क्रिकेट का मैदान, जहां अक्सर प्रतिद्वंद्विता के बावजूद खेल भावना की जीत होती है, इस बार भू-राजनीतिक `बाउंसर` का शिकार हो गया। बर्मिंघम में वर्ल्ड चैंपियनशिप ऑफ लीजेंड्स (WCL) में भारत और पाकिस्तान के दिग्गज खिलाड़ियों के बीच होने वाला बहुप्रतीक्षित मुकाबला रद्द कर दिया गया है। यह फैसला भारतीय खिलाड़ियों द्वारा पाकिस्तान के खिलाफ खेलने से इनकार करने के बाद आया, जो यह दर्शाता है कि खेल और कूटनीति की सीमाएँ कितनी धुंधली हो चुकी हैं।
मैच रद्द होने का कारण: राष्ट्रवाद बनाम खेल भावना
यह कोई सामान्य मैच रद्द होना नहीं है; यह `ऑपरेशन सिंदूर` नामक भारतीय सैन्य कार्रवाई के बाद का पहला बड़ा खेल-जगत का `फॉलोआउट` है, जो पहलगाम आतंकी हमले के बाद हुई थी। इस घटना ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया, और इसका सीधा असर खिलाड़ियों के मानस पर पड़ा। युवराज सिंह, सुरेश रैना, हरभजन सिंह, इरफान पठान और शिखर धवन जैसे दिग्गजों ने स्पष्ट कर दिया कि वे इस संवेदनशील समय में पाकिस्तान के खिलाफ मैदान पर नहीं उतरेंगे। उनकी यह स्थिति एक पेशेवर खिलाड़ी की प्रतिबद्धता और राष्ट्रीय भावना के बीच एक नाजुक संतुलन का परिणाम थी।
आयोजकों की `भोली` उम्मीदें और कड़वी सच्चाई
WCL के आयोजकों की दुविधा को समझा जा सकता है। इंग्लैंड और वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) द्वारा मान्यता प्राप्त इस लीग में दुनिया भर से टीमें हिस्सा ले रही थीं। उन्होंने हॉकी और वॉलीबॉल जैसे अन्य खेलों में भारत-पाकिस्तान मुकाबलों को देखते हुए, शायद थोड़ी भोली आशा के साथ, सोचा था कि वे दुनिया भर के लोगों के लिए “खुशहाल यादें” बना सकते हैं।
“हमने सोचा था कि हम लोगों के लिए कुछ खुशहाल यादें बनाएंगे… लेकिन शायद इस प्रक्रिया में, हमने कई लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचाई और भावनाओं को भड़काया। इससे भी बढ़कर, हमने अनजाने में अपने भारतीय क्रिकेट दिग्गजों को असहज किया, जिन्होंने देश के लिए इतनी प्रसिद्धि लाई है, और हमने उन ब्रांडों को प्रभावित किया जिन्होंने खेल के प्रति विशुद्ध प्रेम के कारण हमारा समर्थन किया था। इसलिए हमने भारत-पाकिस्तान मैच को रद्द करने का फैसला किया।”
– WCL आयोजक
यह स्वीकारोक्ति खेल को कूटनीति से अलग रखने की उनकी कोशिशों की विफलता को दर्शाती है। खिलाड़ियों की असहजता और प्रायोजकों पर पड़े नकारात्मक प्रभाव ने उन्हें मैच रद्द करने के लिए मजबूर कर दिया। आखिरकार, जब राष्ट्रीय भावनाएं प्रबल हों, तो सिर्फ खेल के उत्साह पर ध्यान केंद्रित करना संभव नहीं होता।
शिखर धवन और प्रायोजकों का स्पष्ट रुख
शिखर धवन, जो अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं, पहले भारतीय खिलाड़ियों में से थे जिन्होंने अपनी स्थिति स्पष्ट की। उनकी टीम ने एक औपचारिक बयान में कहा कि “वर्तमान भू-राजनीतिक स्थिति और भारत और पाकिस्तान के बीच व्याप्त तनाव को देखते हुए, श्री धवन और उनकी टीम ने उचित विचार-विमर्श के बाद यह स्थिति ली है।” यह सिर्फ खिलाड़ियों का व्यक्तिगत निर्णय नहीं था, बल्कि राष्ट्रीय भावनाओं का सम्मान था, जिसे एक सार्वजनिक बयान के माध्यम से रेखांकित किया गया।
इतना ही नहीं, टूर्नामेंट के एक प्रमुख प्रायोजक ने भी खुद को इस मैच से अलग कर लिया, यह स्पष्ट करते हुए कि वे “पाकिस्तान से जुड़े किसी भी WCL मैच के साथ संबद्ध या उसमें भाग नहीं लेंगे।” यह वित्तीय हितधारकों की भी यही राय थी कि इस मुद्दे पर तटस्थ रहना संभव नहीं। ब्रांड्स को अपने उपभोक्ता आधार की भावनाओं का सम्मान करना होता है, और ऐसे संवेदनशील समय में किसी भी तरह की प्रतिकूलता से बचना स्वाभाविक है।
खेल, कूटनीति और `जेंटलमैन का खेल`
यह घटना सिर्फ एक क्रिकेट मैच के रद्द होने से कहीं बढ़कर है। यह इस बात का प्रमाण है कि खेल, जिसे अक्सर देशों के बीच पुल बनाने का एक माध्यम माना जाता है, भी भू-राजनीतिक तनावों से अछूता नहीं रह सकता। भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट मुकाबले, जो पहले दुनिया भर में जुनून पैदा करते थे, अब दुर्लभ हो गए हैं और अक्सर राजनीतिक झंझावातों में फंस जाते हैं।
WCL, जिसमें इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका और वेस्टइंडीज की टीमें भी शामिल हैं, अब इस बात का गवाह है कि मैदान पर बॉल और बैट का खेल कितना भी रोमांचक क्यों न हो, कभी-कभी मैदान के बाहर की `पिच` ही अंतिम निर्णय लेती है। और यह दिखाता है कि `जेंटलमैन का खेल` भी आखिर में `जेंटलमैन` की भावनाओं और राष्ट्रीय सम्मान का सम्मान करता है, भले ही इसके लिए खेल के मैदान पर एक बड़ी भिड़ंत को स्थगित करना पड़े। यह एक ऐसी वास्तविकता है जिससे खेल जगत भी बच नहीं सकता, और जो शायद हमें याद दिलाती है कि कुछ मुद्दे खेल से भी बड़े होते हैं।