जब क्रिकेट का मैदान बन गया ‘शब्दों का युद्ध’

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भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मुकाबला सिर्फ एक खेल नहीं, बल्कि भावनाओं का एक ज्वार है। यह एक ऐसा युद्ध है जहाँ गेंद और बल्ले से ज्यादा दिल और दिमाग की जंग होती है। दशकों से यह प्रतिद्वंद्विता खेल जगत की सबसे रोमांचक गाथाओं में से एक रही है। लेकिन, हाल ही में एशिया कप के दौरान कुछ ऐसी घटनाएँ सामने आईं, जिन्होंने खेल भावना पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। मैदान के अंदर खिलाड़ियों के हावभाव से लेकर सोशल मीडिया पर उच्च अधिकारियों की पोस्ट तक, ऐसा लगता है कि इस `खेल` में अब कूटनीतिक `दांव-पेच` भी शामिल हो गए हैं।

घटनाओं का सिलसिला: जब जुनून बन गया विवाद

कहानी की शुरुआत होती है एशिया कप में भारत-पाकिस्तान के एक मुकाबले से। भारतीय प्रशंसकों ने जब पाकिस्तान के तेज गेंदबाज हारिस रऊफ को `कोहली, कोहली` कहकर चिढ़ाया, तो रऊफ का जवाब मैदान पर एक ऐसे इशारे के रूप में सामने आया, जिसने कई भौंहें चढ़ा दीं। उन्होंने कथित तौर पर एक विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने का इशारा किया, जो भारतीय सेना की कार्रवाई का मज़ाक उड़ाने के रूप में देखा गया। यह 2022 टी20 विश्व कप में विराट कोहली द्वारा उन्हीं की गेंद पर लगाए गए मैच-जिताऊ छक्कों का परोक्ष जवाब भी था – एक ऐसा जवाब, जिसने शायद खेल से ज़्यादा `व्यंग्य` को प्राथमिकता दी।

यह मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के प्रमुख मोहसिन नकवी, जो एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) के अध्यक्ष और अपने देश के गृह मंत्री भी हैं, ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर एक वीडियो पोस्ट कर आग में घी डालने का काम किया। इस धीमी गति के वीडियो में फुटबॉल के दिग्गज क्रिस्टियानो रोनाल्डो को विमान दुर्घटना जैसी मुद्रा में इशारा करते देखा जा सकता है, ठीक वैसे ही जैसे रऊफ ने किया था। हालांकि रोनाल्डो शायद अपने फ्री-किक के झुकाव को समझा रहे थे, लेकिन नकवी जैसे प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा ऐसे समय में इस वीडियो को पोस्ट करना, जब रऊफ का मामला सुर्खियों में था, इसे एक `उकसाने वाले बयान` के रूप में ही देखा गया। ऐसा नहीं है कि नकवी साहब पहली बार भारत के खिलाफ `गरमा-गरम` टिप्पणी करते दिखे हों, उनका इतिहास ऐसी बयानबाजियों से भरा रहा है।

सोशल मीडिया का मैदान और उसकी कूटनीति

आजकल खेल सिर्फ मैदान पर नहीं खेले जाते, बल्कि सोशल मीडिया के मंच पर भी उनकी `पटकथा` लिखी जाती है। मोहसिन नकवी जैसे उच्च पदस्थ अधिकारी, जिनके पास न केवल क्रिकेट बोर्ड की बागडोर है, बल्कि देश के आंतरिक मामलों की भी जिम्मेदारी है, उनकी एक `पोस्ट` का गहरा प्रभाव हो सकता है। यह सिर्फ एक वीडियो नहीं, बल्कि एक कूटनीतिक संकेत बन जाता है, जो दोनों देशों के बीच पहले से ही तनावपूर्ण संबंधों को और हवा दे सकता है। सवाल यह उठता है कि क्या खेल प्रशासकों को अपनी व्यक्तिगत राय को इस तरह सार्वजनिक मंच पर व्यक्त करना चाहिए, खासकर जब उनकी हर हरकत को दोनों देशों के बीच `माइक्रोस्कोप` के नीचे देखा जाता हो? क्या यह पद की गरिमा के अनुकूल है?

खेल भावना की कसौटी पर

क्रिकेट को हमेशा `जेंटलमैन गेम` कहा गया है। इसमें प्रतिद्वंद्विता तो होती है, लेकिन सम्मान और खेल भावना इसकी बुनियाद रही है। हारिस रऊफ और मोहसिन नकवी के इशारों ने इस बुनियाद पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या जीत-हार का दबाव इतना बढ़ गया है कि खिलाड़ी और अधिकारी खेल भावना को दरकिनार कर, उकसाने वाले हावभाव पर उतर आएं? पाकिस्तान टीम के तेज गेंदबाज शाहीन अफरीदी ने इस विवाद को कम करने की कोशिश करते हुए कहा कि “हमारा काम क्रिकेट खेलना है” और “हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार है।” यह बात सही है, लेकिन क्या `अपनी बात कहने` के अधिकार में दूसरे को अपमानित करने का अधिकार भी शामिल है? या फिर कुछ `अभिव्यक्ति` ऐसी होती हैं, जो खेल के बड़े दायरे को नुकसान पहुँचाती हैं?

यह विडंबना ही है कि जब खिलाड़ी मैदान पर पसीना बहाते हैं और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं, तब ऐसे छोटे-मोटे विवाद पूरी मेहनत पर पानी फेर देते हैं। ऐसे में भारतीय टीम का एशिया कप फाइनल में ACC अध्यक्ष के साथ मंच साझा करना एक `मुश्किल फैसला` बन सकता है।

आईसीसी और बीसीसीआई की भूमिका: जब अंपायर बजाएगा सीटी

यह मामला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) दोनों के संज्ञान में आ चुका है। ऐसे में उनकी भूमिका बेहद महत्वपूर्ण हो जाती है। आईसीसी का काम न केवल नियमों को लागू करना है, बल्कि खेल की अखंडता और भावना को बनाए रखना भी है। क्या नकवी के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी? यह देखना दिलचस्प होगा कि क्रिकेट की वैश्विक नियामक संस्था इस `ऑफ-फील्ड` विवाद से कैसे निपटती है। यह सिर्फ एक इशारा या एक वीडियो नहीं, बल्कि खेल कूटनीति का एक नाजुक संतुलन है जिसे बनाए रखना ज़रूरी है। अंततः, खेल को खेल ही रहना चाहिए, राजनीतिक अखाड़ा नहीं।

क्रिकेट: खेल या कूटनीतिक अखाड़ा?

यह विवाद हमें सोचने पर मजबूर करता है कि क्या क्रिकेट सिर्फ एक खेल बनकर रह गया है, या फिर यह अब देशों के बीच कूटनीतिक संदेशों का एक अप्रत्यक्ष माध्यम बन गया है? जब खिलाड़ी और अधिकारी ऐसी हरकतों में शामिल होते हैं, तो वे न केवल खेल की गरिमा को ठेस पहुँचाते हैं, बल्कि प्रशंसकों के बीच भी अनावश्यक तनाव पैदा करते हैं। क्रिकेट की आत्मा उसकी प्रतिस्पर्धी भावना में है, न कि उसकी `प्रतिद्वंद्वी` भावनाओं में। उम्मीद है कि भविष्य में सभी पक्ष खेल भावना का सम्मान करेंगे और मैदान पर केवल प्रतिभा का प्रदर्शन होगा, न कि बेतुके इशारों का। आखिर, गेंद और बल्ले की भाषा समझने में दुनिया को ज्यादा मजा आता है, बनिस्पत `विमान दुर्घटना` के इशारों के।

निरव धनराज

दिल्ली के प्रतिभाशाली खेल पत्रकार निरव धनराज हॉकी और बैडमिंटन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। उनकी रिपोर्टिंग में खिलाड़ियों की मानसिकता की गहरी समझ झलकती है।

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