एशिया कप का मैदान: जब क्रिकेट के संस्कार राष्ट्रीय भावनाओं से टकराए

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हाल ही में संपन्न हुए एशिया कप के फाइनल मुकाबले में भारत ने न सिर्फ शानदार जीत दर्ज की, बल्कि खेल भावना और राष्ट्रीय सम्मान के बीच एक बारीक रेखा भी खींच दी। यह सिर्फ एक क्रिकेट मैच नहीं था; यह कूटनीति का एक अनकहा अध्याय था, जहां मैदान पर मिली जीत से ज़्यादा, मैच के बाद के कुछ पलों ने ज़्यादा सुर्खियां बटोरीं। तिलक वर्मा के कोच ने इस घटना पर जो कहा, वह सिर्फ एक खिलाड़ी के गुरु का बयान नहीं, बल्कि पूरे देश की भावनाओं का प्रतिध्वनि था।

विजय का स्वाद और एक अनोखा फैसला

जब भारतीय टीम ने दुबई में पाकिस्तान को पांच विकेट से हराकर नौवीं बार एशिया कप का खिताब अपने नाम किया, तो पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई। युवा बल्लेबाज तिलक वर्मा ने नाबाद 69 रन बनाकर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया, और उन्हें भारतीय क्रिकेट के भविष्य के तौर पर देखा जाने लगा। लेकिन जीत के बाद का क्षण, जो आमतौर पर प्रतिद्वंद्वी टीमों के बीच खेल भावना और सौहार्द का प्रतीक होता है, इस बार कुछ अलग ही कहानी कह गया। भारतीय टीम ने न केवल पाकिस्तान टीम के साथ पारंपरिक `हैंडशेक` से इनकार कर दिया, बल्कि एशियाई क्रिकेट परिषद (ACC) के अध्यक्ष और पाकिस्तान के मंत्री मोहसिन नकवी से विजेता ट्रॉफी लेने से भी मना कर दिया। यह एक ऐसा फैसला था जिसने क्रिकेट जगत में गंभीर चर्चा छेड़ दी।

कोच का स्पष्टीकरण: `दर्द को भूला नहीं जा सकता`

इस अप्रत्याशित घटना पर जब तिलक वर्मा के बचपन के कोच, सलाम बायाश, से NDTV ने बात की, तो उन्होंने भारतीय टीम के रुख का पुरजोर समर्थन किया। उनके शब्द तीखे और स्पष्ट थे:

“वे `क्रिकेट की भावना` की बात करते हैं, लेकिन हम उस दर्द को नहीं भूल सकते जिससे हमारा देश गुजरा है।”

यह बयान सिर्फ एक कोच का नहीं, बल्कि उन लाखों भारतीयों की भावनाओं का प्रतीक था जो खेल को राजनीति से अलग रखने की बात को अक्सर एकतरफा मानते हैं। बायाश का इशारा सिर्फ किसी एक घटना तक सीमित नहीं था, बल्कि भारत और पाकिस्तान के बीच दशकों पुराने जटिल संबंधों और अतीत के कई कटु अनुभवों की ओर था। यह उस अहसास को दर्शाता है कि खेल के मैदान पर मिली जीत के जश्न में, राष्ट्रीय गरिमा और इतिहास को दरकिनार नहीं किया जा सकता।

मोहसिन नकवी की दोहरी भूमिका और विवाद

इस पूरे प्रकरण के केंद्र में मोहसिन नकवी की भूमिका भी महत्वपूर्ण थी। एक ओर वे ACC के अध्यक्ष के रूप में ट्रॉफी प्रदान करने के लिए अधिकृत थे, वहीं दूसरी ओर वे पाकिस्तान के आंतरिक मंत्री और पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष भी थे। उनकी `भारत विरोधी` टिप्पणियों और सोशल मीडिया पर की गई कुछ विवादास्पद पोस्ट्स, जैसे कि क्रिस्टियानो रोनाल्डो के `विमान दुर्घटना` वाले जश्न का वीडियो जो पाकिस्तानी गेंदबाज हारिस रऊफ द्वारा भारत के खिलाफ सुपर-4 मैच में किए गए जश्न से मिलता-जुलता था, ने भारतीय टीम के इस फैसले की नींव रखी। एक खेल प्रशासक और एक राजनीतिक व्यक्ति के बीच की यह अस्पष्ट सीमा ने भारतीय टीम को `नो-हैंडशेक` और पाकिस्तान के किसी भी अधिकारी के साथ `नो-ऑफ-फील्ड` जुड़ाव की अपनी नीति बनाए रखने के लिए प्रेरित किया। यह ऐसा था, मानो खेल के मैदान पर भी कूटनीति का `अनलिखा नियम` प्रभावी हो गया हो।

`क्रिकेट की भावना` बनाम राष्ट्रीय वास्तविकताएं

यह घटना `क्रिकेट की भावना` पर एक तीखी बहस छेड़ती है। क्या खेल हमेशा राजनीति से ऊपर होता है? या क्या कुछ ऐतिहासिक और राजनीतिक पृष्ठभूमियां ऐसी होती हैं, जहां खेल भावना के आदर्शों को राष्ट्रीय सम्मान के यथार्थवादी चश्मे से देखना ज़रूरी हो जाता है? भारतीय टीम का यह कदम बताता है कि उनके लिए, इस विशेष संदर्भ में, राष्ट्रीय भावनाओं को प्राथमिकता देना आवश्यक था। यह एक प्रतीकात्मक संदेश था कि आपसी संबंधों में सम्मान और संवेदनशीलता एकतरफा नहीं हो सकती। यह शायद एक अनकहा संदेश था कि जब तक राजनीतिक मंच पर मुद्दों को सुलझाया नहीं जाता, तब तक खेल के मैदान पर भी `सब ठीक है` का दिखावा करना उचित नहीं है। थोड़ी विडंबना यह है कि खेल को शांति का दूत कहा जाता है, लेकिन कभी-कभी यह राष्ट्रों के बीच की खाई को भी उजागर कर देता है।

एक जीत से बढ़कर एक संदेश

भारत की एशिया कप में जीत न केवल क्रिकेट के क्षेत्र में उनकी सर्वोच्चता को दर्शाती है, बल्कि यह एक सशक्त राष्ट्रीय बयान भी है। तिलक वर्मा जैसे युवा सितारों के प्रदर्शन ने मैदान पर जीत सुनिश्चित की, लेकिन मैच के बाद के फैसले ने यह सुनिश्चित किया कि इस जीत का संदेश कहीं अधिक गहरा हो। यह उन लाखों प्रशंसकों के लिए एक स्पष्ट संदेश था जो खेल को सिर्फ खेल नहीं, बल्कि राष्ट्रीय गौरव का प्रतिबिंब मानते हैं। यह एक ऐसी घटना है जिसे आने वाले समय में भारत-पाकिस्तान खेल संबंधों के एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में याद किया जाएगा, जहाँ बल्ले और गेंद के खेल से इतर, राष्ट्रीय सम्मान और संवेदनशीलता की कसौटी पर भी निर्णय लिए गए।

यह लेख NDTV पर प्रकाशित मूल समाचार विश्लेषण पर आधारित एक विस्तृत और अद्वितीय प्रस्तुति है।

निरव धनराज

दिल्ली के प्रतिभाशाली खेल पत्रकार निरव धनराज हॉकी और बैडमिंटन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। उनकी रिपोर्टिंग में खिलाड़ियों की मानसिकता की गहरी समझ झलकती है।

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