भारतीय क्रिकेट में चयन प्रक्रिया हमेशा से ही एक जटिल पहेली रही है, जहाँ प्रदर्शन, अनुभव और `सही समय` का संगम किसी खिलाड़ी के भाग्य का फैसला करता है। लेकिन जब एक खिलाड़ी लगातार बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद अनदेखा किया जाए, और फिर उसके पिता के मुखर बयान सुर्खियों में आ जाएं, तो यह मामला सिर्फ खेल के मैदान तक सीमित नहीं रहता, बल्कि भावनाओं और उम्मीदों का एक गहरा जाल बन जाता है। पेश है अभिमन्यु ईश्वरन की कहानी – एक प्रतिभाशाली सलामी बल्लेबाज, जिसका टेस्ट डेब्यू का सपना बार-बार टूट रहा है, और अब इस पर परिवार की मुखरता की छाया पड़ गई है।
एक लंबा इंतजार और अनकही निराशा
अभिमन्यु ईश्वरन। भारतीय घरेलू क्रिकेट में यह नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। 103 फर्स्ट-क्लास मैचों में 48.70 की औसत से 7,841 रन – ये आंकड़े किसी भी बल्लेबाज की काबिलियत का प्रमाण हैं। पिछले कई सालों से वे भारतीय टीम के दरवाजे खटखटा रहे हैं, और कई बार उन्हें टीम स्क्वाड में शामिल भी किया गया। लेकिन विडंबना देखिए, जिस दौरान अभिमन्यु भारतीय दल का हिस्सा थे, उन्हीं चार सालों में 15 अन्य खिलाड़ियों ने अपना टेस्ट डेब्यू कर लिया। ईश्वरन को एक भी मौका नहीं मिला। इंग्लैंड दौरे पर बेंच पर बैठने के बाद, अब उन्हें वेस्टइंडीज सीरीज के लिए भी नजरअंदाज कर दिया गया है। यह सिर्फ एक खिलाड़ी की कहानी नहीं, बल्कि उस हजारों घंटे की कड़ी मेहनत, त्याग और समर्पण की कहानी है, जिसे एक मौका मिलने का इंतजार है।
पिता का आक्रोश: क्या प्यार पड़ गया भारी?
जब किसी खिलाड़ी का सपना टूटता है, तो उसके साथ उसके परिवार का सपना भी टूटता है। अभिमन्यु के पिता, रंगनाथन ईश्वरन, अपने बेटे की बार-बार अनदेखी से बेहद निराश थे। इंग्लैंड दौरे के बाद उन्होंने खुलकर अपनी भड़ास निकाली। उनका गुस्सा जायज लगता है, आखिर कौन सा पिता अपने बेटे की 23 साल की तपस्या को यूँ ही बर्बाद होते देखेगा? उन्होंने गौतम गंभीर की उस कथित टिप्पणी का भी जिक्र किया, जिसमें गंभीर ने अभिमन्यु को `लंबा मौका` देने का आश्वासन दिया था। पिता ने सवाल उठाया कि क्यों साई सुदर्शन जैसे खिलाड़ी को मौका मिला, जिनके हालिया प्रदर्शन (0, 30, 61, 0) अभिमन्यु के अनुभव और निरंतरता के आगे फीके लगते हैं। रंगनाथन ईश्वरन ने यह भी तर्क दिया कि उनके बेटे को ईडन गार्डन्स जैसी हरी पिचों पर खेलने का अनुभव है, जो टेस्ट क्रिकेट के लिए महत्वपूर्ण है।
“मेरा बेटा 4 साल से इंतजार कर रहा है। उसने 23 साल की कड़ी मेहनत की है।”
विश्व कप विजेता की राय: `पिता के बयान ने बिगाड़ा काम`?
इस पूरे प्रकरण पर 1983 विश्व कप विजेता टीम के सदस्य कृष्णमाचारी श्रीकांत की टिप्पणी ने एक नया मोड़ दे दिया। श्रीकांत ने अपने यूट्यूब चैनल पर कहा कि उन्हें अभिमन्यु ईश्वरन के लिए बुरा लगता है। उनके अनुसार, पिता के `कड़े बयान` ही शायद अभिमन्यु को वेस्टइंडीज सीरीज से बाहर रखने का कारण बने हों। यह एक ऐसी राय है जो भारतीय क्रिकेट में `बाहरी दखलअंदाजी` और `पैनल के फैसले` की बहस को फिर से जिंदा करती है। क्या भारतीय क्रिकेट बोर्ड (BCCI) ऐसे बयानों को गंभीरता से लेता है? या यह सिर्फ एक बहाना है?
चयनकर्ता का `तटस्थ` स्पष्टीकरण
जहां श्रीकांत पिता के बयानों को एक संभावित कारण मान रहे थे, वहीं बीसीसीआई के मुख्य चयनकर्ता अजीत अगरकर ने एक बिल्कुल ही अलग और अधिक `व्यवहारिक` तर्क दिया। अभिमन्यु के चयन न होने पर पूछे जाने पर अगरकर ने सीधे तौर पर कहा, “हमें घर पर तीसरे सलामी बल्लेबाज की जरूरत नहीं है।” यह बयान जितना सीधा है, उतना ही सवाल खड़ा करने वाला भी। क्या टीम प्रबंधन ने अभिमन्यु को कभी एक विकल्प के रूप में देखा ही नहीं था? या यह सिर्फ एक राजनयिक जवाब था ताकि विवाद को और न बढ़ाया जाए?
चयन की पहेली: प्रदर्शन बनाम परसेप्शन
यह घटना भारतीय क्रिकेट में चयन के मनोविज्ञान पर कई सवाल खड़े करती है:
- क्या एक खिलाड़ी का भविष्य उसके परिवार के सार्वजनिक बयानों से प्रभावित हो सकता है? यदि हां, तो यह उन खिलाड़ियों के लिए एक चिंताजनक मिसाल कायम करता है जिनके परिवार भावुक होकर प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
- क्या घरेलू क्रिकेट में लगातार प्रदर्शन के बावजूद, `बड़े मौके` पर खिलाड़ी को सिर्फ इसलिए बाहर रखा जा सकता है क्योंकि `फिलहाल जरूरत नहीं`? यह प्रतिभाशाली खिलाड़ियों में निराशा पैदा कर सकता है।
- बीसीसीआई की चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता का स्तर क्या है? क्या मुख्य चयनकर्ता का एक संक्षिप्त बयान पर्याप्त है, या और स्पष्टीकरण की आवश्यकता है?
अभिमन्यु ईश्वरन की कहानी सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं है, बल्कि उस जटिल प्रणाली का आईना है जहाँ सिर्फ रन बनाना या विकेट लेना ही काफी नहीं होता। यहाँ धैर्य, सही समय और शायद `शांत रहने` की कला भी महत्वपूर्ण हो जाती है। यह एक दुखद विडंबना है कि कभी-कभी एक पिता का प्यार, जो अपने बेटे के लिए न्याय चाहता है, अनजाने में उसके रास्ते में बाधा बन सकता है।
भारतीय क्रिकेट को इन अनसुलझे सवालों के जवाब खोजने होंगे, ताकि अभिमन्यु ईश्वरन जैसे होनहार खिलाड़ियों का सपना सिर्फ सपना बनकर न रह जाए। उम्मीद है कि एक दिन, उनके बल्ले का कमाल उन्हें उस सम्मान तक पहुंचाएगा जिसके वे हकदार हैं, चाहे उस राह में कितनी भी चुनौतियां क्यों न आएं।