एशिया कप का अघोषित विजेता: जब ट्रॉफी ने चुना सियासी रास्ता

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क्रिकेट का मैदान अक्सर अनूठी कहानियों का गवाह बनता है, लेकिन एशिया कप 2023 का फाइनल एक ऐसी कहानी लेकर आया, जो खेल की दुनिया से निकलकर सीधा कूटनीति और प्रशासनिक बोर्डरूम तक जा पहुंची। भारत ने शानदार प्रदर्शन करते हुए खिताब जीता, पर जीत के जश्न पर एक अजीब सी परछाई मंडरा गई – विजेताओं को ट्रॉफी नहीं मिली। यह सिर्फ एक ट्रॉफी का मामला नहीं था; यह खेल भावना, क्षेत्रीय राजनीति और क्रिकेट प्रशासन के जटिल समीकरणों का एक दिलचस्प नमूना बन गया।

दुबई का मैदान, गतिरोध का पैगाम

दुबई में खेले गए फाइनल में भारत ने पाकिस्तान को पांच विकेट से हराकर एशिया कप की ट्रॉफी पर अपना नाम लिखवाया। लेकिन जीत के बाद जो होना था, वह नहीं हुआ। ट्रॉफी प्रस्तुति समारोह एक अप्रत्याशित गतिरोध का शिकार हो गया। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के अध्यक्ष और एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) के मुखिया मोहसिन नकवी इस बात पर अड़े रहे कि ट्रॉफी केवल वही पेश करेंगे। दूसरी ओर, भारतीय टीम ने स्पष्ट रूप से उनसे ट्रॉफी स्वीकार करने से इनकार कर दिया। यह टकराव, जो पहले एक मामूली खींचतान लग रहा था, अब क्रिकेट के शीर्ष प्रशासनिक गलियारों तक पहुंच चुका है।

“हमने एसीसी अध्यक्ष से ट्रॉफी नहीं लेने का फैसला किया है, जो पाकिस्तान के मुख्य नेताओं में से एक हैं। इसलिए हम उनसे इसे स्वीकार नहीं करेंगे।” – देवजीत सैकिया, बीसीसीआई सचिव।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने इस मामले में अपना रुख स्पष्ट करते हुए देरी नहीं की। बीसीसीआई के सचिव देवजीत सैकिया ने एक समाचार एजेंसी को बताया कि भारतीय टीम ने नकवी से ट्रॉफी न लेने का फैसला किया है। उन्होंने इस घटना को `दुर्भाग्यपूर्ण और खेल भावना के विपरीत` बताया। बीसीसीआई ने इस मामले को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) में उठाने का भी ऐलान किया, यह दर्शाते हुए कि यह विवाद केवल एक प्रस्तुति समारोह तक सीमित नहीं रहने वाला है।

राजनीतिक रंग: जब खेल पर भारी पड़ी कूटनीति

इस विवाद की जड़ें और गहरी थीं। मोहसिन नकवी ने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारतीय टीम को बधाई संदेश पर एक तीखी प्रतिक्रिया दी थी। मोदी के `ऑपरेशन सिंदूर ऑन द गेम्स फील्ड` वाले ट्वीट के जवाब में, नकवी ने युद्ध, खेल और राजनीति के घालमेल पर टिप्पणी की, जिसे भारत में `जियो-ब्लॉक` कर दिया गया था। इस घटना ने पहले से ही तनावपूर्ण माहौल में और आग लगा दी।

ऐसे में, भारतीय टीम का यह कदम केवल एक प्रशासनिक असहमति नहीं, बल्कि एक प्रबल राजनीतिक संदेश था। यह कहना गलत नहीं होगा कि मैदान पर मिली जीत के बावजूद, ट्रॉफी ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान संबंधों की जटिलताओं का आईना दिखाया।

अनसुनी कोशिशें और अधूरी उम्मीदें

ट्रॉफी प्रस्तुति में देरी होने पर, एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) और अमीरात क्रिकेट बोर्ड (ईसीबी) ने एक समझौता करने की कोशिश की। एक प्रस्ताव रखा गया कि ईसीबी अध्यक्ष खालिद अल जरूनी और बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड (बीसीबी) अध्यक्ष अमीनुल इस्लाम विजेताओं को ताज पहनाएं, और नकवी पाकिस्तानी टीम को सम्मानित करें। लेकिन नकवी ने जोर देकर कहा कि एसीसी प्रमुख के रूप में यह उनका विशेषाधिकार है।

यह दिलचस्प है कि इसी साल पहले, चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल के दौरान, जब पीसीबी उस आईसीसी इवेंट का मेजबान था, नकवी दुबई नहीं गए थे और लाइमलाइट से दूर रहे थे। लेकिन इस बार, वह दुबई में समय पर मौजूद थे। समझा जाता है कि पाकिस्तानी खेमा आश्वस्त था और नकवी औपचारिक सम्मान करने के लिए तैयार होकर आए थे, शायद पाकिस्तान की जीत की उम्मीद में।

दुबई इंटरनेशनल स्टेडियम में यह बात सबको पता थी कि भारतीय टीम किसी पाकिस्तानी अधिकारी से ट्रॉफी स्वीकार नहीं करेगी, फिर भी फाइनल खत्म होने तक इस मुद्दे पर किसी ने ध्यान नहीं दिया। भारतीय टीम खुद भी मैच जीतने से पहले इसे नहीं उठा सकती थी। मैच के बाद, भारतीय टीम प्रबंधन ने अपना रुख स्पष्ट कर दिया।

45 मिनट से अधिक की देरी के बाद, समारोह आखिरकार आगे बढ़ा – जिसमें भारत ने केवल प्रायोजकों द्वारा दिए गए व्यक्तिगत पुरस्कार स्वीकार किए। होस्ट साइमन डूल ने कार्यवाही समाप्त करते हुए कहा: “देवियों और सज्जनों, मुझे एसीसी द्वारा सूचित किया गया है कि भारतीय क्रिकेट टीम आज रात अपने पुरस्कार एकत्र नहीं करेगी। तो, इसके साथ ही पोस्ट-मैच प्रस्तुति समाप्त होती है।” एक ऐसा पल, जो क्रिकेट के इतिहास में `बिना ट्रॉफी के चैंपियन` के रूप में दर्ज हो गया।

आगे क्या? बोर्डरूम की रणभूमि

अब सवाल यह है कि इस गतिरोध का अंत कहां होगा? बीसीसीआई नवंबर के पहले सप्ताह में दुबई में होने वाली आईसीसी कॉन्फ्रेंस में इस मामले को मजबूती से उठाने की तैयारी में है। इसके अतिरिक्त, 30 सितंबर को दुबई में होने वाली एसीसी की बैठक में भी ट्रॉफी गतिरोध हावी रहने की उम्मीद है। यह बैठक पहले ढाका में 24 जुलाई को बीसीसीआई के दबाव के चलते स्थगित कर दी गई थी।

यह केवल एक खेल विवाद नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय खेल कूटनीति का एक जटिल जाल है। इस घटना ने एक बार फिर खेल और राजनीति के बीच की पतली रेखा को धुंधला कर दिया है। क्या प्रशासक खेल की भावना को सर्वोपरि रखकर कोई समाधान खोज पाएंगे, या यह कड़वाहट भविष्य के टूर्नामेंटों पर भी अपनी छाया डालेगी? यह तो समय ही बताएगा। फिलहाल, एशिया कप का यह अध्याय एक ऐसे विजेता के साथ समाप्त हुआ, जिसे अपनी ट्रॉफी का इंतजार आज भी है, और इस इंतजार ने खेल के मैदान से निकलकर अब बोर्डरूम की रणभूमि में एक नया संघर्ष छेड़ दिया है।

प्रमोद विश्वनाथ

बेंगलुरु के वरिष्ठ खेल पत्रकार प्रमोद विश्वनाथ फुटबॉल और एथलेटिक्स के विशेषज्ञ हैं। आठ वर्षों के अनुभव ने उन्हें एक अनूठी शैली विकसित करने में मदद की है।

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