महिला क्रिकेट विश्व कप: क्या “अजेय” ऑस्ट्रेलिया का राज खत्म हो रहा है?

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क्रिकेट जगत में ऑस्ट्रेलियाई महिला टीम का नाम सुनते ही एक ही शब्द दिमाग में आता है – दबदबा। पिछले दो दशकों में उन्होंने जिस तरह से इस खेल पर अपनी पकड़ बनाई है, वह किसी अजूबे से कम नहीं। सात एकदिवसीय विश्व कप और छह टी-20 विश्व कप खिताब, यह आंकड़े ही उनकी महारत की कहानी कहते हैं। ऐसा लगता था मानो उन्हें हराना नामुमकिन है, एक ऐसी टीम जिसके पास हर चुनौती का जवाब है। लेकिन, क्या अब यह कहानी बदलने लगी है? क्या क्रिकेट का यह `अजेय` किला अब दरकने लगा है? हालिया आंकड़े और मैच परिणाम तो कुछ ऐसे ही संकेत दे रहे हैं।

ऑस्ट्रेलिया की स्वर्णिम गाथा: एक युग का प्रतीक

एक समय था जब ऑस्ट्रेलियाई महिला टीम को केवल जीत के लिए ही मैदान पर उतरते देखा जाता था। 2017 से 2022 के चक्र में, उन्होंने 33 में से 31 एकदिवसीय मैच जीते, जिसमें उनका जीत-हार का अनुपात 15.5 था – जो किसी भी अन्य टीम से मीलों आगे था। उनकी बल्लेबाजी औसत (42.36) और गेंदबाजी औसत (21.23) दोनों में ही वे प्रतिद्वंदियों से कहीं बेहतर थीं। यह प्रदर्शन इतना प्रभावशाली था कि कई बार तो मुकाबले एकतरफा लगने लगते थे। स्मृति मंधाना या हरमनप्रीत कौर जैसी खिलाड़ी भी जब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बड़ा स्कोर बनाने की कोशिश करती थीं, तो अक्सर भारत को हार ही मिलती थी।

बदलते समीकरण: क्या फासला सिमट रहा है?

लेकिन, 2022 विश्व कप फाइनल में अपनी जीत के बाद से, परिदृश्य थोड़ा बदला-बदला सा लग रहा है। ऑस्ट्रेलिया अभी भी जीत रही है, 30 में से 26 मैच जीतना कोई छोटी बात नहीं है, लेकिन उनके और बाकी टीमों के बीच का अंतर निश्चित रूप से कम हुआ है।

  • अभूतपूर्व हार: 2014 के बाद से द्विपक्षीय एकदिवसीय श्रृंखला में ऑस्ट्रेलिया को सिर्फ एक बार हार का सामना करना पड़ा है – वह भी 2023 महिला एशेज में इंग्लैंड से 1-2 से।
  • उच्च स्कोर का सामना: हाल ही में दिल्ली में भारतीय टीम के खिलाफ उन्होंने पहली बार 300 से अधिक रन (369) लुटाए। यह एकदिवसीय इतिहास में दूसरा सबसे बड़ा लक्ष्य है जिसे हासिल करने की कोशिश की गई।
  • पावरप्ले की चुनौतियाँ: अपनी 13 मैचों की जीत की लय तोड़ने वाले एक मैच में वे पावरप्ले में केवल 25 रन ही बना पाईं, जो 2016 के बाद से 10 ओवर में उनका दूसरा सबसे कम स्कोर है।

आँकड़ों की जुबानी: अन्य टीमों का उदय

सबसे दिलचस्प बात यह है कि यह बदलाव केवल ऑस्ट्रेलिया के प्रदर्शन में मामूली गिरावट के कारण नहीं है, बल्कि अन्य टीमों, विशेष रूप से भारत और इंग्लैंड, के शानदार सुधार के कारण है।

बल्लेबाजी में क्रांति:

2017-2022 चक्र की तुलना में 2022 विश्व कप के बाद के आंकड़ों पर गौर करें तो:

  • ऑस्ट्रेलिया का औसत: 39.98 से घटकर 35.53 हुआ है।
  • अन्य टीमों का औसत: वहीं, दक्षिण अफ्रीका का 29.1 से 32, भारत का 28.52 से 33.72 और इंग्लैंड का 27.92 से 31.43 हो गया है। यानी, अन्य टीमों ने ऑस्ट्रेलिया से भी बेहतर सुधार दिखाया है।
  • स्ट्राइक रेट में उछाल: भारत, इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका ने स्ट्राइक रेट में जबरदस्त छलांग लगाई है। भारत के स्ट्राइक रेट में तो तीन गुना से भी अधिक का सुधार देखा गया है!
  • शर्तक लगाने की होड़: 2017-2022 में भारत के खाते में केवल चार शतक थे, लेकिन 2024-2025 में स्मृति मंधाना ने अकेले ही इसकी भरपाई कर दी। दक्षिण अफ्रीका की तज़मिन ब्रिट्स और लौरा वोल्वार्ड्ट ने भी अकेले-अकेले छह शतक जड़े हैं।

गेंदबाजी का संतुलन:

गेंदबाजी के मोर्चे पर भी, ऑस्ट्रेलिया का औसत मामूली रूप से बढ़ा (21.23 से 22.19) है, जबकि इंग्लैंड (25.93 से 23.41) और भारत (30.93 से 30.63) ने बल्लेबाजी में बढ़ते उछाल के बावजूद अपने औसत में सुधार किया है। यह दर्शाता है कि उनकी गेंदबाजी भी पहले की तुलना में अधिक प्रभावी हो रही है।

कप्तान का संघर्ष और युवा खिलाड़ियों की भूमिका

ऑस्ट्रेलियाई टीम में व्यक्तिगत प्रदर्शन की बात करें तो, कप्तान एलिसा हीली का हालिया फॉर्म चिंता का विषय रहा है। 2017-2022 के बीच 52.74 की औसत से 1635 रन बनाने वाली हीली ने विश्व कप फाइनल में मैच जिताऊ शतक भी जड़े थे। लेकिन उसके बाद, उन्होंने 27.17 की औसत से सिर्फ 625 रन बनाए हैं और 23 में से 16 पारियों में 10 ओवर से पहले ही पवेलियन लौट गई हैं।

हालांकि, फोबे लिचफील्ड और एनाबेल सदरलैंड जैसी युवा प्रतिभाओं ने राचेल हेन्स और मेग लैनिंग जैसे दिग्गजों की जगह बखूबी संभाली है, फिर भी टीम को अपने अनुभवी खिलाड़ियों से और अधिक प्रदर्शन की उम्मीद होगी। बेथ मूनी एकमात्र ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज हैं जिन्होंने 2022 के बाद 1000 से अधिक रन बनाए हैं, जबकि अन्य टीमों से 15 बल्लेबाजों ने यह आंकड़ा पार किया है।

आगामी विश्व कप: एक नया अध्याय?

यह सब हमें आगामी महिला एकदिवसीय विश्व कप (संभवतः 2025 में) की ओर ले जाता है, जो भारत में आयोजित होने वाला है। 2023 पुरुषों के एकदिवसीय विश्व कप की तरह, यह भी एक हाई-स्कोरिंग टूर्नामेंट होने की उम्मीद है। 2022 विश्व कप के बाद से भारत में महिला एकदिवसीय मैचों का औसत पहली पारी का स्कोर 292 रहा है, जो दक्षिण अफ्रीका के 237 और श्रीलंका के 225 से कहीं अधिक है।

यह आंकड़े केवल यह नहीं बताते कि ऑस्ट्रेलिया थोड़ा फिसला है, बल्कि यह भी दिखाते हैं कि बाकी टीमें अब मजबूती से खड़ी हो गई हैं। वह `अजेय` का टैग अब महज एक पुरानी पहचान भर रह सकता है।

अब जबकि टीमें बल्लेबाजी के मामले में करीब आ गई हैं, तो जीत के अंतर (नेट रन रेट) भी सेमीफाइनल स्पॉट के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। पिछले आठ वर्षों में तीन टी-20 और एक एकदिवसीय विश्व कप जीतने के बावजूद, ऑस्ट्रेलिया को भी कुछ मौकों पर हार का सामना करना पड़ा है, जहां भाग्य ने या किसी व्यक्तिगत चमत्कारिक प्रदर्शन ने खेल का रुख बदल दिया। 2017 में हरमनप्रीत कौर की ऐतिहासिक पारी या 2024 टी-20 विश्व कप सेमीफाइनल में टॉस का खेल, यह सब दर्शाता है कि शीर्ष पर बने रहना कितना मुश्किल है।

अक्टूबर 2025 में, जब अन्य टीमें मौजूदा चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैदान में उतरेंगी, तो उनके पास यह मानने के पर्याप्त कारण होंगे कि वे उन्हें हरा सकती हैं। इंग्लैंड ने दो साल पहले एशेज एकदिवसीय मैचों में और भारत ने हाल ही में यही दिखाया है। यदि इस बार अप्रत्याशित परिणाम आते हैं, तो शायद उन्हें अब केवल “अपवाद” नहीं माना जाएगा, बल्कि एक नए युग की शुरुआत समझा जाएगा। क्रिकेट में प्रतिस्पर्धा का यह नया दौर निश्चित रूप से प्रशंसकों के लिए रोमांचक होगा।

प्रमोद विश्वनाथ

बेंगलुरु के वरिष्ठ खेल पत्रकार प्रमोद विश्वनाथ फुटबॉल और एथलेटिक्स के विशेषज्ञ हैं। आठ वर्षों के अनुभव ने उन्हें एक अनूठी शैली विकसित करने में मदद की है।

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