भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मैच हमेशा से ही खेल के रोमांच और जुनून से कहीं बढ़कर रहे हैं। ये मुकाबले सिर्फ मैदान पर बल्ले और गेंद की जंग नहीं होते, बल्कि दो पड़ोसी देशों की भावनाओं, इतिहास और कभी-कभी राजनीति की झलक भी पेश करते हैं। हाल ही में हुए एशिया कप में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला, जब खेल भावना को ताक पर रखकर की गई राजनीतिक टिप्पणियां और इशारे अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (ICC) के नियमों के उल्लंघन के दायरे में आ गए। इस घटनाक्रम ने एक बार फिर बहस छेड़ दी है कि क्या खिलाड़ी मैदान पर सिर्फ खेलें, या वे अपने राष्ट्रीय भावनाओं को भी व्यक्त करने के लिए स्वतंत्र हैं?
सूर्यकुमार यादव का मामला: देशभक्ति या नियम का उल्लंघन?
एशिया कप में भारत-पाकिस्तान के ग्रुप मैच के बाद, भारतीय कप्तान सूर्यकुमार यादव ने अपनी टीम की जीत को “हमारी सशस्त्र सेनाओं” को समर्पित किया। उनके इस बयान, विशेषकर बाद में यह स्पष्ट करने पर कि उनका तात्पर्य मई में पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य अभियान में शामिल भारतीय सेना से था, ने ICC की आचार संहिता का उल्लंघन कर दिया। पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (PCB) ने तत्काल ICC से शिकायत की, जिसमें आरोप लगाया गया कि सूर्यकुमार की टिप्पणियां राजनीतिक संदेश देने के समान थीं, जो ICC के नियमों के खिलाफ है।
ICC के मैच रेफरी रिची रिचर्डसन ने सूर्यकुमार की “दोषी नहीं” की दलील को खारिज करते हुए उन्हें आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाया और उन पर मैच फीस का 30% जुर्माना लगाया। यह फैसला अपने आप में एक कड़ा संदेश है कि ICC खेल को राजनीति से दूर रखने के अपने रुख पर कायम है। हालांकि, भारतीय टीम ने इस फैसले के खिलाफ अपील की है, जिससे यह मामला अभी सुलझा नहीं है और आगे की कार्यवाही का इंतजार है।
“खेल और राजनीति को अलग-अलग रखना चाहिए। खिलाड़ियों को मैदान पर सिर्फ अपने खेल पर ध्यान देना चाहिए, न कि ऐसी टिप्पणियां करनी चाहिए जिससे विवाद पैदा हो।”
पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर भी गिरी गाज: जश्न या उकसावा?
यह विवाद सिर्फ भारतीय खेमे तक ही सीमित नहीं रहा। सुपर फोर मैच में, पाकिस्तानी खिलाड़ियों साहिबजादा फरहान और हारिस रऊफ पर भी आपत्तिजनक इशारे करने के आरोप लगे। फरहान ने अर्धशतक बनाने के बाद “बंदूक चलाने” जैसा इशारा किया, जिसे उन्होंने बाद में “अचानक का फैसला” बताया। वहीं, हारिस रऊफ को बाउंड्री पर फील्डिंग करते समय “विमान गिराने” जैसे कई इशारे करते हुए कैमरे में कैद किया गया, जो हालिया सैन्य संघर्ष की ओर इशारा कर रहा था।
दोनों पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने भी “दोषी नहीं” होने की दलील दी, यह तर्क देते हुए कि उनके इशारे राजनीतिक प्रकृति के नहीं थे। हालांकि, अंदरूनी सूत्रों की मानें तो PCB भी निजी तौर पर यह मान रहा है कि इन खिलाड़ियों पर जुर्माना लगने की पूरी संभावना है। यह दिखाता है कि इस तरह के व्यवहार को किसी भी पक्ष से बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
ICC का सख्त रुख: खेल को बचाना प्राथमिकता
ICC ने लंबे समय से खेल के मैदान पर राजनीतिक संदेशों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। PCB ने अपनी शिकायत में इस बात पर जोर दिया कि ICC ने अतीत में भी ऐसे कई मामलों में कार्रवाई की है, जहां खिलाड़ियों ने राजनीतिक या सामाजिक संदेश देने का प्रयास किया था। इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण उस्मान ख्वाजा का मामला है, जिन्हें गाजा में मानवीय संकट को उजागर करने वाले जूते पहनने से रोका गया था।
ICC की आचार संहिता स्पष्ट रूप से कहती है कि खिलाड़ियों को किसी भी ऐसे व्यवहार में शामिल नहीं होना चाहिए जो खेल की गरिमा को ठेस पहुंचाए, या ऐसे राजनीतिक, धार्मिक या नस्लीय संदेश व्यक्त करे जिससे खेल की अखंडता पर सवाल उठे। यह नियम इसलिए बनाए गए हैं ताकि क्रिकेट का खेल निष्पक्ष और सम्मानजनक तरीके से खेला जा सके, बिना किसी बाहरी दबाव या विभाजनकारी संदेशों के।
खेल भावना पर गहराता संकट
भारत और पाकिस्तान के बीच मैचों में मैदान पर तनाव और प्रतिद्वंद्विता स्वाभाविक है। लेकिन, हाल के मैचों में खिलाड़ियों के बीच हाथ न मिलाना और एक-दूसरे पर उंगली उठाना, जैसी घटनाएं यह दिखाती हैं कि खेल भावना कहीं खोती जा रही है। अभिषेक शर्मा ने तो यहां तक आरोप लगाया कि पाकिस्तानी खिलाड़ी “बिना किसी कारण के हम पर हावी होने की कोशिश कर रहे थे।”
यह घटनाक्रम क्रिकेट प्रेमियों के लिए चिंता का विषय है। खेल को हमेशा एकता और सद्भाव का प्रतीक माना गया है, न कि विभाजन या राजनीतिक एजेंडे को बढ़ावा देने का मंच। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर, खिलाड़ियों पर एक बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे खेल के राजदूत के रूप में कार्य करें और मैदान पर सम्मान तथा निष्पक्षता का प्रदर्शन करें।
सूर्यकुमार यादव के खिलाफ अपील का नतीजा और पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर ICC का अंतिम फैसला अभी आना बाकी है। लेकिन एक बात स्पष्ट है: क्रिकेट के मैदान पर राजनीतिक संदेश देने की कोई जगह नहीं है। यह घटनाक्रम सभी क्रिकेट बोर्डों और खिलाड़ियों के लिए एक अनुस्मारक है कि खेल सबसे ऊपर है, और इसकी पवित्रता को बनाए रखना हर किसी की जिम्मेदारी है। उम्मीद है कि भविष्य में, खेल सिर्फ खेल के रूप में देखा जाएगा, और खिलाड़ी अपने प्रदर्शन से ही सुर्खियां बटोरेंगे, न कि विवादित बयानों या इशारों से।