भारतीय क्रिकेट में घर पर जीतना हमेशा से एक गौरव की बात रही है, और इसमें पिचों का अहम योगदान रहा है। अक्सर, हम देखते हैं कि विदेशी टीमें भारत आकर स्पिन-अनुकूल पिचों पर संघर्ष करती हैं। लेकिन, वेस्टइंडीज के खिलाफ चल रही मौजूदा टेस्ट श्रृंखला में एक दिलचस्प बदलाव देखने को मिला है। यह बदलाव केवल खेल के तरीके में नहीं, बल्कि खेल से पहले की तैयारी में भी है – यानी पिच तैयार करने की रणनीति में। भारतीय टीम अब `रैंक टर्नर` (अत्यधिक टर्निंग पिच) के बजाय `धीमे टर्नर` को प्राथमिकता दे रही है, और इस रणनीति के पीछे एक गहरा सबक छिपा है, जिसे टीम ने पिछली असफलताओं से सीखा है।
पिछले झटके से मिला सबक: न्यूजीलैंड का भूत और डब्ल्यूटीसी का सपना
क्या आपको याद है पिछले साल न्यूजीलैंड के खिलाफ घरेलू श्रृंखला? भारतीय टीम ने विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप के फाइनल में जगह बनाने की उम्मीद में ऐसी पिचें तैयार करवाई थीं जो पहले दिन से ही बहुत ज्यादा टर्न ले रही थीं। लेकिन, दांव उल्टा पड़ गया। उन अत्यधिक टर्निंग पिचों पर भारतीय बल्लेबाजों को भी संघर्ष करना पड़ा और अंततः यह रणनीति टीम को महंगी पड़ी, जिससे डब्ल्यूटीसी फाइनल का सपना टूट गया। यह अनुभव टीम प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण सीख बन गया। शायद यही कारण है कि वेस्टइंडीज के खिलाफ मौजूदा श्रृंखला में, पिच की मांग कुछ और ही थी।
जडेजा ने खोली रणनीति की परतें: `हमने धीमे टर्नर मांगे थे, रैंक टर्नर नहीं`
टीम के वरिष्ठ स्पिनर रवींद्र जडेजा, जो खुद पिच पर जादू बिखेरते हैं, ने इस बदली हुई रणनीति का खुलासा किया। दूसरे दिन तीन विकेट लेने के बाद, जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्हें पिच से मदद की कमी पर कोई आश्चर्य है, तो उनका जवाब बिल्कुल स्पष्ट था।
“नहीं, मुझे कोई हैरानी नहीं है क्योंकि हमने धीमे टर्नर मांगे थे। हमने रैंक टर्नर नहीं मांगे थे। हमें यही उम्मीद थी: कि जैसे-जैसे खेल आगे बढ़ेगा, पिच धीरे-धीरे टर्न देना शुरू कर देगी।”
जडेजा ने आगे बताया कि इस तरह की पिचों पर विकेट लेने के लिए गेंदबाजों को अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ती है। उन्हें अपनी पूरी ताकत और कंधे का इस्तेमाल करना होता है ताकि गेंद में उछाल और टर्न आ सके। यह उस पुरानी धारणा के विपरीत है जहां पिच खुद ही बल्लेबाजों को मुश्किल में डाल देती थी। अब, चुनौती यह है कि गेंदबाज अपनी कला से पिच को जिंदा रखें।
विरोधी भी हैरान: वेस्टइंडीज के स्पिनर वॉरिकन की गलत उम्मीदें
जहां एक ओर भारतीय खेमा अपनी रणनीति पर अडिग है, वहीं वेस्टइंडीज के बाएं हाथ के स्पिनर जोमेल वॉरिकन, जिन्होंने भारत की पहली पारी में पांच में से तीन विकेट लिए, पिच के मिजाज से काफी हैरान थे। उन्होंने न्यूजीलैंड श्रृंखला के हाइलाइट्स देखकर भारत की पिचों के बारे में जो धारणा बनाई थी, वह गलत साबित हुई।
“इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के बीच पिछले कुछ मैचों को देखने के बाद, पहले दिन से ही पिच बहुत टर्न ले रही थी। मेरी यही उम्मीद थी, लेकिन स्पष्ट रूप से, ऐसा नहीं है। पहले और दूसरे दिन बल्लेबाजी के लिए पिच अच्छी लग रही थी।”
वॉरिकन की यह प्रतिक्रिया भारतीय टीम की नई रणनीति की सफलता का प्रमाण है। जब विरोधी टीम गलत तैयारी के साथ मैदान पर उतरती है, तो मनोवैज्ञानिक बढ़त मेजबान टीम के पास होती है।
`धीमे टर्नर` का गणित: क्यों है यह `रैंक टर्नर` से बेहतर?
जडेजा ने `धीमे टर्नर` पिचों की बारीकियों को भी समझाया। उन्होंने कहा कि इन पिचों पर उछाल कम होता है और बहुत अधिक टर्न नहीं मिलता। गेंद की गति कम होने के कारण बल्लेबाज आसानी से लंबाई का अनुमान लगा सकते हैं और बैक फुट पर जाकर खेल सकते हैं। ऐसे में गेंदबाजों को गेंद को हवा में थोड़ा तेज़ फेंकना होता है ताकि बल्लेबाज को प्रतिक्रिया करने का कम समय मिले।
यह रणनीति भारतीय टीम को एक परिपक्व दृष्टिकोण देती है। यह केवल जीत दर्ज करने के लिए किसी भी हद तक जाने के बजाय, एक संतुलित और प्रभावी जीत की तलाश है। ऐसी पिचों पर, जहां हर गेंद टर्न नहीं लेती, गेंदबाजों को साझेदारी तोड़ने और बल्लेबाजों को लगातार दबाव में रखने के लिए अधिक कौशल और धैर्य का प्रदर्शन करना होता है। यह सिर्फ स्पिन के भरोसे जीत नहीं है, बल्कि एक पूरी टीम के प्रयासों की जीत है।
पार्थिव मामले: गिल और जायसवाल के बीच गलतफहमी
पिच रणनीति के अलावा, जडेजा ने यशस्वी जायसवाल और शुभमन गिल के बीच हुए रन-आउट के बाद की बहस पर भी अपनी राय रखी। उन्होंने इसे एक आम गलतफहमी बताया जो खेल का हिस्सा है। उनका कहना था कि स्ट्राइकर को लगा कि रन है, जबकि नॉन-स्ट्राइकर को नहीं लगा। ऐसी चीजें होती रहती हैं, लेकिन अच्छी बात यह थी कि टीम उस समय अच्छी स्थिति में थी। यह दर्शाता है कि मैदान पर छोटे-मोटे मतभेद खेल का हिस्सा हैं और टीम का ध्यान बड़े लक्ष्य पर केंद्रित है।
निष्कर्ष: एक नई दिशा में भारतीय क्रिकेट
कुल मिलाकर, वेस्टइंडीज के खिलाफ श्रृंखला में भारतीय टीम की पिच रणनीति एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है। यह पिछली गलतियों से सीखकर, अपनी ताकत पर भरोसा करते हुए, और विरोधी को भ्रमित करते हुए एक रणनीतिक जीत हासिल करने का प्रयास है। `धीमे टर्नर` का दांव केवल एक पिच की कहानी नहीं है, बल्कि यह भारतीय क्रिकेट की बदलती मानसिकता और परिपक्वता का प्रतीक है, जहां घर का फायदा अब केवल अत्यधिक स्पिन तक सीमित नहीं है, बल्कि एक गहन सोच और योजना का परिणाम है। यह टेस्ट क्रिकेट को और भी दिलचस्प बनाता है, जहां सिर्फ गेंद और बल्ले की नहीं, बल्कि दिमाग की लड़ाई भी लड़ी जाती है।