नॉर्वे शतरंज 2025: मैग्नस कार्लसन का विजयी मुकुट, उदासीनता के बावजूद

खेल समाचार » नॉर्वे शतरंज 2025: मैग्नस कार्लसन का विजयी मुकुट, उदासीनता के बावजूद
शतरंज के बादशाह मैग्नस कार्लसन ने एक बार फिर साबित कर दिया कि खेल के प्रति उनकी `अनादर` की भावना भी उनकी प्रतिभा को कम नहीं कर सकती। सातवीं बार नॉर्वे शतरंज जीतकर उन्होंने दिखाया कि वे न सिर्फ सबसे अच्छे हैं, बल्कि कभी-कभी अपनी ही शर्तों पर खेलते हुए भी अपराजेय हैं।

शतरंज की दुनिया में मैग्नस कार्लसन एक ऐसा नाम है, जो अक्सर अपनी ही शर्तों पर चलता है। जहाँ एक ओर विश्व के शीर्ष खिलाड़ी क्लासिकल शतरंज में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए हर दाँव खेलते हैं, वहीं कार्लसन खुले तौर पर इस फॉर्मेट के प्रति अपनी घटती रुचि और कभी-कभी तो `नफरत` भी व्यक्त करते हैं। लेकिन फिर भी, नियति का नियम हो या उनका जन्मजात कौशल, जब परिणाम की बात आती है, तो `मैग्नस ही मैग्नस` होते हैं। नॉर्वे शतरंज 2025 में उनकी सातवीं जीत इसका एक और प्रमाण है।

क्लासिकल शतरंज से `मोहभंग` और फिर भी जीत

कार्लसन ने कई बार कहा है कि क्लासिकल शतरंज में उनकी रुचि कम हो गई है। उनके अनुसार, यह अब उतना मजेदार नहीं रहा और वे इसमें कुछ नया हासिल नहीं कर पा रहे हैं। टूर्नामेंट के बीच में तो उन्होंने यह भी कह दिया था कि वे इस फॉर्मेट में अपने भविष्य पर पुनर्विचार करेंगे। यह विडंबना ही है कि जिस फॉर्मेट से वे इतना `ऊब` चुके हैं, उसी में उन्होंने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को पछाड़ते हुए शानदार जीत हासिल की। क्या यह सिर्फ उनके अहंकार का प्रदर्शन था? शायद, और इसी में उनकी जीत का असली स्वाद छिपा है। वे दिखाना चाहते थे कि विश्व चैंपियन कोई और हो सकता है, लेकिन `राजा` अभी भी वही हैं – और वह भी उनकी मर्जी से।

डी. गुकेश से हार: एक चिंगारी जिसने आग लगाई

इस जीत में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया था, जब कार्लसन को युवा और प्रतिभाशाली विश्व चैंपियन डी. गुकेश के हाथों हार का सामना करना पड़ा। यह हार सिर्फ एक खेल की हार नहीं थी; यह मैग्नस के `अजेय` होने की धारणा पर एक चोट थी। जिस तरह से उन्होंने एक जीती हुई बाजी गंवाई और उसके बाद गुस्से में मेज पर हाथ पटका, `हे भगवान` चिल्लाए और हॉल से बाहर चले गए – यह एक दुर्लभ भावनात्मक प्रतिक्रिया थी। इस हार ने शायद कार्लसन के भीतर उस प्रतिस्पर्धी भावना को फिर से जगा दिया, जिसे वे क्लासिकल शतरंज के प्रति अपनी उदासीनता में दबा चुके थे। हार के बाद उन्होंने टूर्नामेंट में कोई और क्लासिकल गेम नहीं हारा। गुकेश ने असंभव को संभव कर दिखाया था, और कार्लसन को यह बिल्कुल पसंद नहीं आया था।

“एक बहुत अच्छा टूर्नामेंट खेलने का मेरा सपना उस गेम (गुकेश से राउंड 6 में हार) के साथ टूट गया था… मैं ऐसा स्कोर चाहता था जो इस बात को दर्शाता कि मैं अभी भी शतरंज में काफी बेहतर हूँ, और चूंकि मैं उसे हासिल नहीं कर पाया, तो टूर्नामेंट की संभावित जीत का उतना मतलब नहीं होगा,” कार्लसन ने Chess.com के लाइव स्ट्रीम पर कहा।

कार्लसन बनाम कार्लसन: स्वयं से ही सबसे बड़ी चुनौती

मैग्नस के लिए सबसे बड़ी प्रतियोगिता किसी अन्य खिलाड़ी से नहीं, बल्कि खुद मैग्नस से है। वे मानते हैं कि वे अपने सर्वश्रेष्ठ स्तर पर नहीं खेल रहे हैं, वे पहले जितने प्रेरित भी नहीं हैं, और फिर भी, किसी भी फॉर्मेट में मैग्नस कार्लसन को हराना लगभग असंभव है। उनके खिलाफ प्रतिस्पर्धा करना संभव है। ड्रॉ करना संभव है। लेकिन उन्हें हराना? यह एक दुर्लभ घटना है। और जब कोई ऐसा करता है, तो कार्लसन उसे भूलते नहीं। गुकेश से हार के तुरंत बाद, उन्होंने हिकारू नाकामुरा के खिलाफ एक त्वरित ड्रॉ खेल दिया, जो उनकी निराशा और शायद आगे की रणनीति को दर्शाता था।

उन्होंने इस ड्रॉ के बाद कहा था, “ऐसा नहीं है कि मैं क्लासिकल शतरंज नहीं खेल सकता… लेकिन कल जैसी स्थिति में (गुकेश से हार), मैं सोच रहा था, `मैं यह क्यों कर रहा हूँ? इसका क्या मतलब है?`” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे अपने स्तर को लेकर चिंतित नहीं हैं, बस उन्हें अब मजा नहीं आता।

अद्वितीय प्रतिभा का प्रमाण: अंतिम राउंड की बाजी

टूर्नामेंट जीतने के लिए, अंतिम राउंड में उन्होंने अपनी अद्वितीय प्रतिभा की झलक दिखाई। अर्जुन एरिगैसी ने 34 चालों तक लगभग एक बेहतरीन खेल खेला था। लेकिन मात्र छह चालों के भीतर, कार्लसन ने एक हारी हुई स्थिति को जीत में बदल दिया। हालांकि, उन्होंने जीत पर अंतिम मुहर लगाने से खुद को रोक लिया क्योंकि उन्हें पता था कि ड्रॉ भी उन्हें खिताब दिलाने के लिए पर्याप्त होगा। कमेंट्री बॉक्स में डेविड हॉवेल, जोवनका हौस्का और तानिया सचदेव लगभग निशब्द थे। वे कार्लसन की प्रतिभा को जानते थे, लेकिन फिर भी वे उनके खेल की समझ और उनके मोहरों के तालमेल से मंत्रमुग्ध हो गए। कोई भी उनसे बेहतर नहीं करता।

निष्कर्ष: शतरंज के सम्राट का शाश्वत राज

तो, कहानी स्पष्ट है। दुनिया के शीर्ष खिलाड़ियों ने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया। वे बहुत करीब भी आए – अंतिम स्टैंडिंग में केवल आधे अंक का अंतर था। लेकिन वह व्यक्ति, जिसमें फॉर्मेट के प्रति प्रेरणा की कमी थी, जो इसे खेलने की आवश्यकता पर भी सवाल उठा रहा था, फिर भी उन सबसे श्रेष्ठ साबित हुआ। यहीं पर मैग्नस कार्लसन की महानता निहित है, जो निस्संदेह अब तक के सबसे महान शतरंज खिलाड़ी हैं। उनकी जीत केवल एक ट्रॉफी नहीं, बल्कि एक घोषणा है कि शतरंज की दुनिया का ताज अभी भी उन्हीं के सिर पर है, भले ही वे कभी-कभी उसे उतारने की बात ही क्यों न करते हों।

प्रमोद विश्वनाथ

बेंगलुरु के वरिष्ठ खेल पत्रकार प्रमोद विश्वनाथ फुटबॉल और एथलेटिक्स के विशेषज्ञ हैं। आठ वर्षों के अनुभव ने उन्हें एक अनूठी शैली विकसित करने में मदद की है।

© 2025 वर्तमान क्रिकेट समाचारों का पोर्टल