पूर्व विश्व शतरंज चैंपियन बोरिस स्पास्की का निधन: ‘सदी के मैच’ का नायक चला गया

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शतरंज की दुनिया के एक महान सितारे, पूर्व विश्व चैंपियन बोरिस स्पास्की का 88 वर्ष की आयु में मास्को में निधन हो गया है। सोवियत युग के इस दिग्गज खिलाड़ी को न केवल उनके शानदार खेल के लिए याद किया जाएगा, बल्कि विशेष रूप से 1972 के उस ऐतिहासिक मुकाबले के लिए, जिसे `सदी का मैच` कहा गया और जो शीत युद्ध के चरम पर अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वैचारिक संघर्ष का प्रतीक बन गया था।

एक विलक्षण प्रतिभा का उदय

बोरिस स्पास्की एक ऐसे शतरंज खिलाड़ी थे जिनमें बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा दिखती थी। वे जल्दी ही सोवियत शतरंज स्कूल के अग्रणी खिलाड़ियों में से एक बन गए, जो उस समय दुनिया में सबसे मजबूत माना जाता था। उनकी शैली बहुमुखी थी – वे आक्रामक और रक्षात्मक दोनों तरह से खेलने में माहिर थे, और परिस्थितियों के अनुसार ढलने की उनकी क्षमता अद्वितीय थी। ग्रैंडमास्टर बनने के बाद, उन्होंने विश्व चैंपियनशिप के लिए कई बार चुनौती पेश की और आखिरकार 1969 में ताज अपने नाम किया।

`सदी का मैच`: शतरंज के बोर्ड पर शीत युद्ध

1972 में आइसलैंड के रेक्जाविक में हुआ उनका मुकाबला अमेरिकी ग्रैंडमास्टर बॉबी फिशर के साथ था। यह सिर्फ दो खिलाड़ियों के बीच का मैच नहीं था; यह दो महाशक्तियों, अमेरिका और सोवियत संघ के बीच वर्चस्व की लड़ाई के रूप में देखा गया। एक तरफ सोवियत संघ का प्रतिनिधित्व कर रहे थे अनुभवी, शांत और बहुमुखी चैंपियन बोरिस स्पास्की, और दूसरी तरफ थे अमेरिका के असाधारण, विलक्षण, और अक्सर विवादित बॉबी फिशर।

यह मैच पूरे विश्व में सुर्खियां बटोर रहा था, शायद किसी भी अन्य शतरंज मुकाबले से कहीं ज़्यादा। लोग बेसब्री से परिणाम का इंतजार कर रहे थे, जैसे कि यह किसी युद्ध का फैसला हो। मैच में नाटकीय मोड़ आए, फिशर की मांगें, सोवियत प्रतिनिधिमंडल की शिकायतें – सब कुछ चर्चा का विषय बना। अंततः, फिशर ने जीत हासिल की और विश्व चैंपियन बने, जिससे दशकों से चले आ रहे सोवियत एकाधिकार का अंत हुआ।

स्पास्की की हार को सोवियत संघ में एक राष्ट्रीय त्रासदी के तौर पर देखा गया, लेकिन खुद स्पास्की ने उस मैच और फिशर के प्रति हमेशा सम्मान दिखाया। उनकी खेल भावना की अक्सर प्रशंसा की गई। यह एक ऐसा मुकाबला था जिसने शतरंज को खेल पन्नों से उठाकर अख़बारों के मुख्य पृष्ठों और टीवी स्क्रीनों पर ला दिया, और स्पास्की उस वैश्विक मंच के एक केंद्रीय पात्र थे।

विरासत और सम्मान

यद्यपि उन्होंने 1972 में अपना खिताब खो दिया, बोरिस स्पास्की ने खेलना जारी रखा और खेल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। 1976 में वे फ्रांस चले गए और बाद में फ्रांस के लिए भी खेले। अंतर्राष्ट्रीय शतरंज महासंघ (फिडे) ने उनके निधन पर उन्हें `हर समय के महानतम खिलाड़ियों में से एक` बताया। महान ग्रैंडमास्टर गैरी कास्पारोव ने भी स्पास्की को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि वे अगली पीढ़ी के खिलाड़ियों का मार्गदर्शन करने में कभी पीछे नहीं हटे, खासकर उन लोगों का जो `सोवियत व्यवस्था में सहज महसूस नहीं करते थे`। यह टिप्पणी स्पास्की के स्वतंत्र स्वभाव की ओर इशारा करती है।

सर्बियाई ग्रैंडमास्टर श्वेटोज़ार ग्लिगोरिक ने एक बार कहा था कि स्पास्की की गुप्त शक्ति `अपने विरोधियों की विभिन्न शैलियों के अनुकूल ढलने की उनकी विशाल क्षमता` में निहित थी। यह उनकी तकनीकी दक्षता और रणनीतिक गहराई का प्रमाण था।

अंतिम चाल

बोरिस स्पास्की का निधन शतरंज के इतिहास में एक युग के अंत का प्रतीक है। वे एक ऐसे खिलाड़ी थे जिन्होंने अपनी प्रतिभा, खेल भावना और 1972 के उस अविस्मरणीय मैच से लाखों लोगों को प्रेरित किया। शतरंज की बिसात पर उनकी चालें हमेशा याद रखी जाएंगी, और `सदी के मैच` के नायक के रूप में उनका स्थान इतिहास में हमेशा के लिए सुरक्षित रहेगा। शतरंज जगत इस महान खिलाड़ी को नम आंखों से विदाई दे रहा है।

प्रमोद विश्वनाथ

बेंगलुरु के वरिष्ठ खेल पत्रकार प्रमोद विश्वनाथ फुटबॉल और एथलेटिक्स के विशेषज्ञ हैं। आठ वर्षों के अनुभव ने उन्हें एक अनूठी शैली विकसित करने में मदद की है।

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