एक समय था जब हंगरी के ग्रैंडमास्टर पीटर लेको शतरंज की दुनिया में अपनी रणनीतिक सूझबूझ और शांत स्वभाव के लिए जाने जाते थे। 2004 में विश्व चैंपियन बनने के बेहद करीब आकर रह गए लेको, अब एक नई भूमिका में हैं – युवा प्रतिभाओं को तराशने वाले गुरु की भूमिका में। और उनका सबसे चमकदार शिष्य कोई और नहीं, बल्कि जर्मनी के युवा सनसनी विंसेंट कीमर हैं। चेन्नई मास्टर्स में कीमर की हालिया शानदार जीत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह शतरंज के भविष्य के सितारों में से एक हैं।
एक गुरु का अनुभव, एक शिष्य का निडर आत्मविश्वास
पीटर लेको, जो स्वयं अपने समय के सबसे कम उम्र के ग्रैंडमास्टर्स में से एक रहे हैं, अब चालीस की उम्र पार कर चुके हैं और उन्होंने प्रतिस्पर्धा से हटकर मार्गदर्शन और कमेंट्री पर ध्यान केंद्रित किया है। विंसेंट कीमर के साथ उनका काम सबसे उल्लेखनीय है। लेको मानते हैं कि कीमर में एक महान रणनीतिकार बनने की क्षमता है। चेन्नई मास्टर्स में उनकी एक राउंड पहले ही जीत दर्ज कर लेना उनकी अद्भुत फॉर्म और बढ़ते आत्मविश्वास का प्रमाण है। लेको के लिए, इस युवा प्रतिभा को गाइड करना न केवल एक पेशेवर चुनौती है, बल्कि अगली पीढ़ी का समर्थन करने का एक व्यक्तिगत मिशन भी है, ठीक वैसे ही जैसे उन्हें कभी समर्थन मिला था।
लेको ने हाल ही में `द इंडियन एक्सप्रेस` से बातचीत में बताया कि कीमर को क्या खास बनाता है, उन्होंने हाल के महीनों में क्या प्रगति की है, और किस तरह उनका आत्मविश्वास बढ़ रहा है। उन्होंने अपने शिष्य को युवा प्रतिभाओं की एक रोमांचक नई लहर के संदर्भ में भी रखा, जिसमें गुकेश डोम्माराजू, प्रज्ञानंद रमेशबाबू और नोदिरबेक अब्दुसत्तोरोव जैसे नाम पहले से ही कम उम्र में असाधारण उपलब्धि हासिल कर रहे हैं। लेको ने संकेत दिया कि कीमर इन खिलाड़ियों की सफलता को इस बात के प्रमाण के रूप में देखते हैं कि उनकी अपनी महत्वाकांक्षाएं पहुंच के भीतर हैं।
“विनसेंट सोचता है… `एक मिनट रुको, मैं इन लोगों से बेहतर नहीं तो कम भी नहीं हूं। अगर वे सफल हो सकते हैं, तो मैं क्यों नहीं?`” लेको ने साझा किया। यह बात दिखाती है कि कैसे भारतीय शतरंज की बढ़ती धाक दुनिया भर के युवा खिलाड़ियों को प्रेरित कर रही है।
चेन्नई से जुड़ाव और भारतीय जुनून
चेन्नई, लेको के लिए केवल एक शहर नहीं है, बल्कि भावनाओं का एक संगम है। 2013 में, वे विश्व चैंपियनशिप मैच के दौरान विश्वनाथन आनंद की टीम का हिस्सा थे, जो उसी हयात रीजेंसी होटल में खेला गया था जहाँ चेन्नई मास्टर्स का आयोजन हुआ। होटल में लगी आग और उसके बाद टूर्नामेंट का जारी रहना उनके लिए बेहद भावनात्मक क्षण था। लेको कहते हैं कि कीमर को भी भारत में खेलना बहुत पसंद है। शतरंज के प्रति यहां के लोगों का उत्साह, दर्शक और कैमरों का ध्यान खिलाड़ियों को एक अतिरिक्त ऊर्जा देता है – एक कलाकार और खिलाड़ी के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण है।
लेको की अपनी यात्रा और एक नया दृष्टिकोण
लेको ने अपने खुद के खेल करियर पर भी खुलकर बात की। उन्होंने स्वीकार किया कि उनकी सावधानी बरतने की प्रवृत्ति अक्सर उन्हें निर्णायक जीत से वंचित कर देती थी, जो कीमर की लड़ने की भावना के बिल्कुल विपरीत है। यह एक दिलचस्प विडंबना है: जो गुण (अत्यधिक सावधानी) एक समय लेको के लिए `कमजोरी` साबित हुआ, अब वही गुण उन्हें अपने शिष्य की `निडरता` को सराहने और उसे सही दिशा देने में मदद कर रहा है। शायद यही अनुभवी गुरु की पहचान है, जो अपनी गलतियों से सीखकर दूसरों का मार्ग प्रशस्त करता है।
साथ ही, उन्होंने युवा जर्मन खिलाड़ी के साथ अपने गहरे रिश्ते का भी गर्मजोशी से जिक्र किया, एक ऐसा रिश्ता जो शतरंज से कहीं आगे है और इसमें ट्रेनिंग कैंप, साइकिलिंग और बोर्ड पर मिलकर नई खोज करने का साझा प्रेम शामिल है। यह दिखाता है कि एक गुरु और शिष्य का रिश्ता सिर्फ किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं होता, बल्कि व्यक्तिगत जुड़ाव भी सफलता की नींव रखता है।
विनसेंट कीमर का उदय केवल उनकी व्यक्तिगत प्रतिभा का परिणाम नहीं है, बल्कि यह पीटर लेको जैसे अनुभवी गुरु के मार्गदर्शन और युवा भारतीय सितारों से मिली प्रेरणा का भी नतीजा है। शतरंज की दुनिया एक नए रोमांचक युग में प्रवेश कर रही है, जहाँ पुरानी पीढ़ियों का अनुभव नई पीढ़ियों के निडर आत्मविश्वास के साथ मिलकर खेल को नई ऊंचाइयों पर ले जा रहा है। कीमर का भविष्य उज्ज्वल है, और लेको की नज़र में, वह निश्चित रूप से शीर्ष पर पहुंचने वाले हैं।