एशिया कप 2025: मैदान पर क्रिकेट, मैदान के बाहर एक अनकहा ‘खेल’

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एशिया कप 2025 के दौरान भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट के मैदान पर तनाव कोई नई बात नहीं, लेकिन इस बार बात सिर्फ हार-जीत या रिकॉर्ड की नहीं थी, बल्कि एक सामान्य परंपरा की थी, जिसने गहरे सवाल खड़े कर दिए। बात `हाथ मिलाने` की थी, जो खेल भावना का प्रतीक माना जाता है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ। एक छोटे से प्रोटोकॉल का उल्लंघन इतनी बड़ी खबर क्यों बन गया, आइए जानते हैं इस विवाद की तह तक!

जब खेल भावना पर भू-राजनीति पड़ी भारी

क्रिकेट को हमेशा से `जेंटलमैन गेम` कहा जाता रहा है, जहां प्रतिद्वंद्विता जितनी तीव्र हो, खेल खत्म होने पर खिलाड़ियों के बीच सम्मान और सौहार्द की उम्मीद की जाती है। भारत और पाकिस्तान के मैचों में तो यह उम्मीद और भी बढ़ जाती है, क्योंकि यह सिर्फ खेल नहीं, भावनाओं का ज्वार होता है। एशिया कप 2025 में, जब भारतीय टीम ने अपने चिर-प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाफ दो मैचों में जीत दर्ज की, तो एक अप्रत्याशित घटना ने सबको चौंका दिया: भारतीय खिलाड़ियों ने मैच के बाद पाकिस्तानी टीम से पारंपरिक तौर पर हाथ नहीं मिलाए।

सलमान आगा की निराशा: “रिश्ते पहले भी खराब थे, हाथ तब भी मिलते थे!”

इस घटना पर पाकिस्तानी कप्तान सलमान आगा ने दुबई में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अपनी गहरी निराशा व्यक्त की। उनका बयान खेल जगत में चर्चा का विषय बन गया। आगा ने याद दिलाया कि उन्होंने 2007 से अंडर-16 क्रिकेट खेलना शुरू किया है और तब से उन्होंने कभी किसी टीम को हाथ न मिलाते हुए नहीं देखा। उन्होंने कहा,

“मैंने कभी नहीं देखा कि टीमें हाथ न मिलाएं। यहां तक कि जब भारत-पाकिस्तान के रिश्ते इससे भी बदतर थे, तब भी हम हाथ मिलाते थे।”

आगा ने स्वीकार किया कि उनकी टीम ने पिछले दो मैचों में भारत से इसलिए हार खाई क्योंकि उन्होंने अधिक गलतियां कीं। उन्होंने यह भी कहा कि फाइनल मैच में दोनों टीमों पर बराबर दबाव होगा और उन्हें भारतीय मीडिया की बातों की परवाह नहीं। अपनी खराब फॉर्म पर भी उन्होंने बेबाकी से बात की, जो किसी खिलाड़ी के लिए हमेशा मुश्किल होता है। एक खिलाड़ी के तौर पर, सलमान आगा का यह बयान खेल को खेल की तरह देखने की वकालत करता है, जहां मैदान पर हुई गलतियों को स्वीकार किया जाता है, लेकिन खेल के बाद की परंपराओं का सम्मान अपेक्षित होता है।

सूर्यकुमार यादव का करारा जवाब: “देश पहले, खेल भावना बाद में”

भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने इस मामले पर भारतीय टीम के रुख को स्पष्ट किया। उनका बयान सिर्फ एक खेल निर्णय नहीं था, बल्कि देश की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता था। यादव ने कहा कि टीम ने यह फैसला सोच-समझकर लिया था और वे केवल खेलने आए थे। उन्होंने साफ शब्दों में कहा,

“हमने फैसला लिया था कि हम यहां सिर्फ खेलने आए हैं। हमने इसका उचित जवाब दिया। हम बीसीसीआई और सरकार के साथ हैं। मुझे लगता है कि जीवन में कुछ चीजें खेल भावना से ऊपर होती हैं।”

सूर्यकुमार यादव ने अपनी जीत को पहलगाम आतंकी हमले के पीड़ितों और ऑपरेशन सिंदूर में शामिल बहादुर सशस्त्र बलों को समर्पित किया। यह बयान स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि भारतीय टीम ने इस निर्णय के पीछे भू-राजनीतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी कारणों को प्राथमिकता दी। यह खेल कूटनीति के एक अप्रत्यक्ष लेकिन सशक्त प्रदर्शन जैसा था, जहां मैदान के बाहर की सच्चाइयों को मैदान पर भी जगह मिली।

एक हाथ मिलाने से ज़्यादा की कहानी

यह विवाद सिर्फ एक हाथ न मिलाने तक सीमित नहीं है। यह भारत और पाकिस्तान के बीच जटिल संबंधों की एक छोटी सी, लेकिन महत्वपूर्ण झलक दिखाता है। जहां एक ओर खिलाड़ी खेल को खेल के दायरे में रखना चाहते हैं, वहीं दूसरी ओर राष्ट्र की भावनाएं और संवेदनशीलताएं खेल के मैदान तक पहुंच जाती हैं। यह दिखाता है कि कैसे क्रिकेट जैसे लोकप्रिय खेल भी दोनों देशों के बीच तनाव को प्रतिबिंबित कर सकते हैं।

अब जबकि दोनों टीमें टूर्नामेंट के फाइनल में तीसरी बार आमने-सामने होंगी, तो इस विवाद ने मुकाबले को और भी मसालेदार बना दिया है। क्या यह विवाद खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर असर डालेगा? क्या क्रिकेट के मैदान पर पुरानी प्रतिद्वंद्विता और इस नए `हाथ मिलाओ` विवाद का दबाव खेल के रोमांच को और बढ़ाएगा? इन सवालों का जवाब तो वक्त ही देगा, लेकिन इतना तय है कि यह मैच सिर्फ क्रिकेट का नहीं, बल्कि भावनाओं और संदेशों का एक महासंग्राम होगा।

भारत-पाकिस्तान के बीच क्रिकेट का रिश्ता हमेशा से भावनाओं का एक रोलरकोस्टर रहा है। कभी खुशी, कभी गम, और कभी-कभी ऐसे विवाद, जो खेल से कहीं बढ़कर होते हैं। एशिया कप 2025 का यह `हाथ मिलाओ` विवाद दिखाता है कि खेल कितना भी बड़ा क्यों न हो, जब राष्ट्र की भावनाएं उससे जुड़ती हैं, तो हर छोटी बात एक बड़ा संदेश बन जाती है। देखना यह होगा कि फाइनल में खेल भावना की जीत होती है, या राष्ट्रवाद की गहरी छाप हमेशा की तरह इस खेल पर भी हावी रहती है।

निरव धनराज

दिल्ली के प्रतिभाशाली खेल पत्रकार निरव धनराज हॉकी और बैडमिंटन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। उनकी रिपोर्टिंग में खिलाड़ियों की मानसिकता की गहरी समझ झलकती है।

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