शतरंज की बिसात पर भारत की नई रानी: दिव्या देशमुख ने रचा इतिहास, विश्व कप फाइनल में सबसे कम उम्र की खिलाड़ी

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शतरंज की दुनिया में भारत का डंका लगातार बज रहा है, और इस बार यह गौरवशाली ध्वनि एक युवा प्रतिभा, दिव्या देशमुख के नाम से गूंज रही है। केवल 19 साल की उम्र में, इस भारतीय अंतरराष्ट्रीय मास्टर ने FIDE महिला शतरंज विश्व कप के फाइनल में पहुंचकर न केवल इतिहास रचा है, बल्कि कई दिग्गज खिलाड़ियों को भी धूल चटाई है। यह उनकी पहली विश्व कप उपस्थिति थी, और यह सफर किसी रोमांचक कहानी से कम नहीं रहा।

एक अप्रत्याशित यात्रा: दिग्गजों को मात

दिव्या देशमुख का विश्व कप फाइनल तक का सफर किसी तूफानी लहर की तरह था, जिसने रास्ते में आने वाली हर बाधा को पार किया। उन्होंने अपनी राह में कई उच्च वरीयता प्राप्त खिलाड़ियों को हराया, जिनमें चीन की पूर्व विश्व चैंपियन और तीसरी वरीयता प्राप्त तान झोंग्यी, दूसरी वरीयता प्राप्त झू जिनर और अपनी ही हमवतन, अनुभवी हरिका द्रोणावल्ली जैसे बड़े नाम शामिल हैं। ऐसा लगता है मानो उन्हें किसी भी प्रतिद्वंद्वी का भय न रहा हो, और हर मैच में उन्होंने अपनी अद्भुत प्रतिभा और मानसिक दृढ़ता का परिचय दिया।

वर्ष 2025 में हुए इस विश्व कप में, दिव्या, जो टूर्नामेंट में 15वीं वरीयता प्राप्त खिलाड़ी थीं, अब तक की सबसे युवा फाइनलिस्ट बन गई हैं। उन्होंने 2023 की फाइनलिस्ट नुरग्युल सलीमोवा से भी एक साल कम उम्र में यह उपलब्धि हासिल की है। इतना ही नहीं, वह सलीमोवा के बाद दूसरी ऐसी अंतरराष्ट्रीय मास्टर हैं जिन्होंने महिला विश्व कप के फाइनल में जगह बनाई है। यह उपलब्धि उनके भविष्य के लिए एक मजबूत नींव रखती है, क्योंकि इस जीत के साथ उन्होंने अगले साल होने वाले कैंडिडेट्स टूर्नामेंट के लिए भी क्वालीफाई कर लिया है, जो उन्हें विश्व चैंपियनशिप के लिए लड़ने का अवसर देगा।

सेमीफाइनल का रोमांचक नाटक: जहाँ धैर्य ने दिया जीत का स्वाद

तान झोंग्यी के खिलाफ सेमीफाइनल मुकाबला तो किसी थ्रिलर फिल्म से कम नहीं था। पहले गेम में ड्रॉ के बाद, दूसरे गेम में तान झोंग्यी के पास शुरुआती बढ़त थी। बीच के खेल में दिव्या समय की कमी से जूझ रही थीं, और एक समय तो ऐसा आया जब इंजन के अनुसार भी तान झोंग्यी फायदे में थीं। लेकिन कहते हैं न, `युवा जोश और अनुभव का संगम, कभी-कभी सिर्फ जोश ही भारी पड़ता है।`

दिव्या ने इस दबाव भरी स्थिति में भी हार नहीं मानी। तान झोंग्यी ने 32 से 35 चालों के बीच कुछ गलतियाँ कीं, और दिव्या ने मौके का फायदा उठाया। खेल के अंत में भी कई बार स्थिति लगभग बराबरी पर आ गई थी, और एक अनुभवी खिलाड़ी के सामने इतनी कम उम्र की खिलाड़ी से लगातार दबाव बनाए रखने की उम्मीद करना शायद थोड़ी ज्यादती होती।

लेकिन भारतीय शतरंज खिलाड़ियों की यह नई पीढ़ी मैदान छोड़ने वालों में से नहीं है।

दिव्या ने लगातार कोशिशें जारी रखीं, भले ही उनकी प्रतिद्वंद्वी के पास घड़ी पर काफी समय बचा था। और फिर, 90वीं चाल पर, तान झोंग्यी से एक और निर्णायक गलती हुई, जो दिव्या के लिए जीत का रास्ता बन गई। यह सिर्फ किस्मत नहीं थी, बल्कि उनकी अथक दृढ़ता और पूरे टूर्नामेंट में बनाए गए उच्च स्तर का परिणाम था। दिव्या ने खुद बाद में कहा कि वह बेहतर खेल सकती थीं, लेकिन यह जीत उनके संघर्ष की कहानी कहती है, जो शतरंज प्रेमियों के दिलों में हमेशा बसी रहेगी।

एक नई सुबह: भारतीय शतरंज का बढ़ता कद

दिव्या देशमुख की यह उपलब्धि सिर्फ उनकी व्यक्तिगत जीत नहीं, बल्कि पूरे भारतीय शतरंज के लिए गर्व का क्षण है। यह दर्शाता है कि भारत में युवा प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है, जो अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी पहचान बना रही हैं। अब फाइनल में दिव्या का मुकाबला लेई टिंगजी या कोनेरू हम्पी में से किसी एक से होगा। अगर कोनेरू हम्पी भी फाइनल में पहुंच जाती हैं, तो कल्पना कीजिए – महिला शतरंज विश्व कप का फाइनल, और दोनों भारतीय!

यह सपना अब हकीकत के करीब दिख रहा है, और दिव्या जैसी खिलाड़ी यह साबित करती हैं कि भारतीय शतरंज का भविष्य उज्ज्वल है, और यह नई पीढ़ी हर चुनौती का सामना करने को तैयार है। उनका सफर अभी शुरू हुआ है, और दुनिया बेसब्री से देख रही है कि यह युवा रानी शतरंज की बिसात पर और कौन-कौन से नए इतिहास रचती है।

प्रमोद विश्वनाथ

बेंगलुरु के वरिष्ठ खेल पत्रकार प्रमोद विश्वनाथ फुटबॉल और एथलेटिक्स के विशेषज्ञ हैं। आठ वर्षों के अनुभव ने उन्हें एक अनूठी शैली विकसित करने में मदद की है।

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