ग्लेन फिलिप्स: फील्डिंग के महारथी से कहीं ज़्यादा, उनके क्रिकेट का हर पहलू

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न्यूज़ीलैंड के डायनामिक ऑलराउंडर ग्लेन फिलिप्स को क्रिकेट के मैदान पर हवा में छलांग लगाते और अविश्वसनीय कैच लपकते देखना आम बात है। लेकिन मैदान के बाहर भी उनका `उड़ान` से रिश्ता है – वह प्रमाणित पायलट हैं! हाल ही में एक बातचीत के दौरान, फिलिप्स ने क्रिकेट के कई पहलुओं पर खुलकर बात की, जिसमें उनकी अद्भुत एथलेटिक क्षमता, करियर को खतरे में डालने वाली चोट से ज़बरदस्त वापसी, रेड बॉल क्रिकेट के प्रति गहरा लगाव, भारत में ऐतिहासिक टेस्ट सीरीज़ जीत और मेजर लीग क्रिकेट (MLC) में वाशिंगटन फ्रीडम के लिए खेलने का अनुभव शामिल है। यह लेख उनके क्रिकेट जीवन की परतों को खोलता है, जो सिर्फ शानदार फील्डिंग से कहीं ज़्यादा है।

खेल जीन का कमाल: फिलिप्स का शारीरिक ढाँचा

फिलिप्स की अविश्वसनीय फील्डिंग और शारीरिक क्षमता अक्सर चर्चा का विषय रहती है। जब उनसे उनके `DNA` के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि खेल उनके खून में है। उनके माता-पिता दोनों एथलीट थे; माँ ने हॉकी खेली और पिता ने कई खेल। उनके दादा तो पेशेवर फ़ुटबॉल खिलाड़ी थे। दादा उन्हें अक्सर जोंटी रोड्स का उदाहरण देते थे जब फील्डिंग की बात आती थी। यह पारिवारिक पृष्ठभूमि निश्चित रूप से उनके एथलेटिक झुकाव में एक बड़ी भूमिका निभाती है।

हालांकि, फिलिप्स का मानना ​​है कि वह शायद अपनी शारीरिक क्षमताओं के शिखर पर पहुँच चुके हैं। वह अब और ऊँचा नहीं कूद सकते या तेज़ नहीं दौड़ सकते। उनका ध्यान अब इस फिटनेस को बनाए रखने पर है, क्योंकि उम्र के साथ चीजें थोड़ी मुश्किल होती जाती हैं। वह अपनी फुर्ती बनाए रखने की पूरी कोशिश करते हैं, लेकिन यह भी मानते हैं कि शरीर पर ज़ोर डालने से चोटें लगती हैं।

ट्रेनिंग बनाम मैच: जोखिम का गणित

मैच के दबाव में जादुई पल बनाना ट्रेनिंग से बहुत अलग है। क्या वह ट्रेनिंग में भी ऐसे हैरतअंगेज़ कारनामे करते हैं? फिलिप्स का जवाब सीधा है – बिल्कुल नहीं। वह कहते हैं कि जब क्रिकेट उनका पेशा है, तो बिना किसी बात के ट्रेनिंग में शरीर को जोखिम में डालने का कोई मतलब नहीं। उनके सारे खास पल मैच के दौरान ही आते हैं। ट्रेनिंग में वह सिर्फ बेसिक कैचिंग करते हैं, क्योंकि ज़्यादातर गेंदें बेसिक ही होती हैं। डाइविंग कैच जैसी चीज़ें वह मैच के लिए ही बचा कर रखते हैं, ताकि अनावश्यक चोट से बचा जा सके।

फिटनेस टेस्ट: एथलीट बनाम क्रिकेटर

अपनी शारीरिक क्षमताओं के बारे में बात करते हुए, फिलिप्स ने बताया कि वह `असली` एथलेटिक्स रिकॉर्ड के करीब नहीं हैं। जो लोग सिर्फ दौड़ने या ताक़त के लिए ट्रेन करते हैं, वे बहुत आगे हैं। लेकिन क्रिकेटरों के मुकाबले वह निश्चित रूप से तेज़ और फुर्तीले हैं। उन्होंने T टेस्ट का ज़िक्र किया, जो पार्श्विक (lateral) और आगे-पीछे की मूवमेंट के लिए होता है। इसमें उनका स्कोर 9 सेकंड से कम था, जिसे काफी अच्छा माना जाता है (10-11 सेकंड सामान्य है, 9 सेकंड टॉप रेंज)। स्कूल में 100 मीटर दौड़ में उनका व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ (हैंड टाइमर से) 11.2 सेकंड था, जो क्रिकेटरों के लिए तेज़ है, लेकिन प्रॉपर एथलीटों के लिए नहीं। वह मानते हैं कि उनके कसमांसपेशियाँ (tight muscles) और कड़ी मेहनत उनकी फुर्ती का कारण हो सकते हैं, लेकिन जेनेटिक तौर पर ऐसा कुछ खास नहीं है जिसका कोई टेस्ट हुआ हो।

फील्डिंग: सिर्फ जुनून या कुछ और?

फिलिप्स की फील्डिंग निस्वार्थ लगती है, जैसे वह बल्लेबाजी या गेंदबाजी से ज़्यादा ऊर्जा इसमें लगाते हैं। यह जुनून कहाँ से आता है? वह बताते हैं कि यह एक `टीम मैन` बनने की इच्छा से आता है। वह जानते हैं कि वह हमेशा बल्ले या गेंद से प्रदर्शन नहीं कर सकते, इसलिए मैदान पर अपनी पूरी ऊर्जा और जोश देना चाहते हैं। यह किसी की तारीफ या गौरव के लिए नहीं है, बल्कि इसलिए कि उन्हें यह पसंद है, और वह दूसरों से 100% की उम्मीद तभी कर सकते हैं जब वह खुद 100% दें। एक बहुत ही सीधा और शायद `साधारण` कारण, लेकिन उनके लिए यही सब कुछ है।

फील्डिंग के तरीके पर बात करते हुए, उन्होंने बताया कि वह गेंदबाज़ और बल्लेबाज़ दोनों को देखने वाले तरीकों के बीच कहीं हैं। स्लिप या गली में, वह ज़्यादातर बल्लेबाज़ को देखते हैं और उनकी शारीरिक भाषा से अंदाज़ा लगाते हैं कि गेंद कहाँ जा सकती है। यह उन्हें फैसला लेने के लिए अतिरिक्त सेकंड देता है। बाउंड्री पर, यह बल्लेबाज़ के इरादे को पढ़ने में मदद करता है कि वह हल्का शॉट खेलेगा या बड़ा, ताकि वह उसी हिसाब से पोजीशन ले सकें। बल्लेबाज़ की बॉडी लैंग्वेज पढ़ना उनके लिए फील्डिंग का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। एमएलसी में वाशिंगटन फ्रीडम के मालिक संजय गोयल द्वारा उनकी फील्डिंग को याद रखना, खिलाड़ियों के प्रति उनके लगाव को दर्शाता है। फिलिप्स गोयल की प्रशंसा करते हैं कि वह खिलाड़ियों और उनके परिवारों का कितना ध्यान रखते हैं, जिससे खिलाड़ियों को प्रदर्शन करने में मदद मिलती है।

खतरनाक चोट से वापसी: `नो पेन, नो गेन` का संतुलन

गुजरात टाइटन्स के साथ लगी उनकी चोट काफी गंभीर थी – एडक्टर मांसपेशी का पेल्विस हड्डी से फटना (ग्रेड 3/4)। यह करियर को खत्म करने वाली हो सकती थी, लेकिन फिलिप्स ने अविश्वसनीय वापसी की। सर्जरी की ज़रूरत नहीं पड़ी, क्योंकि यह पूरी तरह से फट गई थी। फिलिप्स खुद अपनी रिकवरी की जिम्मेदारी लेते हैं। वह फिज़ियो और स्ट्रेंथ कोच से सलाह लेते हैं, लेकिन अपना रास्ता खुद तय करते हैं। उनका दृष्टिकोण थोड़ा अलग है – वह दर्द की 2% सीमा तक खुद को धकेलने की कोशिश करते हैं, बजाय इसके कि सिर्फ वही करें जिसमें बिल्कुल दर्द न हो। यह `नो पेन, नो गेन` वाली मानसिकता का संतुलन है।

हालांकि यह एक धीमी प्रक्रिया थी, उन्हें वापस मैदान पर आने में नौ सप्ताह लगे, जबकि शुरुआत में फिज़ियो ने कम से कम तीन महीने का अनुमान लगाया था। चोट उस विशिष्ट मूवमेंट (क्रॉस-बॉडी थ्रो) से लगी थी, इसलिए मैदान पर अधिकांश हरकतें प्रभावित नहीं हुईं। उनकी रिकवरी अभी भी जारी है; वह अभी भी अपने भाई से दौड़ में हार जाते हैं, जो उनके लिए 100% फिटनेस का बेंचमार्क है।

ऑफ-स्पिन का `अनोखा` जुनून

शायद सबसे दिलचस्प बात उनका ऑफ-स्पिन के प्रति जुनून है। इसे अक्सर क्रिकेट की `साधारण` या `कमतर आँकी जाने वाली` कला माना जाता है, जिसमें ज़्यादा चमक-दमक नहीं होती। लेकिन फिलिप्स को यह पसंद है, शायद इसलिए कि यह कितनी मुश्किल है! बल्लेबाज ऑफ-स्पिनर को ज़्यादा हिट करने की कोशिश करते हैं, इसलिए ऑफ-स्पिनर को ज़्यादा सटीक होना पड़ता है।

फिलिप्स के लिए, यह कला से ज़्यादा चुनौती है – बिना ज़्यादा वेरिएशन वाली गेंदबाजी से विकेट लेने का तरीका ढूंढना। उन्हें लंबे समय तक एक ही काम करने में मज़ा आता है, जैसे घंटों आर्चरी लाइन पर तीर चलाना। गेंदबाजी में भी वही है – सटीक मूवमेंट को महसूस करना, उसमें माहिर होना। भले ही यह आसान लगे, इसे परफेक्ट करने की कोशिश करना ही उन्हें खींचता है।

भारत में ऐतिहासिक जीत और रेड बॉल का समर्पण

उनकी `अनाकर्षक` ऑफ-स्पिन कला ने न्यूज़ीलैंड क्रिकेट के इतिहास में एक बड़ा पल दिया – भारत में टेस्ट सीरीज़ जीत। फिलिप्स उस सीरीज़ का हिस्सा थे और आखिरी मैच में उनकी गेंदबाजी (पहली पारी में 20 सीधे ओवर) और एजाज़ पटेल के साथ तालमेल ने जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक पश्चिमी स्पिनर के लिए भारत में जीतना बहुत बड़ी बात है, क्योंकि यहाँ गेंदबाजी करना अश्विन और जडेजा जितना आसान नहीं होता, जैसा वे दिखाते हैं। उस मैच की आखिरी पारी में तीन विकेट लेकर जीत पक्की करना उनके लिए एक शानदार एहसास था।

यह जीत उनके रेड बॉल क्रिकेट के प्रति समर्पण का परिणाम भी थी। T20 की चकाचौंध और पैसों से दूर, उन्होंने प्लंकेट शील्ड (न्यूज़ीलैंड की घरेलू चार दिवसीय प्रतियोगिता) में खेलने का फैसला किया ताकि वह खुद को टेस्ट क्रिकेट के लिए साबित कर सकें। उन तीन मैचों ने उन्हें खुद को प्रमुख स्पिनर के रूप में स्थापित करने का मौका दिया। घरेलू क्रिकेट में प्रदर्शन ही था जिसने उन्हें बांग्लादेश के खिलाफ टेस्ट डेब्यू का मौका दिलाया, और फिर घर पर ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन करके उन्होंने खुद को एक ऑलराउंड स्पिनर के रूप में साबित किया, जिससे टीम को दो विशेषज्ञ स्पिनर चुनने की ज़रूरत नहीं पड़ी।

ग्लेन फिलिप्स सिर्फ हवा में उड़ने वाले फील्डर नहीं हैं। वह एक समर्पित, बहुआयामी क्रिकेटर हैं जो अपनी शारीरिक क्षमता को समझते हैं, चोट से लड़ने का जुनून रखते हैं, और क्रिकेट की हर विधा – चाहे वह धमाकेदार फील्डिंग हो, चुनौतीपूर्ण ऑफ-स्पिन, या कठिन रेड बॉल क्रिकेट – को पूरी गंभीरता और समर्पण से निभाते हैं। उनका सफर दिखाता है कि सफलता सिर्फ प्रतिभा से नहीं, बल्कि अनुशासन, कड़ी मेहनत और खेल के प्रति सच्चे जुनून से आती है।

प्रमोद विश्वनाथ

बेंगलुरु के वरिष्ठ खेल पत्रकार प्रमोद विश्वनाथ फुटबॉल और एथलेटिक्स के विशेषज्ञ हैं। आठ वर्षों के अनुभव ने उन्हें एक अनूठी शैली विकसित करने में मदद की है।

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