एक दशक से अधिक का सफर और एक अप्रत्याशित मोड़
केट क्रॉस, जिन्होंने इंग्लैंड के लिए 12 साल में 102 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं, महिला क्रिकेट की दुनिया में एक जाना-पहचाना नाम हैं। उनकी स्विंग गेंदबाजी और विकेट लेने की क्षमता ने उन्हें टीम का एक अभिन्न अंग बनाए रखा। लेकिन खेल की दुनिया में बदलाव की हवा अक्सर अनिश्चितताओं से भरी होती है। अगस्त 2025 में हुए एक पोस्ट-सीज़न मूल्यांकन के बाद, मुख्य कोच चार्लोट एडवर्ड्स और क्रिकेट निदेशक जोनाथन फिंच ने उन्हें सूचित किया कि उनका केंद्रीय अनुबंध अक्टूबर 2025 से नवीनीकृत नहीं किया जाएगा। यह खबर किसी भी पेशेवर खिलाड़ी के लिए एक बड़ा झटका होती है, खासकर जब उन्हें लगता है कि अभी भी उनके अंदर काफी क्रिकेट बाकी है।
क्रॉस ने अपने `नो बॉल्स` पॉडकास्ट पर इस खबर को सार्वजनिक करते हुए अपनी भावनाओं को साझा किया। उन्होंने बताया कि इस बात को कहने में उन्हें कितनी घबराहट महसूस हुई। यह एक ऐसा क्षण था जब एक एथलीट को अपने करियर के उस मोड़ का सामना करना पड़ा, जिसकी शायद उन्होंने कल्पना भी नहीं की थी, या जिसके लिए वे मानसिक रूप से तैयार नहीं थीं।
विश्व कप से बाहर, फिर भी `स्टैंडबाय` पर रहने का अनुरोध: अजीब विडंबना
संविदा रद्द होने के साथ-साथ, क्रॉस को विश्व कप टीम से भी बाहर कर दिया गया। यह दोहरा झटका था, जिसने उनके मनोबल को तोड़ दिया। हालांकि, कहानी में एक विचित्र मोड़ तब आया जब कोच एडवर्ड्स ने उनसे विश्व कप के लिए `स्टैंडबाय` पर रहने का अनुरोध किया। यानी, अगर किसी अन्य तेज गेंदबाज को चोट लगती है, तो क्रॉस को टीम में शामिल होने के लिए तैयार रहना होगा।
“यह वह बात है जो मुझे मुश्किल लग रही है, क्योंकि मेरा अंत बिंदु अभी नहीं है,” क्रॉस ने कहा। “मैं अगले सप्ताह ओल्ड ट्रैफर्ड में गेंदबाजी करने के लिए वापस आ रही हूँ। यह अच्छा नहीं रहा है। लेकिन मुझे यह भी सोचना होगा कि अगर चोट लगती है, तो मुझे विश्व कप में इंग्लैंड के लिए खेलने के लिए तैयार रहना होगा।”
यह स्थिति किसी भी खिलाड़ी के लिए कितनी विडंबनापूर्ण हो सकती है – आपको मुख्य टीम के लिए पर्याप्त अच्छा नहीं माना जाता, लेकिन आपात स्थिति के लिए आपको `फिट` और `तैयार` रहने को कहा जाता है। यह एक एथलीट की प्रतिबद्धता की पराकाष्ठा है, जहां व्यक्तिगत निराशा के बावजूद, राष्ट्रीय कर्तव्य की भावना प्रबल रहती है।
विश्वास की कमी और अनसुलझे सवाल
क्रॉस के लिए यह भावनाओं का एक जटिल जाल था। जुलाई में भारत के खिलाफ वनडे श्रृंखला के दौरान, उन्हें उप-कप्तान के रूप में श्रृंखला की शुरुआत करने के बावजूद अंतिम मैच से बाहर कर दिया गया था। उन्हें लगा कि कोच एडवर्ड्स का उन पर से `विश्वास` उठ गया है।
उन्होंने यह भी सोचा कि पिछले साल दक्षिण अफ्रीका में लगी पीठ की चोट ने उनके प्रदर्शन को प्रभावित किया होगा। हालांकि, उनका मानना है कि अभी भी उनके पास टीम को देने के लिए बहुत कुछ है। “मैं बेवकूफ नहीं हूँ,” उन्होंने कहा, “मैं इतनी बड़ी और समझदार हूँ, और कई बार इस तरह के अनुभवों से गुज़री हूँ कि जानती हूँ कि कुछ ऐसा हुआ है जिसका मतलब यह हो सकता है कि मेरा भविष्य थोड़ा खतरे में है।” यह बयान उनकी आत्म-जागरूकता और खेल की जटिलताओं को समझने की क्षमता को दर्शाता है।
करियर के चौराहे पर: अब क्या?
अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से विदाई अक्सर एथलीट के लिए एक कठिन संक्रमण होता है। बहुत कम खिलाड़ियों को अपने `नियमों` पर संन्यास लेने का विशेषाधिकार मिलता है। क्रॉस ने भी यह स्वीकार किया कि उनका अंतर्राष्ट्रीय करियर कभी न कभी समाप्त होना ही था, और शायद यह उनके तरीके से नहीं होगा। लेकिन जिस गति से यह सब हुआ, उसने उन्हें झकझोर दिया है। वह इतनी अनिश्चित हैं कि उन्होंने यह भी सवाल किया कि क्या वह अब और क्रिकेट खेलना चाहती हैं।
विडंबना यह है कि इस सब के बीच, क्रॉस हाल ही में अपनी घरेलू टीम लंकाशायर के साथ मेट्रो बैंक वन-डे कप महिला खिताब जीतने में सफल रहीं। यह दर्शाता है कि उनकी क्षमता में कोई कमी नहीं आई है। हालांकि, वह अभी तक घरेलू अनुबंध की तलाश करने या अपने भविष्य के बारे में एडवर्ड्स से बात करने के लिए तैयार नहीं हैं। वह सर्दियों का समय खेल से दूर रहकर अपने अगले कदम तय करने में बिताना चाहती हैं।
केट क्रॉस की कहानी पेशेवर खेल के उस पक्ष को उजागर करती है जो अक्सर सुर्खियों से दूर रहता है – कड़ी मेहनत, समर्पण के बाद भी अनिश्चितता और भावनात्मक उथल-पुथल। उनका संघर्ष कई खिलाड़ियों के लिए एक आईना है जो अपने करियर के अंत के करीब पहुँचते हैं। यह एक मार्मिक अनुस्मारक है कि खेल कितना भी ग्लैमरस क्यों न हो, इसमें मानवीय भावनाएं और चुनौतियां हमेशा गहराई से जुड़ी रहती हैं। हम उम्मीद करते हैं कि केट क्रॉस अपने लिए सबसे अच्छा रास्ता खोज पाएंगी और उनका अगला अध्याय भी उतना ही सफल होगा, जितना उनका क्रिकेट करियर रहा है।