ऑस्ट्रेलियाई वनडे टीम से रवींद्र जडेजा की गैर-मौजूदगी: क्या कहता है टीम प्रबंधन और क्या हैं ‘सर जडेजा’ के अगले कदम?

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भारतीय क्रिकेट के सबसे बहुमुखी खिलाड़ियों में से एक, रवींद्र जडेजा, को आगामी ऑस्ट्रेलिया वनडे सीरीज के लिए टीम इंडिया से बाहर रखा गया है। यह खबर उन लाखों प्रशंसकों के लिए थोड़ी निराशाजनक हो सकती है, जो उन्हें नीली जर्सी में देखने के आदी हैं। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि स्वयं `सर जडेजा` इस फैसले से ज़रा भी अचंभित नहीं हैं। आइए, इस पूरे घटनाक्रम का विश्लेषण करें और जानें कि भविष्य के लिए इस अनुभवी ऑलराउंडर की क्या योजनाएं हैं।

अचंभित नहीं, बल्कि आभारी

दिल्ली टेस्ट में वेस्टइंडीज के खिलाफ दूसरे दिन के खेल के बाद अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में रवींद्र जडेजा ने स्पष्ट किया कि उन्हें अपने चयन न होने पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उन्होंने टीम प्रबंधन और चयनकर्ताओं से हुए संवाद की सराहना की, जो उनके अनुसार “सुचारु” था। यह पारदर्शिता किसी भी खिलाड़ी के लिए महत्वपूर्ण होती है, खासकर जब बात उच्च स्तर के खेल की हो।

“चयन मेरे हाथ में नहीं है। मैं निश्चित रूप से खेलना चाहता हूँ। अंत में, टीम प्रबंधन, चयनकर्ता, कोच और कप्तान के अपने विचार होते हैं और इस सीरीज के लिए मुझे न चुनने के उनके पास अपने कारण होंगे। उन्होंने मुझसे बात की है, टीम की घोषणा के बाद यह मेरे लिए कोई आश्चर्य की बात नहीं थी।”

37 साल के होने जा रहे जडेजा ने पिछले साल टी20 विश्व कप जीतने के बाद इस फॉर्मेट से संन्यास ले लिया था, लेकिन उनकी निगाहें **2027 वनडे विश्व कप** पर टिकी हैं। यह दर्शाता है कि उम्र उनके लिए केवल एक संख्या है, और देश के लिए खेलने का उनका जुनून अभी भी बरकरार है। एक अनुभवी खिलाड़ी के लिए ऐसी महत्वाकांक्षा रखना प्रशंसनीय है, खासकर जब युवा प्रतिभाएं हर कोने में दस्तक दे रही हों।

चयनकर्ताओं का गणित: संतुलन और प्रतिस्पर्धा

भारत के मुख्य चयनकर्ता अजीत अगरकर ने जडेजा की गैर-मौजूदगी पर विस्तार से बात की। उनका मुख्य तर्क ऑस्ट्रेलियाई परिस्थितियों में टीम के संतुलन से जुड़ा था। अगरकर के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया में दो बाएं हाथ के स्पिनरों को टीम में शामिल करना संभव नहीं था। चयनकर्ताओं का यह `गणित` कभी-कभी काफी जटिल हो सकता है, विशेषकर जब एक ही भूमिका के लिए दो बेहतरीन विकल्प मौजूद हों।

अगरकर ने यह भी स्पष्ट किया कि जडेजा अभी भी उनकी भविष्य की योजनाओं का हिस्सा हैं और यह केवल तात्कालिक टीम संयोजन का मामला है। उन्होंने मार्च में यूएई में चैंपियंस ट्रॉफी का उदाहरण दिया, जहाँ परिस्थितियों के कारण अतिरिक्त स्पिनरों को ले जाया गया था। लेकिन ऑस्ट्रेलिया के लिए, वॉशिंगटन सुंदर और कुलदीप यादव जैसे खिलाड़ियों के साथ टीम में संतुलन बनाना उनकी प्राथमिकता थी। यह कड़वा सच है कि अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में हर स्थान पर कड़ी प्रतिस्पर्धा होती है, और कभी-कभी एक विश्व स्तरीय खिलाड़ी को भी केवल टीम संयोजन के कारण बाहर बैठना पड़ता है।

“जडेजा के संबंध में, फिलहाल ऑस्ट्रेलिया में दो बाएं हाथ के स्पिनरों को ले जाना संभव नहीं है। वह निश्चित रूप से योजनाओं का हिस्सा हैं, लेकिन स्थानों के लिए कुछ प्रतिस्पर्धा होगी। यह एक छोटी सीरीज है, आप सभी को समायोजित नहीं कर सकते और दुर्भाग्य से इस समय वह बाहर हैं।”

जडेजा का प्रदर्शन और भविष्य की राह

रवींद्र जडेजा का वनडे करियर आंकड़ों के लिहाज से प्रभावशाली रहा है। उन्होंने 204 वनडे मैचों में 231 विकेट लिए हैं और 2806 रन भी बनाए हैं, जो एक ऑलराउंडर के लिए उत्कृष्ट है। हाल ही में चैंपियंस ट्रॉफी में भी उन्होंने 5 मैचों में 5 विकेट लिए थे, जिसमें उनकी इकोनॉमी दर 4.35 रही थी, जो कि काफी प्रभावी थी।

उनकी फिटनेस, मैदान पर उनकी फुर्ती और निचले क्रम में संकटमोचक बल्लेबाज के रूप में उनकी क्षमता उन्हें किसी भी टीम के लिए एक अमूल्य संपत्ति बनाती है। ऐसे में, उनका यह बयान कि वे **2027 विश्व कप** खेलना चाहते हैं, यह दिखाता है कि उनके अंदर अभी भी बहुत क्रिकेट बाकी है। इस उम्र में भी एक बड़े टूर्नामेंट का लक्ष्य रखना उनके दृढ़ संकल्प का प्रमाण है – एक ऐसा दृढ़ संकल्प जो उन्हें `सर जडेजा` बनाता है।

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ यह सीरीज (19, 23 और 25 अक्टूबर को 3 वनडे, उसके बाद 29 अक्टूबर से 8 नवंबर तक 5 टी20) भारतीय टीम के लिए नए संयोजनों को आज़माने और युवा प्रतिभाओं को परखने का एक अवसर है। जडेजा के लिए, यह समय शायद घरेलू क्रिकेट में और अधिक प्रभाव डालने और अपनी फिटनेस व फॉर्म को शीर्ष स्तर पर बनाए रखने का है, ताकि जब अगला अवसर आए, तो उसे कोई रोक न सके। यह `रणनीतिक ब्रेक` उन्हें अगले बड़े लक्ष्य के लिए और भी मजबूत बना सकता है।

निष्कर्ष: एक योद्धा की अविचलित भावना

रवींद्र जडेजा का ऑस्ट्रेलियाई वनडे सीरीज से बाहर होना, भारतीय क्रिकेट की गहराई और चयन की जटिलता को दर्शाता है। जहाँ चयनकर्ता टीम के तात्कालिक संतुलन और रणनीतिक आवश्यकताओं पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, वहीं जडेजा जैसे अनुभवी खिलाड़ी अपनी महत्वाकांक्षाओं और देश के लिए खेलने के जुनून को बनाए हुए हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि `सर जडेजा` अपनी 2027 विश्व कप की महत्वाकांक्षा को कैसे साकार करते हैं। एक बात तो तय है, एक योद्धा कभी हार नहीं मानता, वह बस अगले युद्ध की तैयारी करता है। भारतीय क्रिकेट में वापसी का उनका रास्ता भले ही चुनौतीपूर्ण हो, पर असंभव नहीं। उनके लाखों प्रशंसक भी इस बात का इंतजार कर रहे होंगे कि वे कब फिर से नीली जर्सी में जलवा दिखाते हैं।

आदित्य चंद्रमोहन

मुंबई में निवास करने वाले आदित्य चंद्रमोहन खेल पत्रकारिता में बारह वर्षों से सक्रिय हैं। क्रिकेट और कबड्डी की दुनिया में उनकी गहरी समझ है। वे खेल के सूक्ष्म पहलुओं को समझने और उन्हें सरल भाषा में प्रस्तुत करने में माहिर हैं।

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