एशिया कप 2025: मैदान पर भारत की जीत, मैदान के बाहर ‘खेल भावना’ की हार?

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क्रिकेट, जिसे अक्सर `सज्जनों का खेल` कहा जाता है, उसकी पहचान केवल गेंद और बल्ले की जंग से नहीं, बल्कि खेल भावना और आपसी सम्मान से भी होती है। लेकिन जब मैदान के अंदर का रोमांच, मैदान के बाहर की कड़वाहट में बदल जाए, तो सवाल उठना लाज़मी है। एशिया कप 2025 के फाइनल में भारत से मिली हार के बाद, पाकिस्तान के कप्तान सलमान अली आगा की प्रेस कॉन्फ्रेंस में व्यक्त की गई निराशा और कड़े शब्दों ने क्रिकेट जगत में एक नई बहस छेड़ दी है।

हार के बाद भड़के आगा: भारत के बर्ताव को बताया `अपमानजनक`

एशिया कप 2025 के फाइनल में भारत ने पाकिस्तान को एक रोमांचक मुकाबले में मात देकर ट्रॉफी पर कब्जा जमाया। यह टूर्नामेंट में भारत के हाथों पाकिस्तान की तीसरी हार थी। जीत के बाद जहां भारतीय खेमे में जश्न का माहौल था, वहीं पाकिस्तानी कप्तान सलमान आगा एक अलग ही लड़ाई लड़ रहे थे – खेल भावना की लड़ाई। मैच के बाद की प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनके चेहरे पर हार की निराशा से कहीं ज़्यादा, कुछ और चीज़ों का आक्रोश साफ झलक रहा था।

जब पत्रकारों ने उनसे टूर्नामेंट के दौरान भारत के `गैर-क्रिकेटिंग` विवादों के बारे में पूछा, तो आगा ने अपनी भड़ास निकालने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि वे कड़े शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहते, लेकिन भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव और उनकी टीम के बर्ताव को उन्होंने `अनादरपूर्ण` और `क्रिकेट का अपमान` बताया।

“सर, इस टूर्नामेंट में जो कुछ हुआ है वह बहुत निराशाजनक है। अगर आप क्रिकेट को देखें, तो वे सोच रहे हैं कि अगर वे हमसे हाथ नहीं मिलाते हैं, तो वे हमारा अनादर कर रहे हैं। नहीं सर, वे क्रिकेट का अनादर कर रहे हैं। आज उन्होंने जो किया, एक अच्छी टीम कभी ऐसा व्यवहार नहीं करेगी।”

हाथ मिलाने से इनकार और ट्रॉफी का विवाद: क्या खेल से बड़ा हो गया `अहंकार`?

यह विवाद केवल एक हार-जीत तक सीमित नहीं था। इसकी जड़ें टूर्नामेंट के शुरुआती दौर में ही जम चुकी थीं, जब भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने कथित तौर पर 14 सितंबर को हाथ मिलाने से इनकार कर दिया था। लेकिन फाइनल के बाद जो हुआ, उसने इस विवाद को नई ऊंचाइयां दे दीं। भारतीय टीम ने एशियन क्रिकेट काउंसिल (ACC) के प्रमुख मोहसिन नकवी से ट्रॉफी स्वीकार करने से मना कर दिया। यहां यह बताना ज़रूरी है कि नकवी पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) के चेयरमैन भी हैं और अपने देश में एक राजनीतिक हस्ती भी। भारतीय टीम के इस अप्रत्याशित कदम से नाराज़ होकर, नकवी ने ट्रॉफी और मेडल अपने होटल के कमरे में ले जाने का फैसला किया।

सलमान आगा ने इस घटना पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि उनकी टीम पदक प्राप्त करने के लिए इंतज़ार कर रही थी और मैच से पहले ट्रॉफी के साथ तस्वीरें भी खिंचवाई थीं। उनका कहना था कि एक अच्छी टीम हमेशा खेल के प्रति सम्मान दिखाएगी, जैसा कि पाकिस्तानी टीम ने किया।

निजी मुलाकात में सम्मान, सार्वजनिक मंच पर दूरी: विरोधाभासी व्यवहार पर सवाल

आगा ने एक और चौंकाने वाला दावा किया। उनके अनुसार, टूर्नामेंट की शुरुआत में सूर्यकुमार यादव ने उनसे निजी तौर पर हाथ मिलाया था – चाहे वह प्री-टूर्नामेंट प्रेस कॉन्फ्रेंस हो या रेफरी की मीटिंग। लेकिन जब कैमरे सामने होते हैं, तो वे हाथ मिलाने से कतराते हैं। आगा ने इस व्यवहार को सूर्यकुमार की “निर्देशों का पालन करने” की मजबूरी बताया, जिससे यह संकेत मिलता है कि यह व्यक्तिगत नहीं, बल्कि किसी बड़े एजेंडे का हिस्सा हो सकता है।

“उन्होंने टूर्नामेंट की शुरुआत में मुझसे निजी तौर पर हाथ मिलाया था… लेकिन जब वे दुनिया के सामने, कैमरों के सामने होते हैं, तो वे हमसे हाथ नहीं मिलाते। मुझे यकीन है कि वे दिए गए निर्देशों का पालन कर रहे हैं, लेकिन अगर यह उन पर होता, तो वे मुझसे हाथ मिलाते।”

हालांकि ट्रॉफी न होने के बावजूद भारतीय टीम ने जश्न जारी रखा। सूर्यकुमार यादव ने तो पोडियम पर ठीक उसी तरह जश्न मनाया, जैसे वह एशिया कप ट्रॉफी पकड़े हुए हों। यह दिखाता है कि टीम ने इस विवाद को ज़्यादा तूल नहीं दिया, या शायद वे इसे नज़रअंदाज़ करने में माहिर हैं।

खेल भावना बनाम राजनीतिक तनाव: क्रिकेट का भविष्य क्या?

यह घटना केवल एक हार या जीत से कहीं ज़्यादा गहरी है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट के मैदान पर बढ़ते राजनीतिक और कूटनीतिक तनावों की एक दुखद झलक है। जब खेल भावना और आपसी सम्मान को पृष्ठभूमि में धकेल दिया जाता है, तो यह खेल के मूल्यों पर सवाल खड़े करता है। क्रिकेट, जो कभी दोनों देशों को जोड़ने का एक माध्यम था, अब आपसी कटुता का प्रदर्शन बन रहा है।

यह सच है कि भारत-पाकिस्तान मैच हमेशा उच्च दांव वाले होते हैं, लेकिन खिलाड़ियों और बोर्डों की ज़िम्मेदारी होती है कि वे खेल के मूल सिद्धांतों को बनाए रखें। क्या यह विडंबना नहीं कि जिस खेल को मर्यादा और सम्मान का प्रतीक माना जाता है, उसी में आज खुलेआम `अनादर` की बात हो रही है? भविष्य में ऐसे विवादों से बचने के लिए, दोनों देशों के क्रिकेट बोर्ड और खिलाड़ी, दोनों को ही खेल भावना की सच्ची परिभाषा को फिर से याद करना होगा। अन्यथा, मैदान पर तिलकरमा के छक्के-चौके तो याद रहेंगे, लेकिन मैदान के बाहर की यह कड़वाहट क्रिकेट के सुनहरे पन्नों को बदरंग कर देगी।

निरव धनराज

दिल्ली के प्रतिभाशाली खेल पत्रकार निरव धनराज हॉकी और बैडमिंटन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। उनकी रिपोर्टिंग में खिलाड़ियों की मानसिकता की गहरी समझ झलकती है।

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