एशिया कप फाइनल: जब भारत के बल्लेबाजों ने दबा दिया ‘पैनिक बटन’ और गावस्कर ने पूछा, “क्यों घबरा रहे हो?”

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क्रिकेट का मैदान एक ऐसा रंगमंच है, जहाँ हर गेंद के साथ किस्मत का पासा पलट सकता है। खासकर जब मुकाबला भारत और पाकिस्तान के बीच हो, तो दबाव इतना बढ़ जाता है कि बड़े-बड़े सूरमा भी लड़खड़ा जाते हैं। एशिया कप फाइनल में कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिला, जब भारतीय टीम को महज 147 रनों का लक्ष्य भेदना था, लेकिन उसने जिस तरह से अपने शुरुआती विकेट गंवाए, उसने न सिर्फ प्रशंसकों को निराश किया, बल्कि महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर को भी सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया।

शुरुआती झटके और `पैनिक बटन` की कहानी

दुबई के मैदान पर जब भारत 147 रनों का पीछा करने उतरा, तो उम्मीद थी कि अभिषेक शर्मा, शुभमन गिल और सूर्यकुमार यादव जैसे युवा सितारे एक मजबूत शुरुआत देंगे। लेकिन अफसोस! पाकिस्तान के तेज गेंदबाजों, विशेषकर शाहीन अफरीदी और फहीम अशरफ ने भारतीय शीर्ष क्रम को ऐसा झकझोरा कि टीम इंडिया दबाव में आ गई। एक के बाद एक विकेट गिरे – अभिषेक और गिल को फहीम अशरफ ने चलता किया, तो सूर्यकुमार यादव एक बार फिर बड़ी पारी खेलने में नाकाम रहे और शाहीन अफरीदी का शिकार बने।

यह वह क्षण था, जब कमेंट्री बॉक्स में बैठे सुनील गावस्कर खुद को रोक नहीं पाए। उनकी आवाज में निराशा और थोड़ी झुंझलाहट साफ झलक रही थी जब उन्होंने सवाल दागा, “वे घबरा क्यों रहे हैं?” यह सिर्फ एक सवाल नहीं था, बल्कि क्रिकेट के मनोविज्ञान पर एक गहरी टिप्पणी थी। 147 रनों का लक्ष्य टी20 क्रिकेट में बहुत बड़ा नहीं होता, खासकर तब जब आपके पास अनुभवी और युवा प्रतिभा का मिश्रण हो। फिर भी, भारतीय बल्लेबाजों ने जिस तरह से जल्दी विकेट गंवाए, उससे लगा कि जैसे उन्होंने `पैनिक बटन` दबा दिया हो। यह उस मानसिक दृढ़ता की कमी को दर्शाता है, जिसकी ऐसे हाई-प्रेशर मुकाबलों में सबसे ज्यादा जरूरत होती है।

गेंदबाजों का शानदार प्रदर्शन, फिर भी हार क्यों?

दिलचस्प बात यह है कि भारतीय गेंदबाजों ने इस मैच में अपना काम बखूबी किया था। कुलदीप यादव ने अपनी फिरकी का जादू बिखेरते हुए चार महत्वपूर्ण विकेट झटके और पाकिस्तानी बल्लेबाजी क्रम को 113 रन पर एक विकेट से 146 रनों पर ऑल आउट कर दिया। उनकी गेंदबाजी इतनी प्रभावी थी कि एक समय पर पाकिस्तान 19.1 ओवर में 6 विकेट के नुकसान पर महज 21 रन ही जोड़ पाया। जसप्रीत बुमराह ने भी हारिस रऊफ को आउट कर अपनी पुरानी राइवलरी को एक मजेदार अंदाज में जिंदा किया। पाकिस्तान के लिए साहिबजादा फरहान (57) और फखर जमान (46) ने अच्छी साझेदारी की थी, लेकिन भारतीय गेंदबाजों ने उन्हें बड़े स्कोर तक पहुंचने नहीं दिया।

जब गेंदबाज अपना काम इतनी कुशलता से करें, तो उम्मीद की जाती है कि बल्लेबाज जीत की नींव पर इमारत खड़ी करेंगे। लेकिन यहाँ भारतीय बल्लेबाजी ने वह मौका गंवा दिया। यह एक विडंबना ही थी कि जिस टीम के गेंदबाजों ने जीत का मंच तैयार किया, उसी की बल्लेबाजी ने उसे ढहा दिया।

दबाव का खेल और सबक

भारत-पाकिस्तान मैच सिर्फ एक खेल नहीं होता, यह भावनाओं का सैलाब होता है। इसमें जीतने वाले नायक और हारने वाले को कटु आलोचना का सामना करना पड़ता है। गावस्कर जैसे दिग्गज जब `पैनिक` की बात करते हैं, तो वे सिर्फ एक मैच की नहीं, बल्कि उस मानसिकता की बात कर रहे होते हैं, जो बड़े टूर्नामेंट में बाधा बन सकती है। यह हार टीम इंडिया के लिए एक महत्वपूर्ण सबक है। यह दिखाता है कि सिर्फ प्रतिभा होना काफी नहीं है; दबाव में शांत रहना, परिस्थितियों को समझना और सूझबूझ से खेलना भी उतना ही आवश्यक है।

आने वाले समय में भारतीय बल्लेबाजों को इस बात पर मंथन करना होगा कि ऐसे महत्वपूर्ण पलों में वे क्यों लड़खड़ा जाते हैं। क्या यह अनुभव की कमी है, या अत्यधिक अपेक्षाओं का बोझ? क्रिकेट, आखिर में, सिर्फ कौशल का नहीं, बल्कि दिमाग का भी खेल है। और इस मैच ने एक बार फिर साबित कर दिया कि मानसिक तैयारी किसी भी रणनीति जितनी ही महत्वपूर्ण होती है। उम्मीद है, टीम इंडिया इस अनुभव से सीख लेगी और भविष्य के बड़े मुकाबलों में `पैनिक बटन` को मजबूती से दूर रखेगी।

निरव धनराज

दिल्ली के प्रतिभाशाली खेल पत्रकार निरव धनराज हॉकी और बैडमिंटन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। उनकी रिपोर्टिंग में खिलाड़ियों की मानसिकता की गहरी समझ झलकती है।

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