शतरंज के अदृश्य वास्तुकार: अर्पाद एलो और वह प्रणाली जिसने खेलों को हमेशा के लिए बदल दिया

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क्या आपने कभी सोचा है कि एक शतरंज खिलाड़ी की `ताकत` को कैसे मापा जाता है? वह कौन सा अदृश्य पैमाना है जो बताता है कि कौन विश्व चैंपियन है और कौन एक उभरता हुआ सितारा? इसका श्रेय एक ऐसे व्यक्ति को जाता है जिसका नाम शायद हर शतरंज प्रशंसक को याद न हो, लेकिन जिसका योगदान खेल के इतिहास में अविस्मरणीय है।

हम बात कर रहे हैं अर्पाद इमरिच एलो की, जिनकी 122वीं जयंती पर आज पूरी दुनिया उन्हें याद कर रही है। एक भौतिक विज्ञानी, एक कुशल शतरंज मास्टर और सबसे महत्वपूर्ण, रेटिंग प्रणाली के एक दूरदर्शी निर्माता, एलो ने खेलों को देखने और समझने का तरीका हमेशा के लिए बदल दिया।

कौन थे अर्पाद एलो? एक वैज्ञानिक का शतरंज प्रेम

अर्पाद एलो का जीवन विज्ञान और खेल के बीच एक अद्भुत संगम था। हंगरी के साम्राज्य में जन्मे, एलो 1913 में अपने माता-पिता के साथ संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। शिकागो विश्वविद्यालय से अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने 1926 से 1969 में अपनी सेवानिवृत्ति तक मिल्वौकी के मार्क्वेट विश्वविद्यालय में भौतिकी पढ़ाया।

शिक्षण के साथ-साथ, एलो शतरंज के मैदान पर भी अपना लोहा मनवा रहे थे। 1930 के दशक तक, वे मिल्वौकी के सबसे मजबूत खिलाड़ियों में से एक थे, एक ऐसा समय जब मिल्वौकी देश के प्रमुख शतरंज केंद्रों में से एक था। उन्होंने विस्कॉन्सिन राज्य चैम्पियनशिप आठ बार जीती और उन्हें वर्ल्ड चेस हॉल ऑफ फेम में शामिल होने वाले 11वें व्यक्ति का सम्मान भी मिला। उनकी बहुमुखी प्रतिभा और दोनों क्षेत्रों में उत्कृष्टता की यह कहानी ही उनकी सबसे बड़ी पहचान बनी।

एक नई प्रणाली का जन्म: अंकों में प्रतिभा का आकलन

1960 के दशक तक, शतरंज एक वैश्विक घटना बन चुका था, जिसमें हजारों खिलाड़ी प्रतिस्पर्धा कर रहे थे। लेकिन, खिलाड़ियों के प्रदर्शन को मापने और उनकी सापेक्ष शक्ति को निर्धारित करने का कोई सार्वभौमिक और निष्पक्ष तरीका नहीं था। यह कुछ ऐसा था जैसे एक भव्य आर्केस्ट्रा बिना कंडक्टर के बज रहा हो – हर कोई अपनी धुन में, कोई सामंजस्य नहीं।

यहीं पर अर्पाद एलो की प्रतिभा चमक उठी। उन्होंने एक ऐसी प्रणाली विकसित की जो गणितीय रूप से किसी खिलाड़ी के प्रदर्शन का आकलन करती थी, यह देखकर कि वे उम्मीदों से कितना ऊपर या नीचे प्रदर्शन करते हैं। यह प्रणाली बेहद सरल, फिर भी अविश्वसनीय रूप से प्रभावी थी:

  • यदि आप अपने प्रतिद्वंद्वी से 200 अंक ऊपर हैं, तो आपसे लगभग 75% अंक जीतने की उम्मीद की जाती है।
  • यदि आप इस उम्मीद को पूरा करते हैं, तो आपकी रेटिंग स्थिर रहती है।
  • यदि आप इसे पार करते हैं (यानी, उम्मीद से बेहतर खेलते हैं), तो आपकी रेटिंग बढ़ती है।
  • और यदि आप कम प्रदर्शन करते हैं (यानी, उम्मीद से खराब खेलते हैं), तो आपकी रेटिंग घट जाती है।

अमेरिकी शतरंज महासंघ (US Chess Federation) ने 1960 में इस प्रणाली को अपनाया, लेकिन 1970 में एफआईडीई (विश्व शतरंज महासंघ) द्वारा इसे आधिकारिक तौर पर अपनाने से यह वास्तव में एक वैश्विक मानक बन गया। यह भी एक दिलचस्प संयोग था कि उसी दशक में वाणिज्यिक माइक्रोप्रोसेसर और पॉकेट कैलकुलेटर का आगमन हुआ। कल्पना कीजिए, इतने जटिल गणनाओं को मैन्युअल रूप से करने का बोझ कितना कम हो गया होगा! अब, रेटिंग सूचियों को बनाए रखना कहीं अधिक आसान हो गया था, जिसने इस प्रणाली की स्वीकार्यता को और बढ़ा दिया।

शतरंज से परे: एक सार्वभौमिक भाषा

एलो प्रणाली की दक्षता और निष्पक्षता को देखते हुए, यह केवल शतरंज तक ही सीमित नहीं रही। इसकी सफलता ने दुनिया के अन्य खेलों का ध्यान आकर्षित किया, और जल्द ही इसे फुटबॉल, बेसबॉल, बास्केटबॉल और अन्य कई खेलों में भी अपनाया गया। यह एक खिलाड़ी की सापेक्ष शक्ति को मापने के लिए एक सार्वभौमिक भाषा बन गई है, जो विभिन्न लीगों और समय अवधियों में खिलाड़ियों की तुलना करना संभव बनाती है। यह सिर्फ संख्याओं का एक सेट नहीं, बल्कि प्रदर्शन, प्रतिभा और प्रगति का एक जीवित रिकॉर्ड है।

विरासत और विकास: एलो प्रणाली का अमर सफर

1971 में, एफआईडीई ने अपनी पहली रेटिंग सूची प्रकाशित की, जिसमें बॉबी फिशर 2760 अंकों के साथ शीर्ष पर थे – वे अकेले खिलाड़ी थे जो 2700 से ऊपर थे। उनके बाद तत्कालीन विश्व चैंपियन बोरिस स्पैस्की 2690 अंकों पर थे। तब से, यह सूची एक वार्षिक घटना से बढ़कर मासिक अपडेट में बदल गई है, जो खेल की गतिशीलता को दर्शाती है और प्रशंसकों को नवीनतम जानकारी प्रदान करती है।

मैग्नेस कार्लसन जैसे खिलाड़ियों ने 2882 के अविश्वसनीय स्तर तक पहुँच कर इस प्रणाली की क्षमता का प्रदर्शन किया है। इतिहास में केवल 14 अन्य खिलाड़ी ही 2800 के आंकड़े को पार कर पाए हैं। ग्रैंडमास्टर जैसे प्रतिष्ठित खिताब के लिए भी 2500 की रेटिंग आवश्यक है। यह प्रणाली केवल संख्याओं का संग्रह नहीं है; यह एक कहानीकार है, जो खिलाड़ियों के उत्थान और पतन, उनके संघर्षों और उनकी जीत को बयां करती है। यह वह अदृश्य धागा है जो खेल के महानतम क्षणों को एक साथ पिरोता है।

बेशक, कोई भी प्रणाली पूर्ण नहीं होती। आधुनिक खेल के अनुरूप ढलने के लिए एलो प्रणाली लगातार विकसित हो रही है। उदाहरण के लिए, 2024 में एक बड़ा अपडेट किया गया, जिसका उद्देश्य नए खिलाड़ियों, खासकर बच्चों और शुरुआती खिलाड़ियों की बढ़ती संख्या के साथ जुड़े रेटिंग मुद्रास्फीति को संबोधित करना था। यह दर्शाता है कि अर्पाद एलो का विचार कितना मजबूत था – इतना मजबूत कि यह समय के साथ न केवल टिका रहा, बल्कि अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए खुद को ढालता भी रहा, एक अनमोल विरासत की तरह, जिसे निरंतर सहेजने और संवारने की आवश्यकता है।

तो अगली बार जब आप किसी खिलाड़ी की रेटिंग देखें, तो एक पल के लिए अर्पाद एलो को याद करें। वह व्यक्ति जिसने गणित और जुनून के मिश्रण से, खेलों की दुनिया को मापने का एक ऐसा तरीका दिया जो आज भी उनके नाम से जाना जाता है – एक अदृश्य मापदंड, जो खिलाड़ियों के सपनों को साकार करने में मदद करता है और हमें बताता है कि वास्तव में कौन कितना महान है। उनकी विरासत, खेल की दुनिया में हमेशा चमकती रहेगी, ठीक एक चमकते हुए सितारे की तरह जो दूर से ही अपनी दिशा दिखाता है।

निरव धनराज

दिल्ली के प्रतिभाशाली खेल पत्रकार निरव धनराज हॉकी और बैडमिंटन के क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान रखते हैं। उनकी रिपोर्टिंग में खिलाड़ियों की मानसिकता की गहरी समझ झलकती है।

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