स्पिनर (ऋषद) था – उस समय दुबे एक परफेक्ट मैच-अप थे। और उनकी एंट्री पॉइंट परफेक्ट थी – सात से 15 ओवर। तो हमने वह मौका लिया। यह अच्छा नहीं रहा, लेकिन आने वाले मैचों में हम शायद ऐसा फिर से करने की कोशिश कर सकते हैं।
टीम के बल्लेबाजी कोच सितांशु कोटक ने भी पूरे टूर्नामेंट में बल्लेबाजी क्रम में लचीलेपन की वकालत की है, यह कहते हुए कि “हर कोई किसी भी नंबर पर बल्लेबाजी करने के लिए तैयार है।” इसका एक कारण क्रीज पर बाएं-दाएं संयोजन बनाए रखना भी बताया गया। यह तर्क सुनने में बड़ा दिलचस्प लगता है, खासकर तब जब आप जानते हैं कि शिवम दुबे का स्पिन के खिलाफ प्रदर्शन हाल के समय में आंकड़ों के लिहाज़ से गिरा है। क्या सिर्फ `मैच-अप` के नाम पर एक इन-फॉर्म बल्लेबाज को नजरअंदाज करना सही है?
आँकड़े बनाम धारणाएं: क्या दांव उलटा पड़ रहा है?
सूर्यकुमार का तर्क कि दुबे स्पिनरों का सामना करने के लिए `परफेक्ट मैच-अप` थे, आँकड़ों के सामने थोड़ा कमजोर पड़ जाता है। जनवरी 2023 से अप्रैल 2024 तक टी20 क्रिकेट में स्पिन के खिलाफ दुबे का औसत 73.4 और स्ट्राइक रेट 166.1 था। लेकिन उसके बाद से, उनके आंकड़े नाटकीय रूप से गिरकर औसत 21.1 और स्ट्राइक रेट 121.8 हो गए हैं। इसका मतलब है कि जिस `हथियार` को टीम ने स्पिनरों पर आक्रमण करने के लिए भेजा, वह शायद अब उतना धारदार नहीं रहा, जितना पहले था।
इसके विपरीत, संजू सैमसन, जिन्हें पिछले साल तीन टी20I शतक लगाने के बाद भी लगातार टीम में जगह नहीं मिल रही है, उन्हें नंबर तीन पर बल्लेबाजी करने का मौका नहीं दिया गया। एक ऐसे बल्लेबाज को बाहर रखना जो अपने करियर की बेहतरीन फॉर्म में हो, यह किसी भी क्रिकेट टीम के लिए एक `मास्टरस्ट्रोक` (या शायद एक `ब्लंडरस्ट्रोक`) हो सकता है। क्या बाएं-दाएं संयोजन बनाए रखने की यह जिद, टीम को मैच जीतने से ज्यादा महत्वपूर्ण लग रही थी? अगर ऐसा है, तो यह क्रिकेट के मैदान पर डेटा और फॉर्म से ज़्यादा `धारणाओं` को महत्व देने जैसा है, जिसके परिणाम अक्सर अप्रत्याशित होते हैं।
आगे का रास्ता: क्या टीम अपनी गलतियों से सीखेगी?
भारत की इस लचीली रणनीति पर लगातार सवाल उठ रहे हैं। क्या यह केवल प्रयोगों का दौर है, या टीम प्रबंधन को अभी तक अपनी सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजी लाइन-अप नहीं मिली है? एशिया कप जैसे महत्वपूर्ण टूर्नामेंट में, जहां हर मैच मायने रखता है, इस तरह के `अविश्वसनीय` फैसले न केवल टीम के प्रदर्शन को प्रभावित कर सकते हैं, बल्कि खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को भी ठेस पहुंचा सकते हैं। स्थिरता और स्पष्टता किसी भी बड़ी टीम की पहचान होती है, और भारतीय टीम को इस दिशा में सोचने की जरूरत है कि क्या उनके `लचीलेपन` की कीमत बहुत महंगी तो नहीं पड़ रही है।
निष्कर्ष
संक्षेप में, बांग्लादेश के खिलाफ भारत की बल्लेबाजी रणनीति ने एक बार फिर क्रिकेट जगत में एक तीखी बहस छेड़ दी है। संजू सैमसन जैसे प्रतिभाशाली और इन-फॉर्म बल्लेबाज की अनदेखी और `मैच-अप` के नाम पर लिए गए फैसलों ने विशेषज्ञों और प्रशंसकों दोनों को भ्रमित किया है। क्या भारतीय टीम अपनी गलतियों से सीखेगी और आने वाले मैचों में एक अधिक सुसंगत और तर्कसंगत बल्लेबाजी क्रम के साथ उतरेगी? यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि क्रिकेट प्रेमियों की नजरें अब टीम इंडिया के हर फैसले पर टिकी होंगी। उम्मीद है, `लचीलेपन` के नाम पर `अनिश्चितता` का खेल जल्द ही बंद होगा, और सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को उनकी योग्यतानुसार मौका मिलेगा ताकि टीम इंडिया अपनी पूरी क्षमता के साथ प्रदर्शन कर सके।