लाहौर के गद्दाफी स्टेडियम में खेले जा रहे पहले टेस्ट मैच में पाकिस्तान क्रिकेट टीम के प्रदर्शन ने एक बार फिर उनके प्रशंसकों को हैरान और परेशान कर दिया है। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ लगभग जीती हुई बाजी को जिस तरह से बल्लेबाजों ने गंवाया, उसने टीम के कोच अजहर महमूद का पारा चढ़ा दिया। एक समय ऐसी स्थिति थी जब पाकिस्तान अपनी मजबूत पकड़ बनाए हुए था, लेकिन अगले ही पल, ताश के पत्तों की तरह पूरी बल्लेबाजी बिखर गई। क्रिकेट के मैदान पर ऐसे दृश्य दुर्लभ होते हैं, लेकिन पाकिस्तान क्रिकेट के लिए, दुर्भाग्य से, यह कोई नई कहानी नहीं है।
कोच का गुस्सा: सीधे बल्लेबाजों पर निशाना
महमूद, जो आमतौर पर अपने शब्दों को तोल-मोल कर इस्तेमाल करने के लिए जाने जाते हैं, इस बार अपने संयम को नहीं रख पाए। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उनका गुस्सा साफ झलक रहा था। उन्होंने सीधे तौर पर बल्लेबाजों को लापरवाह शॉट चयन और खराब निर्णय लेने के लिए दोषी ठहराया। उनके शब्दों में किसी तरह की नरमी नहीं थी:
“हम खुद इस स्थिति में पहुंचे हैं। हम 150 पर 4 विकेट थे, और फिर 17 रन पर 6 विकेट गंवा दिए। इसके लिए शॉट चयन और निर्णय लेने की हमारी गलती है। कोई और जिम्मेदार नहीं है।”
यह बयान पाकिस्तान के ड्रेसिंग रूम में बढ़ते तनाव और निराशा को दर्शाता है। कोच का मानना है कि पिच ने नहीं, बल्कि बल्लेबाजों के खराब फैसलों ने उन्हें मुश्किल में डाला।
पिच का बहाना नहीं, आदतों का मसला
अजहर महमूद ने जोर देकर कहा कि पिच ने किसी को आउट नहीं किया, बल्कि यह बल्लेबाजों के खराब फैसले थे जिसने उन्हें मुश्किल में डाला। उन्होंने स्पष्ट किया कि:
“अगर आप 17 रन पर 6 विकेट गंवाते हैं, तो यह आदर्श नहीं है। पिच ने गेंद को टर्न करने की अनुमति दी, लेकिन पिच ने किसी को आउट नहीं किया। हमारा शॉट चयन अच्छा नहीं था। हमें इसमें सुधार करने की जरूरत है। अगर हम ऐसी पिचों पर खेलेंगे, तो हमें धैर्य रखना होगा।”
यह टिप्पणी पाकिस्तान की बल्लेबाजी में एक गहरे पैटर्न की ओर इशारा करती है – दबाव में टूट जाना और अनावश्यक जोखिम लेना।
“कोलैप्स कल्चर”: एक पुरानी कहानी
यह पहली बार नहीं है जब पाकिस्तानी टीम ने ऐसे सामूहिक पतन का अनुभव किया है। इंग्लैंड और वेस्टइंडीज के खिलाफ पिछले मैचों में भी ऐसी ही तस्वीर देखने को मिली थी, जहां टीम ने अचानक विकेट खो दिए थे। पहले टेस्ट की पहली पारी में भी 199 पर 2 से 199 पर 5 विकेट हो गए थे, यह दर्शाता है कि यह एक गहरी समस्या है, न कि सिर्फ एक खराब दिन। ऐसा लगता है जैसे पाकिस्तानी बल्लेबाज एक “कोलैप्स कल्चर” के आदी हो गए हैं, जहां एक विकेट गिरने के बाद, बाकी भी जल्द ही उसका अनुसरण करते हैं। क्या यह केवल खराब किस्मत है, या फिर मानसिक दृढ़ता की कमी?
अर्धशतक को शतक में न बदलना: एक बड़ी चूक
कोच ने बल्लेबाजों को पचास को शतक में बदलने में नाकाम रहने के लिए भी लताड़ा। अब्दुल्ला शफीक और बाबर आजम जैसे खिलाड़ी 40-50 रन बनाकर आउट हुए, जबकि उनसे बड़ी पारी की उम्मीद थी। ऐसी धीमी पिचों पर जहां नए बल्लेबाज को सेट होने में समय लगता है, वहां स्थापित बल्लेबाजों को जिम्मेदारी लेनी चाहिए और बड़ी पारियां खेलनी चाहिए ताकि टीम को मजबूत स्थिति में लाया जा सके। लेकिन, अक्सर देखा गया है कि “अच्छी शुरुआत” को “बड़ी पारी” में बदलने की कला में पाकिस्तानी बल्लेबाज पिछड़ जाते हैं।
निर्णायक क्षणों में लापरवाही: सऊद शकील का उदाहरण
सऊद शकील का चाय से ठीक पहले लापरवाही भरा शॉट, जब वह 38 रन पर थे, महमूद की निराशा का एक और बड़ा कारण था। ऐसे महत्वपूर्ण समय में, जब सत्र समाप्त होने वाला हो, एक बड़े शॉट की कोशिश करना अनावश्यक था, जिससे टीम पर अतिरिक्त दबाव पड़ा। चाय के ठीक बाद मोहम्मद रिजवान का विकेट भी टीम के लिए किसी झटके से कम नहीं था। महमूद ने यह भी कहा कि शाहीन शाह अफरीदी को रन गति बढ़ाने के लिए भेजा गया था, लेकिन अन्य बल्लेबाजों को उन्हीं उच्च जोखिम वाले शॉट्स खेलने की जरूरत नहीं थी। क्या जीतने की जल्दी ने उन्हें हार के कगार पर ला खड़ा किया?
भविष्य की चुनौती और उम्मीदें
इस हार की कगार पर खड़ी पाकिस्तानी टीम के लिए यह केवल एक मैच का मामला नहीं है, बल्कि यह उनकी टेस्ट क्रिकेट की रणनीति और मानसिक दृढ़ता पर एक गंभीर सवालिया निशान है। महमूद ने भविष्य में इन गलतियों को सुधारने की बात कही है, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह टीम अपनी पुरानी आदतों को छोड़कर जिम्मेदारी लेने और दबाव में बेहतर प्रदर्शन करने के लिए तैयार है? पाकिस्तान क्रिकेट को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा, वरना `जीत के पास आकर हारने` का यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा। प्रशंसकों की उम्मीदें एक बार फिर टूटती नजर आ रही हैं, और अब टीम को सिर्फ बयानों से नहीं, बल्कि प्रदर्शन से जवाब देना होगा।
